राजनीति की गाड़ी संगठन की धुरी पर ही चलती है। तकनीकी विस्तार और पहुंच के बावजूद संगठन का पर्याय अब तक नहीं खोजा जा सका है। भारत में राजनीतिक दलों के भीतर संगठन को चुस्त-दुरुस्त बनाने की कवायद सबसे पहले भाजपा ने ही शुरू की। अंदरूनी चुनाव और संगठन को ठोस आकार देने में पार्टी सबसे आगे रही है। अभी पार्टी ने अपने नये राष्ट्रीय पदधारियों की जो सूची जारी की है, उसे देख कर इस धारणा की पुष्टि होती है कि पार्टी संगठन पर सबसे अधिक ध्यान देती है और हमेशा दूरगामी लक्ष्य को सामने रख कर रणनीति तैयार करती है। इस बार भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने अपनी टीम में झारखंड जैसे राज्यों को खासी तरजीह दी है, क्योंकि यहां से उसे काफी उम्मीदें हैं। नयी टीम में दर्जन भर राष्ट्रीय उपाध्यक्षों में से दो झारखंड के हैं। झारखंड ऐसा अकेला राज्य है, जहां के दो नेताओं रघुवर दास और अन्नपूर्णा देवी को उपाध्यक्ष बनाया गया है। यही नहीं, भाजपा ने झारखंड के ही सांसद समीर उरांव को रातोंरात राष्टÑीय चेहरा बना दिया है। उन्हें अनुसूचित जनजाति मोर्चा का राष्टÑीय अध्यक्ष बनाया है। भाजपा के लिए झारखंड हमेशा एक मजबूत दुर्ग रहा है। पिछले दिसंबर में विधानसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद से भाजपा ने झारखंड पर विशेष ध्यान दिया है और ऐसा लगने लगा है कि पार्टी अभी से ही 2024 को ध्यान में रख कर तैयारी कर रही है। भाजपा की नयी केंद्रीय टीम में झारखंड को मिली इतनी तरजीह के कारणों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
शनिवार को जब दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी की केंद्रीय टीम का एलान हो रहा था, दिल्ली से 12 सौ किलोमीटर दूर झारखंड की राजधानी रांची में पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में मौजूद कार्यकर्ता बेहद खुश थे। उनकी खुशी जायज भी थी, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ कि राष्ट्रीय टीम में राज्य के तीन नेताओं को प्रमुख पद दिये गये। दो नेताओं को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, जबकि अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष का पद भी झारखंड के नेता को ही दिया गया। भाजपा के भीतर झारखंड की अहमियत इसी बात से प्रमाणित होती है कि पार्टी के दर्जन भर राष्ट्रीय उपाध्यक्षों में से दो पद झारखंड के अलावा किसी और प्रदेश को नहीं मिला है।
देश का सबसे बड़ा राज्य होने के नाते नयी टीम में स्वाभाविक रूप से उत्तरप्रदेश का दबदबा बरकरार है। यूपी से कुल 11 नेताओं को जगह मिली है। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि बिहार और बंगाल को झारखंड के मुकाबले अधिक तरजीह मिलेगी, लेकिन पार्टी ने अपने इस दुर्ग को मजबूत करने पर अधिक ध्यान दिया है। नड्डा ने नयी टीम बनाते समय आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जातीय समीकरण का भी पूरा खयाल रखा है। कई नये चेहरों को राष्ट्रीय टीम में पहली बार मौका मिला है, तो कई पुरानों को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया है। उन्होंने राम माधव और अनिल जैन सरीखे नेताओं को नयी टीम में नहीं रखा है, जबकि सीटी रवि और तरुण चुग जैसे नये नेता महासचिव बनाये गये हैं। पार्टी ने रघुवर दास के साथ छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी उपाध्यक्ष बनाया है। पार्टी की इस नयी टीम में सबसे आश्चर्य बिहार को लेकर हुआ है, जहां से केवल सांसद राधा मोहन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। राज्य के बाकी चार नेताओं, राजीव प्रताप रूढ़ी, सैयद शाहनवाज हुसैन, संजय प्रसाद मयूख और गुरुप्रकाश को प्रवक्ताओं की टीम में रखा गया है। इसके अलावा एक और चौंकानेवाला नाम पश्चिम बंगाल के राहुल सिन्हा का है, जिन्हें नयी टीम में जगह नहीं मिली है। वहां से पार्टी के सबसे चर्चित चेहरे मुकुल राय को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी है, जबकि अनुपम हाजरा को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है। राहुल सिन्हा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।
झारखंड के जिन तीन नेताओं को नड्डा ने अपनी टीम में जगह दी है, वे सभी सांगठनिक कार्यों में सिद्धहस्त माने जाते हैं। रघुवर दास राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और राज्य में राजनीतिक स्थिरता कायम करने में उनका बड़ा योगदान है। भाजपा नेतृत्व को यह अच्छी तरह पता है कि जब-जब झारखंड में रघुवर दास को पार्टी में जिम्मेदारी मिली, उन्होंने अच्छा परिणाम दिया। अन्नपूर्णा देवी तपी-तपायी राजनेता हैं और पहली ही बार में लोकसभा चुनाव जीतना उनकी राजनीतिक सूझबूझ का परिचायक रहा है। समीर उरांव को अनुसूचित जनजाति मोर्चा का अध्यक्ष बना कर पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह आदिवासियों के बीच अपने घटते जनाधार को दोबारा हासिल करने के प्रति गंभीर है। पिछले पांच साल में समीर उरांव ने पार्टी के प्रति समर्पण की मिसाल पेश की है। रघुवर के शासन काल में विपक्ष के हमले का जवाब वही दे रहे थे। यही नहीं, उन्हें जहां जिस काम में लगाया गया, उसमें उन्होंने सफलता पायी। इसी का परिणाम रहा कि पहले पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा और अब उन्हें राष्टÑीय चेहरा बना दिया है।
भाजपा की नयी टीम में झारखंड को दी गयी तरजीह के कई मायने निकाले जा सकते हैं। राज्य के पूर्व सीएम रघुवर दास ने निश्चित तौर पर एक समय पार्टी को नयी मजबूती दी और लोकसभा के चुनाव में पुराना प्रदर्शन दोहरा कर संगठन के भीतर अपना सिक्का जमाया। यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में वह पार्टी की नैया पार नहीं लगा सके, जिसके कई और कारण हो सकते हैं। रघुवर दास को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर पार्टी ने वैश्य समुदाय को बड़ा संदेश दिया है, जिसने विधानसभा चुनाव में उसका साथ छोड़ दिया था। इसके अलावा कोडरमा सांसद अन्नपूर्णा देवी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर पार्टी ने झारखंड में जातीय संतुलन के साथ-साथ महिलाओं को साधने की कोशिश की है, जिसका नतीजा आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है। इसके साथ पार्टी ने राज्य के यादव मतदाताओं को भी पक्ष में मोड़ने की कवायद की है। राज्यसभा सांसद समीर उरांव को, जो पिछले कुछ साल से आदिवासी इलाकों में पार्टी की गतिविधियों का नेतृत्व कर रहे हैं, इस बार बड़ी जिम्मेवारी दी गयी है। उन्हें अनुसूचित जनजाति मोर्चा की कमान सौंपी गयी है। समीर उरांव गुमला इलाके से आते हैं, जहां पार्टी का जनाधार बेहद मजबूत रहा है। उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप कर पार्टी ने विधानसभा चुनावों में उससे छिटके आदिवासी मतदाताओं को एक खास संदेश दिया है।
अब इन तीन नेताओं पर पार्टी को आगे ले जाने की जिम्मेवारी आ गयी है। पार्टी की प्रदेश इकाई इनका साथ निभाने के लिए पूरी तरह तैयार है। इनके सामने सबसे पहली चुनौती के रूप में दुमका और बेरमो का उप चुनाव है, जिसे जीतने के लिए इन्हें अपना सब कुछ झोंकना होगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ये तीन नेता अपनी नयी जिम्मेवारियों को कितनी सफलता से निभा पाते हैं और जिस उम्मीद में पार्टी ने उन्हें यह पद सौंपा है, उसमें वे कितने सफल हो पाते हैं।