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    Home»विशेष»अत्याचार के बाद बांग्लादेश में अब गूंजने लगी हिंदुओं की आवाज
    विशेष

    अत्याचार के बाद बांग्लादेश में अब गूंजने लगी हिंदुओं की आवाज

    shivam kumarBy shivam kumarAugust 12, 2024No Comments14 Mins Read
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    विशेष
    जागो रे जागो, हिंदू जागो, आमार माटी, आमार मां, देश छोड़बो ना
    तेल, लहसुन, प्याज करने से काम नहीं चलेगा, अब एकजुट होने का समय है

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    भारत में हिंदुओं के पास कई सारे मुद्दे हैं। जैसे तेल, लहसुन, प्याज, टमाटर, दूध। तेल एक रुपये बढ़ गया, अरे सरकार बदलो, टमाटर, प्याज, मिर्चा, आलू का भाव बढ़ गया, अरे सरकार बदलो। फिलहाल तो हिंदुओं के लिए भारत में ये प्रमुख मुद्दे हैं। हिंदुओं की संस्कृति और सभ्यता बची रहे, उनकी ऐतिहासिक धरोहर बची रहे, मंदिर बचे रहें, उनका वजूद बचा रहे यह मुद्दा नहीं रह गया है। दूसरी ओर अभी के दृष्टिकोण से देखा जाये तो बहुतायत में कुछ अपवाद को छोड़ कर आम मुसलामान का मुद्दा आटा, दाल, नून तेल की चिंता नहीं है। यह उनके लिए कभी मुद्दा रहा ही नहीं। यह सब तो हर सरकार में उन्हें मिलता ही रहा है। सरकारी आवास या अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में उनसे ज्यादा जागरूक और कोई नहीं है। यह अच्छी बात है, लेकिन जब धर्म की बात आती है, वोट देने की बारी आती है, तो वे पूरी तरह एकजुट हो जाते हैं। इसका उदाहरण भी लोकसभा चुनाव में देखने को मिला, जब रामपुर के एक बूथ पर 100% मुस्लिम मतदाताओं ने 2322 मतदान किये, वे सभी के सभी मतदान एक पार्टी विशेष के लिए किये गये। जबकि इस गांव की सच्चाई यह है कि इस गांव में 532 लोगों को पीएम आवास मिले हैं, रोजगार शुरू करने के लिए किफायती लोन दिये गये, लेकिन उनमें से एक भी वोट दूसरे दल के उम्मीदवार को नहीं मिला। सच है कि यह उनका निजी मामला है, वोट देना उनका अपना अधिकार है। इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन सच यही है कि मुसलामानों के लिए धर्म सर्वोपरि है। वह धर्म के नाम पर कोई समझौता नहीं कर सकते। धर्म का विस्तार उनका लक्ष्य है। वे अपने हिसाब से हिमायती का भी चुनाव करते हैं। और उसके प्रति वे लॉयल भी रहते हैं। भले उनका विकास हो या न हो। वहीं हाल के दिनों में यह देखा गया है कि हिंदू, धर्म के प्रति लचीले हैं। उनका ज्यादातर फोकस रोटी, कपड़ा और मकान पर ही सिमट कर रह गया है। धर्म, संस्कृति सभ्यता धरोहर उनके लिए किताबी शब्द हैं। जाति के नाम पर खुद का विभाजन मुख्य एजेंडा बन गया है। बांग्लादेश में भी हिंदू, तेल-टमाटर, रोटी कपड़ा और मकान के लिए ही संघर्ष करते रह गये। वहां कभी उनके एजेंडे में धर्म की स्थापना, सभ्यता और धरोहर की रक्षा रहा ही नहीं। नतीजा रहा कि वे वहां धीरे-धीरे घटते चले गये। घटने का कारण एक दूसरे पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाना। मूकदर्शक बन कर अन्याय को नजरअंदाज करना। यही करते-करते बांग्लादेश में हिंदू 22 प्रतिशत से आठ प्रतिशत पर खिसक गये। बांग्लादेश में, जो कभी पूर्वी पाकिस्तान था, वहां 1951 के बाद से कट्टरपंथियों द्वारा जो यातनाएं शुरू की गयीं, वह निरंतर चलती ही रहीं। लेकिन हिंदू कभी अपने अधिकारों के लिए एकजुट नहीं हुआ, ना ही आवाज बुलंद की। आज बांग्लादेश में हसीना सरकार के पतन के बाद जो परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं, जिस प्रकार से हिंदुओं की हत्याएं की जा रही हैं, हिंदू महिलाओं और बच्चियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, उनके घरों, मंदिरों और कार्यालयों को जलाया जा रहा है, उसे देख किसी की भी रूह कांप जायेगी। सोशल मीडिया पर लगातार वीडियो आ रहे हैं कि कैसे हिंदुओं की सामूहिक हत्याएं की जा रही हैं। उन्हें जिंदा पेड़ों और बिजली के खंभों पर उल्टा लटकाया जा रहा है और पीट-पीट कर मार दिया जा रहा है। सामूहिक रूप से भीड़ अकेले व्यक्ति को लातों और डंडों से मार रही है, उस व्यक्ति का शरीर हिल भी नहीं रहा है, बस आंखें बंद खुल रही हैं, मुंह से खून निकला जा रहा है, लेकिन बांग्लादेशी कट्टरपंथी रुक नहीं रहे हैं। वहां के जो ताजा हालात हैं, घर के घर, गांव के गांव को जलाया जा रहा है। इंसानियत मानो बची ही नहीं। लेकिन कहते हैं न इंसान को उतना ही डराओ, जितना वह सह सके, एक बार अगर उसमें प्रतिकार करने की शक्ति आ गयी, तब क्रांति आती है। पिछले चार दिनों से वही अब बांग्लादेश में भी देखने को मिल रहा है। हिंदुओं ने अपने ऊपर हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। क्या महिलाएं, क्या पुरुष, क्या बच्चे, लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर चुके हैं। उन्होंने एकजुटता की एक सुकून देनेवाली तस्वीर पेश की है। उन्हें समझ में आ गया है कि एकजुटता में ही ताकत है। वह अब चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं जागो रे जागो, हिंदू जागो, आमार माटी, आमार मां, बांग्लादेश छोड़बो ना। यानी हिंदुओं तुम जाग जाओ, बांग्लादेश मेरी माटी मेरी मां है, उसको नहीं छोड़ेंगे। आज बांग्लादेश में हिंदू महिलाओं ने अपने घर परिवार की रक्षा करने के लिए हाथ में गंड़ासा उठा लिया है। यह तस्वीर पहले नहीं देखी गयी। यानी बांग्लादेशी हिंदू अब जाग चुका है। वह अब अपने ऊपर और अत्याचार बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। वैसे धर्म के मामले में हिंदुओं को नींद की गोली नहीं खानी पड़ती, वह निरंतर सोया ही रहता है। जब तक उसके अस्तित्व पर हमला न हो, उसके परिवार पर हमला न हो, वह अपनी जगह से हिलता नहीं और जब आंखें खोलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। वही हाल हिंदुओं का बांग्लादेश में हो रहा है और हुआ है। लेकिन कहावत है जब जागे तभी सवेरा। बांग्लादेश में हिंदुओं की एह एकजुटता ही उन्हें कट्टरपंथियों की यातना से बचायेगी। जो काम शुरू में ही हो जाना चाहिए था, उसमें दशकों लग गये। बांग्लादेश के मामले में एक बात और गौर करनेवाली है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले के खिलाफ मोहब्बत की दुकान खोलने वालों के मुंह बंद हैं, जबकि गाजा पट्टी में हुई हिंसा के खिलाफ भारत में मोहब्बत की दुकान खोलनेवाले सड़कों पर उतर आये थे। उन्हें फितीस्तीन पर हमला तो दिखायी दिया, लेकिन उन बच्चों की चीखें उन्हें नहीं सुनाई दीं, जिन्हें कट्टरपंथियों ने गोलियों से भून दिया था। इन सबका क्या असर पड़ेगा भारत पर यह बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवादाता राकेश सिंह।

    आंदोलन तो बहाना है, असली निशाना तो हिंदू हैं
    बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन तो बहाना था। जिस तरह आरक्षण के खत्म होने के बाद भी लगातार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, उससे लगता है कि यह पूरा आंदोलन एक सोची समझी साजिश के तहत हिंदुओं के खिलाफ ही शुरू हुआ हो। हिंदुओं के घरों को जलाया जा रहा है, हिंदू महिलाओं को उनके घरों से उठा लिया जा रहा है, हिंदुओं के व्यापारिक प्रतिष्ठानों में लूट हो रही है, मंदिरों को जलाया जा रहा है। जाहिर है कि भारत इन सब घटनाओं को लेकर चिंतित है। दक्षिण एशिया की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि किस तरह बांग्लादेश, म्यांमार और भारत के पूर्वी इसाई बहुल हिस्सों को मिला कर एक देश बनाने की तैयारी चल रही है। बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने भी एक बार कहा था कि पश्चिमी देशों की योजना है कि इस्ट तिमोर जैसा एक इसाई देश बनाया जा सके, जो सीधे उनकी उंगली पर नाच सके। हसीना ने यह भी कहा था कि एक ह्वाइट मैन बांग्लादेश के एक द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति मांग रहा था। शेख हसीना ने यह भी कहा कि अगर वह अमेरिका को सेंट मार्टिन द्वीप को सौंप कर बंगाल की खाड़ी पर राज करने की अनुमति देतीं, तो वह सत्ता में बनी रह सकती थीं। समझा जा सकता है कि बांग्लादेश में हसीना सरकार के तख्ता पलट में अमेरिकी एजेंसियों की क्या भूमिका है। सिर्फ यही नहीं, अमेरिकी एजेंसियों के साथ मिल कर भारत विरोधी ओर हिंदू विरोधी संगठन भी काम कर रहे थे। बांग्लादेश में जो कुछ भी चल रहा है, उसके पीछे बहुत बड़ी साजिश काम कर रही है, जो भारत के लिए भी खतरनाक है।

    जागो रे जागो, हिंदू जागो, आमार माटी, आमार मां, बांग्लादेश छोड़बो ना
    बांग्लादेश में प्रधानमंत्री पद से शेख हसीना के इस्तीफे की मांग को लेकर 4 अगस्त से शुरू हुए हिंसक आंदोलन में हिंदुओं पर लगातार हमले हुए हैं। 4, 5 और 6 अगस्त को बांग्लादेश के 64 में से 52 जिलों में रहनेवाले हिंदुओं पर हमले हुए। इन हमलों में 205 स्थानों पर हिंदुओं की संपत्तियों और मंदिरों को निशाना बनाया गया। जैसे ही हसीना सरकार का पतन हुआ, हिंदुओं पर हमले बढ़ गये। हत्याओं का दौर शुरू हुआ। क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गयीं। लेकिन अब बांग्लादेशी हिंदू अपने ऊपर हो रहे हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर चुके हैं। हिंदुओं पर हमलों के विरोध में शुक्रवार और शनिवार को बांग्लादेश में जोर की आवाज उठी। सात लाख से ज्यादा हिंदुओं ने चटगांव के चेरगी पहाड़ इलाके में एकत्रित होकर अपने ऊपर हुए अत्याचारों पर विरोध जताया। उन्होंने अपनी सुरक्षा और देश में बराबरी का अधिकार दिये जाने की मांग की। बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं का कहना है कि हम यहीं पैदा हुए हैं, यही मरेंगे। हम अपना देश छोड़ कर नहीं जायेंगे और अपने पर हो रहे जुल्मों का प्रतिकार करेंगे। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने जम कर नारेबाजी भी की। लोगों ने कहा कि यह देश किसी के बाप का नहीं है, इसके लिए हमने खून दिया है, जरूरत पड़ी तो फिर से खून देंगे, लेकिन बांग्लादेश नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने हिंदुओं पर हो रही हिंसा के दौरान मूकदर्शक बने रहने को लेकर सिविल सोसाइटी के सदस्यों पर नाराजगी जतायी। शुक्रवार और शनिवार को हुए इस प्रदर्शन में लाखों हिंदुओं ने हिस्सा लिया। प्रदर्शन के दौरान दिनाजपुर में चार हिंदू गांवों को जलाने की कड़ी आलोचना की गयी। हिंदुओं ने नयी अंतरिम सरकार के सामने चार मांगें रखीं, जैसे अल्पसंख्यक मंत्रालय की स्थापना, अल्पसंख्यक संरक्षण आयोग का गठन, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों को रोकने के लिए सख्त कानून और अल्पसंख्यकों के लिए 10 प्रतिशत संसदीय सीटों का आवंटन। द डेली स्टार अखबार के अनुसार, 9 अगस्त को ठाकुरगांव में हिंदुओं ने रैली निकाल कर जुल्म का विरोध किया। इस रैली में चार हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां थाम रखी थीं, जिन पर लिखा था कि हिंदुओं को जीने का अधिकार है। हजारों हिंदुओं ने एक स्वर में कहा कि जागो रे जागो, हिंदू जागो, आमार माटी, आमार मां, बांग्लादेश छोड़बो ना। आंदोलन के दौरान हरे राम, हरे राम, राम-राम हरे-हरे, हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा हरे-हरे का भी उच्चारण हजारों लोग एक साथ कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश हिंदू बौद्ध इसाई एक्य परिषद ने शुक्रवार को कहा था कि शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश के 64 जिलों में से 52 जिलों में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार हुए हैं। अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती की 205 घटनाएं हुई हैं। संगठन ने अंतरिम सरकार के नेता मोहम्मद यूनुस को खुला पत्र लिखा। इसमें कहा गया कि अल्पसंख्यकों में गहरी चिंता और अनिश्चितता है। सरकार को तत्काल इसका संज्ञान लेना चाहिए।

    मोदी ने बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा की अपील की
    उधर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के कार्यालय ने कहा है कि बांग्लादेश में हिंसा को रोका जाये। बयान में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र हर तरह की नस्लभेदी हिंसा के खिलाफ है, उसकी रोकथाम के तत्काल उपाय किये जायें। हिंसा के शिकार और भयभीत हजारों बांग्लादेशी हिंदू पड़ोसी देश भारत में प्रवेश के लिए सीमा पर पहुंचे हुए हैं। उन्हें समझा-बुझा कर वापस किया जा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपील की है। वहीं शपथ लेने के बाद बांग्लादेश सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने देश में लोकतंत्र, न्याय, मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम करने का वादा किया है। यूनुस ने हिंदुओं सहित सभी अल्पसंख्यकों पर हमलों को घृणित बताया और उन्हें रोके जाने की अपील की। कहा कि अल्पसंख्यक भी इसी देश के नागरिक हैं। यूनुस ने छात्रों से हिंदुओं, इसाइयों और बौद्धों की सुरक्षा करने को कहा। गुरुवार को कार्यभार संभालने के बाद यूनुस पहली बार सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। बांग्लादेश हिंदू बौद्ध इसाई एकता परिषद और बांग्लादेश पूजा उद्जापन परिषद ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित 84 वर्षीय मोहम्मद यूनुस को खुला पत्र लिखा है, जिसमें अल्पसंख्यकों पर हमलों के आंकड़े पेश किये गये हैं और सुरक्षा की मांग की गयी है। पत्र में कहा गया है कि हम सुरक्षा चाहते हैं, क्योंकि हमारा जीवन बहुत खराब स्थिति में है। हम रात-भर जाग कर अपने घरों और मंदिरों की रखवाली कर रहे हैं। हमने अपने जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा। हम मांग करते हैं कि सरकार देश में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करे। संस्था के पदधारियों ने कहा कि स्थिति और बिगड़ रही है। उन्होंने यूनुस से आग्रह किया कि वे इस संकट को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर हल करें और हिंसा समाप्त करें।

    जब बांग्लादेशी हिंदुओं की हत्याएं हो रही थी, तब भारत में कुछ लोगों को फिलिस्तीन की चिंता सत्ता रही थी
    बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ जो अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें लेकर विश्व के लगभग हर कोने में प्रदर्शन हो रहे हैं। यूएन मुख्यालय से लेकर कनाडा, अमेरिका, लंदन आदि स्थानों पर लोग प्रदर्शन करके हिंदुओं के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं, और ऐसा भी नहीं कि केवल अवामी लीग के समर्थक हिंदू मारे जा रहे हैं। बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी इस कथित क्रांति में मारे गये हैं, जिसे देख कर भारत के कम्युनिस्ट लहालोट हो रहे हैं। परंतु यह और भी खेदजनक और दुर्ग्यभापूर्ण है कि भारत के कम्युनिस्टों की ओर से बांग्लादेश में मारे जा रह ेहिंदुओं के प्रति एक भी शब्द नहीं कहा गया और इससे भी अधिक दुर्ग्यभापूर्ण यह है कि जब बांग्लादेश में हिंदुओं को मारा जा रहा था, भयानक हिंसा हर ओर थी, उस समय भारत में जंतर-मंतर पर कम्युनिस्ट एनी राजा और अर्थशास्त्री एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज सहित कुछ लोग फिलिस्तीन के लिए नारे लगा रहे थे। बांग्लादेश में हिंसा रोकने के लिए जिन हाथों में बोर्ड होने चाहिए थे, उन हाथों में गाजा में सीजफायर के बोर्ड थे। इस विरोध प्रदर्शन में एनी राजा के साथ कई युवा और कथित रूप से सामाजिक वैज्ञानिक भी शामिल थे। अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की कांग्रेस और राहुल गांधी से नजदीकियां पूरी तरह से स्पष्ट हैं। ज्यां द्रेज ने एक दिन पहले ही संसद में जाकर राहुल गांधी से भेंट की थी और उससे पहले भी 4 अगस्त को ज्यां द्रेज ने प्रेस क्लब आॅफ इंडिया में अरुंधती रॉय, प्रशांत भूषण, बृंदा करात, सिद्धार्थ वरदराजन, विजयन एम जे, अशोक शर्मा के साथ मिल कर प्रेस कांफ्रेन्स की थी कि वे फिलिस्तीन के साथ हैं। मगर यही लोग जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले हुए, तो उनके जीने के अधिकार पर प्रश्न उठाने को लेकर मौन साध गये और झंडा उठा कर फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाने के लिए पहुंच गये।

    बांग्लादेशी हिंदुओं का अस्तित्व खतरे में
    आजादी के बाद बांग्लादेश सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है। तख्तापलट के बाद कट्टरपंथियों के वर्चस्व से अस्थिर अराजक माहौल वहां के हिंदू समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। बांग्लादेश में निहित संपत्ति अधिनियम (जिसे पहले पाकिस्तानी शासन के दौरान शत्रु संपत्ति अधिनियम के रूप में जाना जाता था) के कारण 1965 और 2006 के बीच हिंदुओं की करीब 26 लाख एकड़ भूमि का अधिग्रहण हुआ था। इससे 12 लाख हिंदू परिवार प्रभावित हुए। बांग्लादेश के प्रमुख अधिकार संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में जनवरी और जून के बीच बांग्लादेश में हिंदुओं को निशाना बना कर की गयी हिंसा में 66 घर जला दिये गये थे, 24 लोग घायल हो गये और कम से कम 49 मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। हिंदुओं के खिलाफ कट्टरपंथी आंदोलन 1980 से 1990 के बीच और अधिक बढ़ा। 1990 में अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वंस के बाद चटगांव और ढाका में कई हिंदू मंदिरों में आग लगा दी गयी थी। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हिंदुओं को विशेष रूप से निशाना बनाया गया, क्योंकि कई पाकिस्तानी उन्हें अलगाव के लिए दोषी मानते थे। इससे हिंदू आबादी बुरी तरह प्रभावित हुई। 1951 की आधिकारिक जनगणना के अनुसार बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) की कुल आबादी में हिंदू 22 प्रतिशत थे। यह संख्या 1991 तक घट कर 15 प्रतिशत रह गयी। 2011 की जनगणना में यह संख्या केवल 8.5 प्रतिशत रह गयी। 2022 में यह आठ प्रतिशत से भी कम हो गयी है। वहीं मुसलमानों की आबादी 1951 में 76 प्रतिशत से 2022 में 91 प्रतिशत से अधिक हो गयी है। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार 1964 और 2013 के बीच 1.1 करोड़ से अधिक हिंदू धार्मिक उत्पीड़न के कारण बांग्लादेश से भाग गये। इसमें कहा गया है कि बांग्लादेश में हर साल 2.3 लाख हिंदू देश छोड़ कर चले जाते हैं। 2011 की जनगणना से पता चला कि 2000 से 2010 के बीच देश की आबादी से दस लाख हिंदू गायब हो गये।

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