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    Home»देश»दिल्ली»दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना है नये कानूनों का उद्देश्य : अमित शाह
    दिल्ली

    दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना है नये कानूनों का उद्देश्य : अमित शाह

    adminBy adminAugust 12, 2023No Comments4 Mins Read
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    नई दिल्ली। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 लोकसभा में चर्चा के लिए पेश किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ये तीनों कानून दंड देने को नहीं बल्कि न्याय दिलाने के लिए लाए गए हैं।

    शाह ने कहा कि इन तीनों विधेयकों में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के लिए मूलभूत कानून हैं। इंडियन पीनल कोड, 1860, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, (1898), 1973 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए और अंग्रेजी संसद द्वारा पारित किए गए इन तीनों कानूनों को समाप्त कर आज हम तीनों नए कानून लाए हैं। इंडियन पीनल कोड, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित होगा, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1898 की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 स्थापित होगा।

    शाह ने कहा कि समाप्त होने वाले ये तीनों कानून अंग्रेजी शासन को मज़बूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और उनका उद्देश्य दंड देने का था, न्याय देने का नहीं था, इन दोनों मूलभूत चीज़ों को हम परिवर्तन करने जा रहे हैं। इन तीनों कानूनों को रिप्लेस कर आने वाले तीन नए कानूनों की आत्मा होगी, भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना। इन कानूनों का उद्देश्य किसी को दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना होगा और इस प्रक्रिया में दंड वहीं दिया जाएगा, जहां अपराध रोकने की भावना पैदा करने की जरूरत है।

    शाह ने लोकसभा को आश्वस्त किया कि 1860 से 2023 तक अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के आधार पर इस देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम चलता रहा, अब इन तीनों कानूनों की जगह भारतीय आत्मा के साथ ये तीन कानून स्थापित होंगे। जिससे हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। उन्होंने कहा कि अभी के कानूनों में मानव हत्या या स्त्री के साथ दुराचार जैसे जघन्य अपराधों को बहुत नीचे रखा गया और राजद्रोह, खजाने की लूट शासन के अधिकारी पर हमले जैसे अपराधों को इनसे ऊपर रखा गया। उन्होंने कहा कि इस अप्रोच को हम बदल रहे हैं और इन नए कानूनों में सबसे पहला चैप्टर महिलाओं और बच्चों के साथ अपराध पर होगा। दूसरा चैप्टर मानव वध और मानव शरीर के साथ होने वाले अपराधों पर होगा। हम शासन की जगह नागरिक को केन्द्र में लाने का बहुत बड़ा सैद्धांतिक निर्णय कर ये कानून लाए हैं।

    उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने के लिए हर जगह व्यापक कंसल्टेशन किया गया है। गृह मंत्री ने कहा कि उन्होने अगस्त, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और देश के सभी कानून विश्वविद्यालयों को पत्र लिखे थे। वर्ष 2020 में सभी सांसदों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों और संघशासित प्रदेशों के प्रशासकों को पत्र लिखे गए। इसके बाद व्यापक कंसल्टेशन के बाद आज ये प्रक्रिया कानून बनने जा रही है। उन्होंने कहा कि 18 राज्यों, 06 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 05 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं। शाह ने कहा कि 04 सालों तक इन पर गहन विचार विमर्श किया गया है और वे स्वयं 158 बैठकों में उपस्थित रहे हैं।

    केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो सीआरपीसी को रिप्लेस करेगी जिसमें अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 09 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 09 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय न्याय संहिता, जो आईपीसी को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय साक्ष्य विधेयक, जो एवेडेंस एक्ट रिप्लेस करेगा, इसमें पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 23 धाराओं में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 05 धाराएं निरस्त की गई हैं।

    केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्त करने जा रही है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और सबको बोलने का अधिकार है। पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या ही नहीं होती थी, लेकिन अब अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है और इससे जुड़ी संपत्तियों को ज़ब्त करने का अधिकार भी दिया गया है। जांचकर्ता पुलिस अधिकारी के संज्ञान पर कोर्ट इसका आदेश देगा।

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