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    पुतिन की भारत यात्रा ने साबित की मोदी की कूटनीतिक ताकत

    shivam kumarBy shivam kumarDecember 7, 2025No Comments8 Mins Read
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    अब शुरू होगा भारत और रूस के आपसी रिश्तों का नया अध्याय
    -दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरे भारतीय प्रायद्वीप पर पड़ेगा इस दौरे का असर
    -नयी विश्व व्यवस्था स्थापित करने में भी मददगार होगी पुतिन की यात्रा
    रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की 30 घंटे की भारत यात्रा संपन्न हो गयी है। स्वाभाविक तौर पर इस यात्रा का मूल्यांकन दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते की कसौटी पर किया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि पुतिन की यह यात्रा किसी समझौते से आगे परस्पर विश्वास और सम्मान को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने वाले अध्याय की शुरूआत के रूप में देखी जानी चाहिए। पुतिन और मोदी की गर्माहट भरी मुलाकात और दोनों नेताओं के हाव-भाव ने भारत और रूस के बीच के सात दशक पुराने रिश्तों को एक नयी मजबूती देने की प्रतिबद्धता दोहरायी है, तो इसके साथ ही नयी विश्व व्यवस्था स्थापित करने में भारत, खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक ताकत को भी रेखांकित किया है। पुतिन की भारत यात्रा के दौरान भारत और रूस के बीच के रिश्तों के उस अध्याय की शुरूआत हुई है, जिसने अमेरिका, चीन और नाटो संगठन के एकाधिकारवादी दृष्टिकोण को नेपथ्य में धकेलने की दिशा में कदम बढ़ाया है। भारत और रूस के सात दशक पुराने रिश्ते में रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ भारतीय उपमहाद्वीप में बढ़ रही आतंकवादी गतिविधियां दोनों देशों की चिंता का कारण बनी हुई हैं, जिन पर पुतिन और मोदी ने एकसमान विचार दुनिया के सामने रखे। कूटनीतिक दृष्टिकोण से भारत के लिए और वैश्विक ताकत बन रहे रूस के लिए यह बहुत बड़ी कामयाबी है। भारत के नजरिये से क्या है पुतिन की यात्रा का मतलब और इससे दोनों देशों के रिश्तों में क्या बदलाव हो सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।

    रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा एक साधारण कूटनीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि इतिहास के सात दशकों में बुनी एवं गढ़ी गयी मित्रता का नवीन उद्घोष है। कहा जाता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्थायी मित्र और शत्रु नहीं, स्थायी हित होते हैं, लेकिन भारत-रूस संबंध इस कथन की परिधि से आगे जाकर स्थायी भरोसे, नैतिक दायित्व और पारस्परिक सम्मान के प्रतीक बने हुए हैं। यह यात्रा ऐसे समय हुई है, जब पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका, यूरोप और नाटो गठबंधन रूस पर कठोर आर्थिक और रणनीतिक प्रतिबंध लगाये हुए हैं। इसके बावजूद भारत ने रूस को न केवल कूटनीतिक स्तर पर सम्मान-साथ दिया, बल्कि ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में उसे सबसे भरोसेमंद साझेदार माना है। इसलिए यह यात्रा केवल दो नेताओं, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात नहीं, बल्कि एक नये युग के सूत्रपात का संकेत है, नयी विश्व राजनीतिक समीकरण की आहट है।

    70 साल पुरानी है भारत-रूस की मित्रता
    भारत और रूस की मित्रता का इतिहास लगभग 70 वर्षों का है। शीतयुद्ध काल में रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की संप्रभुता और सुरक्षा हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से लेकर पोखरण परमाणु परीक्षणों तक रूस ने भारत का साथ दिया। आज जब यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक राजनीति को ध्रुवीकृत कर दिया है, अमेरिका ने भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव बनाया, लेकिन भारत ने सामरिक स्वायत्तता की नीति को बनाये रखते हुए रूस का साथ निभाया। पश्चिम के प्रतिबंधों के बीच भारत ने भारी मात्रा में रूसी पेट्रोलियम और गैस खरीद कर अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की और रूस को आर्थिक सहारा दिया। यह निर्णय महज एक वाणिज्यिक लाभ का मामला नहीं था, बल्कि भारतीय विदेश नीति की स्वयंप्रभुता का प्रदर्शन था। दूसरी ओर रूस ने भी भारत को कभी निराश नहीं किया। चाहे एस-400 वायु रक्षा प्रणाली हो, टी-90 टैंक हों, ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना हो या पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान सुयू-57 से जुड़ा सहयोग, भारत की सैन्य क्षमता में रूस का योगदान निर्णायक रहा है। वहीं पाकिस्तान की शत्रुता के खिलाफ भारत के हितों को रूस का अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता रहा है। हाल ही में दक्षिण एशिया की बदलती सुरक्षा परिस्थितियों में रूस ने भारत की सामरिक चिंता को समझा और ह्यआॅपरेशन सिंदूरह्ण जैसे अभियानों में सहयोग की भूमिका निभायी। यह तथ्य भारत-रूस संबंधों की गहराई और विश्वास को दशार्ता है।

    पुतिन की यात्रा से मजबूत हुआ रिश्ता
    पुतिन और मोदी की वार्ता ऐसे समय हुई, जब वैशिक शक्ति-संतुलन परिवर्तन के दौर में है। अमेरिका-चीन तनाव, यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, ऊर्जा बाजारों की अस्थिरता और पश्चिमी देशों की रूस के खिलाफ एकजुटता, इन परिस्थितियों में भारत की भूमिका मध्यस्थ, संतुलक और स्वतंत्र धुरी के रूप में उभर रही है। पुतिन भारत को न केवल रक्षा सहयोगी मानते हैं, बल्कि एशियाई भू-राजनीति में संतुलन का स्तंभ भी। वहीं मोदी की विदेश नीति बहुध्रुवीय विश्व की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें रूस का स्थान केंद्रीय है। इस यात्रा से ऊर्जा सहयोग और बढ़ा है। भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है और रूस उसके लिए सस्ता, विश्वसनीय और दीर्घकालिक आपूर्तिकर्ता। प्रतिबंधों के बावजूद रूस ने भारत को कच्चे तेल के साथ ही कोयला, गैस और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में सहयोग दिया। भारत को सस्ती ऊर्जा देने के पीछे केवल व्यावसायिक हित नहीं, बल्कि मित्रता और सामरिक साझेदारी भी निहित है।

    रक्षा समझौता नहीं होना भी भारत के हित में
    रक्षा क्षेत्र में सहयोग और विस्तृत होने की उम्मीद थी, जो नहीं हुई, लेकिन इससे भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ है। भारत का लक्ष्य ह्यमेक इन इंडियाह्ण रक्षा उत्पादन है और रूस इसके लिए सबसे बड़ा भागीदार बना हुआ है। ब्रह्मोस मिसाइल, राइफल निर्माण, स्पेयर पार्ट्स आपूर्ति और संयुक्त विकास कार्यक्रमों के नये विकल्प यात्रा के दौरान उभरे हैं। रूस भारत को केवल उपभोक्ता नहीं, निमार्ता के रूप में स्थापित करने में सहभागी है, जो संबंधों की परिपक्वता को दशार्ता है।

    नये अध्याय की शुरूआत
    पुतिन की यात्रा के बाद भारत-रूस दोस्ती अब एक नया अध्याय लिखने को तत्पर है। दोनों देशों की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। यहां तक की अमेरिका के साथ बेहतर हुए संबंधों के दौर में भी रूस भारत का विश्वस्त साझीदार बना रहा है। भारत और रूस की प्रगाढ़ दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा है। अब रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से दोनों देशों की दोस्ती में नयी गरमाहट पैदा हुई है और दोस्ती के नये स्वस्तिक उकेरने की बात सामने आयी है।

    मोदी की कूटनीतिक कुशलता
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के वर्षों में अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है, लेकिन रूस के साथ देश के दशकों पुराने रक्षा संबंध भी बरकरार हैं। भारत ने अमेरिका और यूरोप से हथियारों की खरीद बढ़ाकर रूस पर निर्भरता को संतुलित बनाया है, लेकिन मॉस्को अभी भी भारत का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर है। रूस दोस्ती की ओर आगे बढ़ते हुए भारत के लोगों को रोजगार देने के लिए भी एक समझौता मसौदा तैयार किया है। रूस अपने उद्योगों के लिए 10 लाख भारतीय कुशल श्रमिकों को काम पर रखना चाहता है।

    परस्पर विश्वास और सम्मान
    भारत-रूस संबंधों का सबसे मजबूत आधार है कूटनीतिक विश्वास और सम्मान। रूस ने कभी भारतीय आंतरिक राजनीति या नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। उसने कश्मीर, परमाणु नीति, रणनीतिक साझेदारी और पड़ोसी विवादों पर भारत की संप्रभुता का समर्थन किया। वहीं भारत ने भी रूस की सुरक्षा चिंताओं को समझा, चाहे नाटो विस्तार का मुद्दा हो या यूक्रेन का संघर्ष। इसलिए भारत ने पश्चिमी दबावों की उपेक्षा करते हुए संवाद और शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है। अंतरिक्ष विज्ञान, तकनीक, शिक्षा, अनुसंधान और चिकित्सा के क्षेत्र में भी रूस की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में रूस सहयोगी रहा है और भविष्य की यात्री-वाहक मिशनों में भी सहयोग की संभावनाएं हैं। दोनों देशों की सांस्कृतिक साझेदारी भी विशेष है। फिर भी यह संबंध चुनौतियों से खाली नहीं। चीन-रूस साझेदारी और भारत-अमेरिका निकटता के बीच संतुलन बनाये रखना दोनों देशों के लिए चुनौतीपूर्ण है। रूस चाहता है कि एशिया में भारत संतुलक भूमिका निभाये, वहीं भारत नहीं चाहता कि रूस का झुकाव चीन की ओर अत्यधिक बढ़े। इसी प्रकार रक्षा सहयोग में तकनीक हस्तांतरण, उत्पादन विलंब और आर्थिक भुगतान व्यवस्थाओं पर भी मतभेद रहे हैं। लेकिन इन मतभेदों को वार्ता द्वारा समाधान के प्रयास दोनों राष्ट्रों की परिपक्वता को दशार्ते हैं।
    पुतिन की इस यात्रा का महत्व इसलिए भी है कि यह बताती है कि भारत किसी वैश्विक शक्ति के दबाव में नहीं, बल्कि अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर संबंध तय करता है। ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा आत्मनिर्भरता, बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था और एशियाई सामरिक संतुलन की दृष्टि से भारत-रूस साझेदारी अपरिहार्य है। मोदी और पुतिन की मुलाकात इस विश्वास की प्रमाणिकता है कि संबंध केवल शीत युद्ध की स्मृतियों पर नहीं, बल्कि समकालीन हितों और भविष्य की रणनीति पर आधारित हैं। यह यात्रा एक प्रतीक है-स्वतंत्र विदेश नीति, सामरिक साझेदारी और सांस्कृतिक सम्मान की। भारत-रूस संबंध केवल दो राष्ट्रों की निकटता का परिचय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक विशिष्ट वैकल्पिक शक्ति संरचना का निर्माण है। पश्चिमी देशों की आलोचना और प्रतिबंधों के बावजूद भारत और रूस ने अपने संबंधों को न केवल जीवित रखा बल्कि सुदृढ़ किया।
    पुतिन की यात्रा से भारत की ऊर्जा सुरक्षा को नयी गति मिलेगी, रक्षा उत्पादन को स्वदेशीकरण का बल मिलेगा, व्यापार और तकनीकी सहयोग विस्तृत होगा और रणनीतिक विश्वास की डोर और मजबूत होगी। पुतिन और मोदी की गर्मजोशी भरी मुलाकात बताती है कि भू-राजनीति केवल प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि भरोसे और सहयोग पर भी टिकती है। अत: कहा जा सकता है कि पुतिन की भारत यात्रा एक नयी ऊर्जा, नये दृष्टिकोण और नयी साझेदारियों की शुरूआत है, जहां भारत और रूस न केवल मित्र हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर संतुलित, स्वाधीन और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निमार्ता भी हैं। यह यात्रा उसी निर्माण का नवीन अध्याय है, जिसमें पुराने भरोसे से जन्म ले रहा है एक नया भविष्य।

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