आजाद सिपाही संवाददाता
रांची। झारखंड में पिछड़ों की लड़ाई लड़ने में कोई पार्टी अगुवा रही है तो वह आजसू रही है। पार्टी ने राज्य में पिछड़ा आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी किये जाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। रविवार को पार्टी प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने बताया कि पार्टी ने इस मुद्दे पर सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया है और विभिन्न मंचों से आवाज उठाकर इसे बहस का विषय बनाया है। आजसू पार्टी अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण बढ़ाने की भी हिमायती रही है। उन्होंने बताया कि आजसू ने तर्क और तथ्य के साथ इस मुद्दे पर सरकार का ध्यान कई बार खींचा है। एकीकृत बिहार में पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण हासिल था पर अलग राज्य होने पर उन्हें 14 फीसदी का भागीदार बना दिया गया है। राज्य में आरक्षण के मसले पर वर्ष 2001 में मंत्री मंडलीय उपसमिति का गठन किया गया था। इस उपसमिति में सुदेश महतो भी शामिल थे।
सुदेश महतो ने 73 फीसदी आरक्षण की अनुशंसा की थी
उन्होंने कहा कि आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की पहल पर मंत्रीमंडलीय उपसमिति ने राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32, पिछड़ा को 27 तथा अनुसूचित जाति को 14 फीसदी यानी कुल 73 फीसदी आरक्षण देने की अनुशंसा की थी। वहीं रामचंद्र सहिस ने बताया कि वर्तमान में आजसू इस मुद्दे को उठा रही है। आजसू के लिए यह चुनावी नारा नहीं बल्कि उसकी विचारधारा है। झामुमो राज्य में कई बार सत्ता में रही पर उसने इस मुद्दे को हल करने की कोशिश नहीं की। यह झारखंड की जनता का वाजिब हक है जिसे पूरा होना चाहिए।
दूसरे राज्यों में मिल रहा है आरक्षण
पार्टी के टुंडी विधायक राजकिशोर महतो ने बताया कि तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों में पिछड़ों को 30 से 50 फीसदी तक आरक्षण हासिल है। राज्य की सरकारें आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ा सकती हैं। हाल में ही छत्तीसगढ़ की सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 82 फीसदी कर दिया है। अब छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति को 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण दिया गया है। आजसू पार्टी पिछड़ा वर्ग को इसी पैटर्न पर आरक्षण देने की मांग करती है। उन्होंने कहा कि जहां तक आरक्षण के प्रतिशत का सवाल है तो इंदिरा साहनी बनाम यूनियन आॅफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तय की है। उसी निर्णय में यह भी कहा गया है कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक भी हो सकती है। वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में आरक्षण के संबंध में कहा है कि यदि सरकार पचास प्रतिशत आरक्षण से अधिक आरक्षण व्यवस्था लागू करना चाहती है तो राज्य सरकार का निर्णय परिणामात्मक आंकड़ों पर आधारित होगा। झारखंड में स्थिति यह है कि इन प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद भी पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण नहीं दिया गया। राज्य में पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से वर्ष 2014 में ही पिछड़ों का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की अनुशंसा की जा चुकी है। आयोग ने अपनी अनुशंसा में स्पष्ट रूप से कहा है कि झारखंड में पिछड़ा वर्ग की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति दयनीय है। सरकारी नौकरियों में इनका प्रतिनिधित्व कम है। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी इस बात की पक्षधर है कि मेधा सूची में पिछड़ा वर्ग के जो युवा आते हैं उन्हें कोटे में सीमित नहीं किया जाना चाहिए।
इसलिए महत्वपूर्ण है आरक्षण का मुद्दा
दरअसल झारखंड में सवा तीन करोड़ की आबादी का करीब 73 फीसदी एसटी-एससी और ओबीसी का है। संख्या के लिहाज से इस वर्ग का हिस्सा बेहद प्रभावकारी है। इसलिए आजसू जितनी आबादी उतनी हिस्सेदारी का नारा बुलंद करते हुए इसकी मांग कर रही है। अगर राज्य के पिछड़ा वर्ग को उसका हक मिलेगा तो निश्चित रूप से उसकी स्थिति में सुधार आयेगा। इस मुद्दे को लेकर आजसू ने 17 फरवरी को झारखंड में अखिल भारत पिछड़ा वर्ग सभा और आजसू पार्टी की इकाई अखिल झारखंड पिछड़ा वर्ग महासभा के बैनर तले राष्टÑीय अधिवेशन सह प्रतिनिधि सभा का आयोजन किया गया था। सुदेश महतो ने कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया था। उन्होंने कार्यक्रम में कहा था कि आरक्षण सिर्फ आर्थिक नहीं प्रतिनिधित्व और भागीदारी का सवाल है। इसे महज आर्थिक ताने-बाने से देखा जाना बड़ी आबादी के संवैधानिक हितों की अनदेखी है।