वाकया तीन सितंबर का है। सीएम रघुवर दास गुमला के बख्तर सॉय मुंडल सिंह आॅडिटोरियम में भाजपा की कोर कमिटी की बैठक को संबोधित कर रहे थे। बातों ही बातों में वह कह उठे कि कोलेबिरा सीट इधर-उधर हो सकता है। पर दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में हमें 15 में से 14 सीटें जीतनी है। इसका निहितार्थ साफ है। कोलेबिरा सीट पर भाजपा आनेवाले विधानसभा चुनावों में जीत को लेकर शंकाग्रस्त है। ऐसा होने की पुख्ता वजह भी है। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा उपचुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के नमन विक्सल कोंगाड़ी ने भाजपा उम्मीदवार बसंत सोरेंग को हराया था। नमन विक्सल कोंगाड़ी को जहां 40 हजार 343 वोट मिले थे, वहीं भाजपा के बसंत सोरेंग को 30 हजार 685 वोट मिले थे। कोलेबिरा में विधानसभा उपचुनाव के समय जो परिस्थितियां थीं, कमोबेश वहीं परिस्थितियां आज भी हैं, इसलिए भाजपा को लगता है कि यहां उसकी चुनावी दाल गलेगी इसकी संभावना कम है। यह सीट झारखंड पार्टी के विधायक एनोस एक्का के सजा पाने के बाद खाली हुई थी। उपचुनावों में एनोस की पत्नी ने भी अपना जोर आजमाया था, पर सफलता हाथ नहीं लगी थी।
कोलेबिरा सीट तो एक बानगी है। झारखंड में कई ऐसी सीटें हैं जहां सत्तारूढ़ भाजपा के लिए मुकाबला कड़ा होने की पूरी संभावना है और भाजपा के 65 प्लस के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा यहां आकर ठहरे इसकी संभावना है।
दुमका और बरहेट हर हाल में जीतना चाहेगी भाजपा
भाजपा के 65 प्लस के अभियान में झारखंड में अगर कोई रोड़ा है, तो निश्चित रूप से झामुमो है। अन्य दलों को तो भाजपा किसी गिनती में रखती भी नहीं। वजह साफ है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद झामुमो ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। नवंबर-दिसंबर में झारखंड में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों में भाजपा पूरी कोशिश करेगी कि बरहेट सीट पर उसके उम्मीदवार जीतें, ताकि वह कह सके अब तो संथाल की जनता ने भी हेमंत और झामुमो को खारिज कर दिया। दुमका सीट पहले ही भाजपा के कब्जे में है। लुइस मरांडी यहां से विधायक और झारखंड सरकार में मंत्री हैं। और बरहेट सीट झामुमो इसलिए जीतना चाहेगी, क्योंकि यह महज सीट नहीं, बल्कि उसकी प्रतिष्ठा है। बीते चुनाव में हेमंत दुमका से हारे थे, पर बरहेट से जीत गये थे। अब भाजपा का फोकस खास तौर पर बरहेट सीट जीतने पर है। हाल में सीएम ने बरहेट में जो जन चौपाल लगायी तो यह चुनावी रणनीति के तहत उठाया गया कदम था। भाजपा बरहेट सीट से हेमंत को बेदखल करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। भाजपा की चुनावी रणनीति का फोकस भी कोल्हान और संथाल परगना है, क्योंकि यही झामुमो का गढ़ है। इसलिए आनेवाले विधानसभा चुनावों में शह और मात का दिलचस्प खेल भी यहां दिखेगा। दुमका और बरहेट सीट पर भाजपा और झामुमो में टक्कर उस वाटरलू युद्ध की तरह है, जो 18 जून 1815 को फ्रांस और अमेरिका के नेतृत्व में मित्र देशों के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में पराजय के बाद नेपोलियन का समय समाप्त हो गया था। आनेवाले चुनावों को लेकर हेमंत कितने संजीदा हैं, इसकी बानगी इसी से मिलती है कि उन्होंने कहा है कि अगर उन्हें अपनी बलि भी देनी पड़ेगी, तो इसके लिए तैयार हैं, पर झारखंड से भाजपा और रघुवर को उखाड़ फेकेंगे। हेमंत की तरह भाजपा भले ही मुखर न हो पर उसकी पूरी रणनीति है कि वह झारखंड से झामुमो को उखाड़ फेंके। फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
खूंटी और सिमडेगा सीट में भी कड़ी टक्कर: वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले भाजपा ने झारखंड विधानसभा की सभी सीटों का जो विश्लेषण किया है, उसमें खूंटी और सिमडेगा सीट पर पार्टी को कड़ी टक्कर मिलने के संकेत मिले हैं। इन दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। बीते लोकसभा चुनावों में भी यहां भाजपा का कमल बहुत मुश्किल से खिला और अर्जुन मुंडा की किस्मत जाग उठी।
चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अर्जुन मुंडा को 3.81 लाख वोट मिले, वहीं कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को 3.79 लाख वोट मिले। जाहिर है, हार-जीत के बीच का फासला सिर्फ 2075 मतों का था। विधानसभा चुनावों में इस सीट पर नीलकंठ सिंह मुंडा विजयी हुए थे और उन्हें झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनने का सुख भी हासिल हुआ। खूंटी लोकसभा क्षेत्र का मैक्रो एनालिसिस करें, तो इसमें छह विधानसभा सीटें, जिनमें भाजपा और झामुमो के दो-दो और आजसू तथा कांग्रेस के एक-एक विधायक हैं। भाजपा के खूंटी से नीलकंठ सिंह मुंडा और सिमडेगा से विमला प्रधान हैं। वहीं झामुमो का खरसावां से दशरथ गागराई और तोरपा से पौलुस सुरीन है। कोलेबिरा में कांग्रेस के विक्सल कोंगाड़ी और तमाड़ में आजसू के विकास सिंह मुंडा हैं। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों के रिजल्ट की बात करें तो खूंटी में झामुमो के जिदन होरो को हराकर नीलकंठ जीते थे। तोरपा में भाजपा के कोचे मुंडा को हराकर झामुमो के पौलुस सुरीन जीते थे। वहीं, बिशुनपुर की बात करें तो झामुमो के चमरा लिंडा ने भाजपा के समीर उरांव को हरा दिया था। बाद में समीर उरांव को भाजपा ने राज्यसभा भेज दिया। खरसावां में कांग्रेस के दशरथ गागराई ने अर्जुन मुंडा का हराया था। सिमडेगा सीट भाजपा की विमला प्रधान ने मेनन एक्का को हराकर हासिल की थी। कोलेबिरा सीट एनोस एक्का ने भाजपा के मनोज नागेशिया को परास्त कर हासिल की थी। पर उन्हें सजा होने के बाद इस सीट पर 2018 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के नमन विक्सल कोंगाड़ी जीते हैं। जाहिर है खूंटी लोकसभा में सत्ता में भाजपा और झामुमो की हिस्सेदारी बराबर की है। वहीं कांग्रेस और आजसू भी बराबर के हिस्सेदार हैं। ये झारखंड की वे सीटें हैं जो उग्रवाद प्रभावित हैं।
लिट्टीपाड़ा और जगनाथपुर सीट भी लेगी भाजपा की कड़ी परीक्षा
आनेवाले विधानसभा चुनावों में लिट्टीपाड़ा और जगन्नाथपुर सीट भी भाजपा की कड़ी परीक्षा लेंगी। 2014 के विधानसभा चुनावों में इस सीट पर झामुमो के डॉ अनिल मुर्मू जीते थे। उनके निधन के बाद वर्ष 2017 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ था, जिसमें झामुमो के साइमन मरांडी ने भाजपा के हेमलाल मुर्मू को हरा दिया था। लिट्टीपाड़ा में साइमन ने भाजपा के हेमलाल को 12 हजार नौ सौ मतों के अंतर से हराया था। पाकुड़ का लिट्टीपाड़ा झामुमो का अभेद्य दुर्ग माना जाता है और इस दुर्ग को भाजपा आनेवाले विधानसभा चुनावों में ढहाने की पूरी कोशिश करेगी। आनेवाले विधानसभा चुनावों में भाजपा फिर इस सीट पर हेमलाल मुर्मू को टिकट दे सकती है। वहीं झामुमो साइमन पर दावं खेलेगी। नतीजा क्या निकलेगा यह चुनाव का रिजल्ट बतायोगा। पर इतना तो तय है कि यहां साइमन और हेमलाल के दमखम की परीक्षा होगी। जगन्नाथपुर सीट पर बीते विधानसभा चुनावों में भाजपा के मंगल सिंह सुरेन को हराकर जय भारत समानता पार्टी की उम्मीदवार गीता कोड़ा विजयी हुईं थी। कांग्रेस का दामन थामकर गीता अब लोकसभा सांसद हो चुकी हैं।
इस सीट से दो बार 2009 और 2014 में जीतकर गीता कोड़ा विधायक रही हैं। इससे पहले 2005 में इस सीट से मधु कोड़ा विधायक बने थे। ऐसे में इसकी संभावना है कि मधु कोड़ा अपनी पत्नी की खाली जगह में खुद की जगह फिर से बनाने का प्रयास करें। भाजपा यह सीट अपने पाले में लाना चाहेगी पर अपनी यह चाहत पूरा करना उसके लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि कोड़ा दंपत्ति की इस सीट पर पकड़ जगजाहिर है। स्पष्ट है कि झारखंड विधानसभा की ये सीटें बेहद हॉट केक बनेंगी और यहां मुकाबला भी कांटे का होगा, क्योंकि हर कोई इन्हें जीतने में अपनी पूरी ताकत लगायेगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि ये सीटें ही झारखंड का राजनीतिक भविष्य तय करेंगी।
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