कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी सोची-समझी राजनीति के तहत एक बार फिर महिला आरक्षण के मुद्दे को आगे कर दिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस संबंध में पत्र लिखकर महिला आरक्षण विधेयक को समर्थन देने की पेशकश की है। अब इस राजनीति की गेंद सत्तारूढ़ भाजपा के पाले में है। भाजपा ऐसी पेशकश को लेकर थोड़ा परेशानी में पड़ सकती है, लेकिन भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने संकेत दिए हैं कि सरकार और पार्टी में शीर्ष स्तर पर इस विधेयक को लेकर चर्चा हो रही है और सरकार इस विधेयक को पारित करा सकती है। महिला आरक्षण विधेयक में महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है और यह विधेयक नौ मार्च 2010 में राज्यसभा में पारित भी हो चुका है। अब लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत है तो विधेयक आसानी से पारित किया जा सकता है। भाजपा विधेयक के पक्ष में है और उसने अपने 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में इसे कानून बनाने का वादा भी किया था। भाजपा इस विधेयक को भूली अथवा नहीं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसकी याद ताजा करके इसका कुछ श्रेय अपने खाते में डालने का दांव खेल लिया है। हालांकि लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव व शरद यादव की पार्टियां और इनके नेता महिला आरक्षण के खिलाफ हैं। इनको दलील दी है कि पिछड़े वर्ग की महिलाओं को भी आरक्षण में आरक्षण दिया जाए। वैसे भाजपा और कांग्रेस ही इस विधेयक के खिलाफ कुछ नेता हैं। महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वालों की अब कोई विचारधारा बदली हो तो पता नहीं। क्योंकि काफी समय बीत चुका है। लेकिन, यदि भाजपा सरकार इसे कानून बनाने दे तो उसका महिला वोट बैंक बढ़ेगा ही, साथ ही यह भारतीय राजनीति के लिए एक ऐतिहासिक पहल भी होगी। आज देश में लगभग पचास प्रतिशत महिला मतदाता हैं। यदि उनमें से आधे वोट भी भाजपा को मिलते हैं तो उसे काफी लाभ होगा। भाजपा महिला सशक्तिकरण पर काफी जोर देती है। इसी के तहत उसने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद किया है।
साथ ही उज्जवल जैसी योजनाओं के प्रचार में लगी है। तीन तलाक पर स्पष्ट रूख अपनाकर मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं का भरोसा जीता है। भाजपा ने पार्टी के अंदर भी महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की हैं। यह अलग बात है कि इसकी अनुपालना कहां-कहां कितनी हो रही है? बहरहाल, अभी लोकसभा में एनडीए का पूर्ण बहुमत है और कांग्रेस उसके समर्थन को तैयार है तो महिला आरक्षण विधेयक आसानी से पारित हो सकता है। इसमें यदि कांग्रेस समर्थन न दे तो भी भाजपा विधेयक को पहले कभी भी विधेयक को पारित करा सकती थी तो सवाल है कि भाजपा व सरकार ने इसे आज तक पारित क्यों नहीं करवाया? वस्तुत: महिला आरक्षण का मुद्दा दो दशकों से ज्यादा समय से अटका पड़ा है। हालांकि इस समय कुछ राज्यों ने स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी तक आरक्षण दिया हुआ है और इसका असर भी हुआ है। किन्तु संसद और विधानसभाओं में उनको एक तिहाई आरक्षण देने को लेकर हर दल में विरोध के स्वर भी हैं। सत्तारूढ़ भाजपा भी शायद असमंजस में है। क्योंकि महिला आरक्षण का समर्थन करना और इसे पारित करने में कई सवाल बाधक हैं। कई नेता अपने-अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अब चूंकि सोनिया गांधी ने भाजपा के सामने आरक्षण विधेयक को समर्थन की पेशकश कर दी है तो भाजपा को इस पर कुछ तो सोचना ही होगा। यह आरक्षण मोदी सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। अब देखना है कि सरकार और भाजपा इस चुनौती को किस रूप में लेती है और इसे पारित करने की कितनी इच्छा शक्ति दिखाती है।