विशेष
मोदी सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक लाकर उठाया साहसिक कदम
इमानदार, समानतापूर्ण और आदर्श व्यवस्था समाज के लिए है जरूरी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
गंभीर आपराधिक आरोपों में घिरे नेता, चाहे वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री ही क्यों न हो, की गिरफ्तारी या हिरासत के बाद एक निश्चित अवधि बीत जाने पर हटाने की व्यवस्था वाले विधेयक को जब केंद्र सरकार ने लोकसभा में प्रस्तुत किया, तो जरूरत से ज्यादा हंगामा और विरोध समझ में नहीं आया। इस तरह इमानदार, अपराधमुक्त राजनीति और चरित्रसंपन्न-पवित्र राजनेताओं की पैरवी वाले विधेयक पर हंगामा लोकतंत्र की गरिमा को आहत करता है। गृह मंत्री अमित शाह ने सूझ-बूझ का परिचय देते हुए अपनी ओर से इन विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्वीकार भी कर लिया। इसके बाद अब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर ऐसी इमानदार, समानतापूर्ण और आदर्श व्यवस्था क्यों नहीं बननी चाहिए, जिससे उच्च पदों पर बैठे नेताओं के गंभीर अपराधों में गिरफ्तारी अथवा हिरासत में लिये जाने पर उनके लिए पद छोड़ना आवश्यक हो जाये? आखिर इस आदर्श व्यवस्था में समस्या क्या है? क्यों विपक्ष नैतिक और आदर्श राजनीतिक व्यवस्था में अवरोधक बनकर अपने नैतिक चरित्र पर प्रश्न खड़े कर रहा है? क्या इस विधेयक का असर सत्तापक्ष के नेताओं पर नहीं होगा? संसद का मानसून सत्र समाप्त हो गया है, लेकिन आनेवाले दिनों में सियासी रूप से इस संविधान संशोधन विधेयक पर विमर्श जारी रहेगा। क्या हैं इस विधेयक के मायने और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में यथार्थवादी सियासत को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रवादी स्वभाव की भारतीय जनता पार्टी अक्सर राजनीति की उन दुखती हुई रगों पर ही हाथ डालती आयी है, जो इस सद्भावी देश और समरस समाज को बदलने की कुव्वत रखते हैं। इससे कथित धर्मनिरपेक्षतावादियों, समाजवादियों और साम्यवादियों की बौखलाहट देखते ही बनती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित भाजपा की दशक भर से ज्यादा देशव्यापी सियासी सफलता का राज भी यही है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के मानसून सत्र की समाप्ति से एक दिन पहले एकजुट विपक्ष के विरोध और हंगामे के बीच सदन में जो संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025, ह्यसंघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 को पेश किया और उसके बाद उनके ही प्रस्ताव पर सदन ने तीनों विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति को भेजने का जो निर्णय लिया, वह देश और स्वस्थ समाज की स्थापना की दिशा में एक और बहुत ही उपयोगी पहल है।
मोदी सरकार का साहसिक कदम है यह विधेयक
दरअसल यह मोदी सरकार का एक ऐसा साहसिक कदम है, जिससे न केवल विपक्ष चारों खाने चित हो जायेगा, बल्कि अपने भ्रष्टाचारी सियासी मिजाज और अपराध को बढ़ावा देने के स्वभाव या फिर उससे आंखें मूंदे रखने के स्वभाव की भारी राजनीतिक कीमत भी उसे चुकानी पड़ेगी। दिलचस्प बात तो यह है कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी आदि ने जिस अदूरदर्शी तरीके से इन तीनों विधेयकों का विरोध किया है, उससे उनकी भी भ्रष्ट और आपराधिक मनोवृत्ति को संरक्षण देने वाली कलई खुल चुकी है। यही वजह है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो टूक लहजे में कहा है कि अब देश की जनता को यह तय करना होगा कि क्या जेल में रह कर किसी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का सरकार चलाना उचित है अथवा नहीं। बता दें कि इससे पहले गृह मंत्री शाह ने गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार किये गये और लगातार 30 दिन हिरासत में रखे गये प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को पद से हटाने के प्रावधान वाले तीन विधेयक लोकसभा में पेश किये, जिन्हें सदन ने अध्ययन के लिए संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजने का फैसला किया।
राजनीतिक शुचिता के लिए जरूरी है यह कानून
दरअसल एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आप को कानून के दायरे में लाने का संविधान संशोधन पेश किया है, तो दूसरी ओर कानून के दायरे से बाहर रहने, जेल से सरकारें चलाने और कुर्सी का मोह न छोड़ने के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में पूरे विपक्ष ने इसका विरोध किया है। इसलिए सजग जनता उनको मुंहतोड़ जवाब देगी। देखा जाये तो दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से जेल में रहकर दिल्ली की सरकार चलायी, उसके दृष्टिगत ऐसा विधेयक लाना केंद्र सरकार के लिए नितांत जरूरी हो गया था। इसलिए सरकार ने पूरी तैयारी के साथ इसे लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया।
क्या है इस विधेयक में
मौजूदा तीनों विधेयक देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार की प्रतिबद्धता और जनता के आक्रोश को देखकर अमित शाह ने संसद में लोकसभा अध्यक्ष की सहमति से संवैधानिक संशोधन विधेयक पेश किया, ताकि महत्वपूर्ण संवैधानिक पद, जैसे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री जेल में रहते हुए सरकार न चला सकें। दूसरे शब्दों में इस विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक जीवन में गिरते जा रहे नैतिकता के स्तर को ऊपर उठाना और राजनीति में शुचिता लाना है। इन तीनों विधेयक से जो कानून अस्तित्व में आयेगा, वह यह है कि कोई भी व्यक्ति गिरफ्तार होकर जेल से प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र या राज्य सरकार के मंत्री के रूप में शासन नहीं चला सकता है। इसलिए शाह ने यह स्पष्ट कहा कि, संविधान जब बना, तब हमारे संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भविष्य में ऐसे राजनीतिक व्यक्ति भी आयेंगे, जो गिरफ्तार होने से पहले नैतिक मूल्यों पर इस्तीफा नहीं देंगे। वाकई विगत कुछ वर्षों में, देश में ऐसी आश्चर्यजनक स्थिति उत्पन्न हुई कि मुख्यमंत्री या मंत्री बिना इस्तीफा दिये जेल से अनैतिक रूप से सरकार चलाते रहे। बकौल शाह, इस विधेयक में आरोपी नेता को गिरफ्तारी के 30 दिन के अंदर अदालत से जमानत लेने का प्रावधान भी दिया गया है। अगर वे 30 दिन में जमानत प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो 31वें दिन या तो केंद्र में प्रधानमंत्री और राज्यों में मुख्यमंत्री उन्हें पदों से हटायेंगे, अन्यथा वे स्वयं ही कानूनी रूप से कार्य करने के लिए अयोग्य हो जायेंगे। जबकि कानूनी प्रक्रिया के बाद ऐसे नेता को यदि जमानत मिलेगी, तब वे अपने पद पर पुन: आसीन हो सकते हैं।
शाह ने कांग्रेस को इंगित करते हुए कहा कि देश को वह समय भी याद है, जब इसी महान सदन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधन संख्या 39 से प्रधानमंत्री को ऐसा विशेषाधिकार दिया कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती थी। इस प्रकार एक तरफ यह कांग्रेस की कार्य संस्कृति और उनकी नीति है कि वे प्रधानमंत्री को संविधान संशोधन करके कानून से ऊपर करते हैं, जबकि, दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की नीति है कि हम हमारी सरकार के प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्रियों को ही कानून के दायरे में ला रहे हैं।
ऐसे में सवाल है कि आखिर इस युगांतरकारी बिल से भाजपा आमलोगों को क्या संदेश देना चाहती है। इसका जवाब यह है कि संसद का मानसून सत्र पूरा होने के महज एक दिन पहले केंद्र की एनडीए सरकार ने लोकसभा सें संविधान संशोधन विधेयक पेश किया और इसे व्यापक चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि इस विधेयक के जरिये बीजेपी सिर्फ यह नहीं बताना चाह रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी मोर्चों पर लड़ाई जा रही है, बल्कि राजनीति के अपराधीकरण को लेकर भी एक ठोस संदेश दे रही है। इससे आमलोगों के बीच सकारात्मक संदेश जायेगा। जहां तक राजनीति और नैतिकता की बात है, तो जनप्रतिनिधि होने के नाते यह बहुत जरूरी है। इस बाबत लोगों की सोच है कि संविधान निर्माताओं ने भी यह सोचा होगा कि अपराधी और भ्रष्ट लोगों को राजनीति से दूर रखा जाये, लेकिन तब इसका प्रावधान इसलिए नहीं डाला गया, क्योंकि उस समय राजनीति में नैतिकता थी। आरोप लगने भर से लोग कुर्सी छोड़ देते थे। लेकिन अब स्थिति यह नहीं है। अब लोग जेल से ही सरकार चलाना चाहते हैं। इसलिए कानून के जरिये यह सुनिश्चित किया जायेगा कि अपराधी और भ्रष्ट लोग सत्ता से दूर रहें। कुल मिलाकर मौजूदा बिल सियासत में व्याप्त व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के खिलाफ है। ऐसा किया जाना राष्ट्रहित और जनहित दोनों में जरूरी है।