झारखंड की दो विधानसभा सीटों के लिए होनेवाले उप चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी गयी है। दुमका और बेरमो में तीन नवंबर को मतदान होगा। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में होनेवाला यह पहला उप चुनाव है। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही इन दोनों सीटों पर कब्जे के लिए सियासी रणनीतियां बनायी जाने लगी हैं। यह मुकाबला बेहद कांटे का होगा, क्योंकि सत्तारूढ़ झामुमो और कांग्रेस जहां इन दोनों सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी, वहीं भाजपा विधानसभा चुनाव में हुई करारी पराजय का बदला लेने की हरसंभव कोशिश करेगी। सीटों पर कब्जे के साथ सत्ताधारी गठबंधन के लिए एक और चुनौती इस उप चुनाव में है और वह यह कि इन दोनों सीटों के परिणाम राज्य सरकार के नौ महीने के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड भी होगा। जहां तक प्रत्याशियों का सवाल है, तो सत्तारूढ़ गठबंधन में कोई व्यवधान नहीं है, उसने दुमका से बसंत सोरेन के नाम की घोषणा भी कर दी है और बेरमो से भी लगभग तय ही हो चुका है, लेकिन भाजपा और आजसू के बीच बेरमो सीट को लेकर पेंच फंसता दिख रहा है। दुमका झामुमो की परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन 2014 में भाजपा ने इस पर कब्जा जमाया था, हालांकि 2019 में यहां से हेमंत सोरेन को जीत मिली थी। उधर कोयला क्षेत्र की प्रमुख सीट बेरमो में राजेंद्र प्रसाद सिंह का दबदबा जगजाहिर है, हालांकि बीच में भाजपा ने यहां से जीत हासिल की थी। कोरोना काल में राज्य में होनेवाला यह पहला उप चुनाव राजनीति की नयी इबारत लिखेगा और झारखंड के सियासी सफर की दिशा तय करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। दुमका और बेरमो में होनेवाले उप चुनाव पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

झारखंड की उप राजधानी दुमका और कोयला क्षेत्र की प्रमुख सीट बेरमो में तीन नवंबर को उप चुनाव कराये जायेंगे। चुनाव आयोग की इस घोषणा के साथ ही झारखंड के राजनीतिक दलों ने रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। चुनाव का परिणाम चाहे कुछ भी हो, लेकिन एक बात तय है कि दोनों ही सीटों पर मुकाबला इस बार बेहद कांटे का होगा। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इन दोनों सीटों का चुनाव परिणाम झारखंड के सियासी सफर की दिशा तो तय करेगा ही, साथ ही आनेवाले दिनों में राज्य की राजनीतिक परिस्थितियां भी इससे निर्धारित होंगी।
झारखंड में अब तक हुए सभी चुनावों में कांटे का मुकाबला हुआ है। कोई भी चुनाव किसी के लिए एकतरफा नहीं रहा, लेकिन यहां हुए उप चुनाव हमेशा ही बेहद रोमांचक हुए हैं। यदि उप चुनावों के इतिहास पर नजर डालें, तो साफ हो जाता है कि राज्य में विधायकों के निधन के कारण जहां उपचुनाव हुए, वहां उनके उत्तराधिकारियों को जीत मिली, लेकिन दूसरे कारणों से खाली होनेवाली सीटों पर अधिकांश बार प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई। गोमिया और सिल्ली इसके अपवाद रहे। वहां अदालती आदेश के कारण जिन विधायकों की सदस्यता गयी, उनकी पत्नियों ने उप चुनाव में जीत हासिल की। संयोग से ये दोनों झामुमो से ही थीं। इस रोचक रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में दुमका और बेरमो में होनेवाला उपचुनाव बेहद दिलचस्प होने की पूरी संभावना है। दुमका सीट जहां हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने के कारण खाली हुई है, वहीं राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन के कारण बेरमो सीट पर उपचुनाव होना है।
दिसंबर में हुए चुनाव में दुमका में झामुमो के हेमंत सोरेन ने भाजपा की लुइस मरांडी को 13 हजार से अधिक वोटों से हराया था। हेमंत को 81 हजार से कुछ अधिक, जबकि लुइस मरांडी को 68 हजार से कुछ कम मत मिले थे। हेमंत ने बरहेट सीट से भी चुनाव जीता था। इसलिए उन्होंने बाद में दुमका सीट छोड़ दी। बेरमो सीट से कांग्रेस के दिग्गज राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को 25 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था।
राजेंद्र सिंह को 89 हजार से कुछ कम वोट मिले थे, जबकि बाटुल को 63 हजार से कुछ अधिक। राजेंद्र सिंह के निधन के कारण यह सीट खाली हुई है। 2014 के चुनाव में ये दोनों सीटें भाजपा के कब्जे में गयी थीं।
दुमका सीट को झामुमो के गढ़ के रूप में जाना जाता है। हालांकि लोकसभा चुनाव में इस पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया और यहां से झामुमो के जन्मदाता और झारखंड के कद्दावर नेता शिबू सोरेन को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अभी वहां स्थिति कुछ बदली हुई है। हाल के दिनों में दुमका के भाजपा सांसद अपनी ही पार्टी के विधायक के निशाने पर आ गये हैं और उप चुनाव के नजरिये से इस विवाद का खासा सियासी महत्व है।
उधर विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा में आये बाबूलाल मरांडी ने साफ कर दिया है कि वह दुमका से चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके बाद वहां भाजपा की राह मुश्किल होती दिख रही है।
लुइस मरांडी दुमका से भाजपा की प्रत्याशी होंगी या नहीं, यह अभी तय नहीं है, लेकिन भाजपा के अंदरखाने उनके नाम पर संघ की आपत्ति के मद्देनजर दोबारा विचार किया जा रहा है। बाबूलाल मरांडी ने अपने एक विश्वस्त परितोष सोरेन को मैदान में उतारने का सुझाव दिया है, लेकिन भाजपा उनके सुझाव पर अमल करेगी या नहीं, यह एक-दो दिनों में स्पष्ट हो जायेगा।
उधर बेरमो सीट पर आजसू भी ताल ठोंक रहा है। भाजपा को भरोसा है कि वह आजसू को मना लेगी। इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट में उसके एकमात्र सांसद को जगह देने का दांव खेला जा सकता है। यदि आजसू बेरमो पर समझौता कर भी लेती है, तो भी भाजपा का सिरदर्द कम नहीं होगा, क्योंकि बेरमो से टिकट के कई दावेदार अभी से किलेबंदी में लग गये हैं।
उधर सत्तारूढ़ गठबंधन के सामने दुमका और बेरमो में प्रत्याशी चयन को लेकर कोई अड़चन नहीं है। दुमका सीट से झामुमो प्रत्याशी देगा, जबकि बेरमो से कांग्रेस लड़ेगी। जहां तक प्रत्याशी के नाम का सवाल है, तो जब हेमंत ने दुमका सीट छोड़ी थी, तभी से इस बारे में साफ हो गया था कि यहां से शिबू सोरेन के परिवार का ही कोई सदस्य ही चुनाव लड़ेगा। शिबू सोरेन राज्यसभा जा चुके हैं।
इधर झामुमो महासचिव ने घोषणा कर दी है कि दुमका से बसंत सोरेन ही प्रत्याशी होंगे। बेरमो से राजेंद्र सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी कुमार जयमंगल सिंह उर्फ अनुप सिंह को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाया जाना लगभग तय है। वह अपने पिता के जीवनकाल में ही कोयला क्षेत्र के साथ-साथ कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हो गये थे और इलाके में उनकी अलग छवि भी है। कांग्रेस अनुप सिंह को प्रत्याशी बना कर भाजपा के सामने अतिरिक्त चुनौती पेश करेगी, क्योंकि वहां से कोई युवा दावेदार नहीं है।
यह उप चुनाव हेमंत सोरेन के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव की परीक्षा तो लेगा ही, साथ ही हेमंत सरकार के अब तक के कामकाज पर जनता की राय भी व्यक्त करेगा। दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी की क्षमता भी इस उप चुनाव में साबित हो जायेगी। इस तरह इस उपचुनाव का बेहद रोमांचक होना तय है। चुनाव का अंतिम परिणाम क्या होगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि किसी के लिए भी ये दोनों सीटें जीत पाना आसान नहीं होगा।

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