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    Home»राज्य»बिना अध्यात्म के भौतिक विकास कभी भी सुख-शांति का आधार हो नहीं सकता : राज्यपाल आचार्य देवव्रत
    राज्य

    बिना अध्यात्म के भौतिक विकास कभी भी सुख-शांति का आधार हो नहीं सकता : राज्यपाल आचार्य देवव्रत

    adminBy adminSeptember 2, 2023No Comments6 Mins Read
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    आबूरोड (सिरोही)। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि आज वैज्ञानिकों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में हमें चांद पर पहुंचा दिया। ये सब घटनाएं मानव के भौतिक विकास की परिचायक हैं। हमने बड़े-बड़े कारखाने, रेल पटरियां बनाईं, उद्योग स्थापित किए लेकिन जब आध्यात्मवाद की बात आती है तो हम बहुत पीछे चल रहे हैं। भौतिकवाद और आध्यात्मवाद जब एक-दूसरे का सहायक बनता है तो वह पूर्णता की ओर बढ़ता है। ब्रह्माकुमारीज़ इन दोनों चिंतन को लेकर आगे बढ़ रही हैं। हम आध्यात्मिक रूप से विकसित हुए बिना भौतिक साधनाें का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे। बिना अध्यात्म के विकास कभी भी सुख-शांति का आधार हो नहीं सकता है। महान साइंटिस्ट ने कहा था कि साइंस, विज्ञान और आध्यात्मवाद जब एक-दूसरे के पूरक बनते हैं तो वह इस परमात्मा द्वारा बनाई गई सृष्टि का आनंद लेते हैं।

    गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत शनिवार को ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के शांतिवन परिसर स्थित डायमंड हाल में आयोजित कला-संस्कृति प्रभाग के राष्ट्रीय सम्मेलन काे संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने दीप प्रज्वलन कर सम्मेलन का विधिवत उद्घाटन किया। इसमें देशभर से कला और संस्कृति प्रेमी भाग ले रहे हैं। सकारात्मक परिवर्तन की कला से आनंदमय जीवन विषय पर संबोधित करते हुए राज्यपाल आचार्य ने कहा कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये मानव के शत्रु हैं। असली विजय अंदर की विजय है। हमारे चिंतन में, वेदों में बाहर की जीत को जीत नहीं माना जाता था। असली जीत हमारे अंदर की जीत है। अंदर के शत्रुओं को जीतने वाला ही विजेता है। यहां का चिंतन हमारी खुराक है। वैदिक साहित्य का पुरातन खजाना सकारात्मक और विश्वव्यापी चिंतन है। हमारी असली खुराक अध्यात्म चिंतन है, जो ब्रह्माकुमारीज़ में मिलता है।

    राज्यपाल ने कहा कि यूएनओ के विधान में एक बात लिखी है कि जो युद्ध मैदान में लड़े जाते हैं, वह युद्ध पहले मानव मन की भूमि में लड़े जाते हैं। कोई सकारात्मक सोच को लेकर किसी से लड़कर दिखाए। कोई पहले मन को दूषित करेगा, क्रोध की आग, ईर्ष्या में जलाएगा तब ही दूसरों को दुख दे सकता है। इसलिए हम परमात्मा से कहते हैं कि हे! परमात्मा मेरा मन नियंत्रण में हो। राजयोग से ही मन पूरा नियंत्रण में आएगा। जीवन को सकारात्मकता की दिशा में बढ़ाएंगे तो पवित्रता आएगी, आनंद आएगा। यह चिंतन साधु-संत और ब्रह्माकुमारी बहनों द्वारा लोगों को दिया जा रहा है। हमने ही नारा दिया वसुधैव कुटुम्बकम्। सारी दुनिया मेरी है और सारी दुनिया मैं हूं। यही तरीका वेदों ने सिखाया। न हमने किसी को अपना बनाया न किसी के बने।

    राज्यपाल ने कहा कि यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति। सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते अर्थात् ओ भोले भक्त जिस समय तेरा चिंतन, तेरी सोच इतनी उदार बन जाएगी। जब तू इतना सकारात्मक सोचना शुरू कर देगा कि जब तू दूसरी की आत्मा को अपनी आत्मा में देखना शुरू कर देगा उसी दिन तेरा मुझसे साक्षात् हो जाएगा, तू मुझ से मिल जएगा। ऐसी इंसानियत जो दूसरे के मर्म रूपी घाव को अपने सकारात्मक विचारों से ठीक कर सकती हो वह आज दिखाई नहीं देती है। आज मनुष्य उस पत्थर की तरह हो गया है जो दूसरों की हत्या होने पर भी आंसू नहीं बहाता है। इसका कारण है हम भौतिक रूप से बहुत आगे बढ़े, लेकिन आध्यात्मिक रूप से पिछड़ते चले गए हैं। हमारा मेडिटेशन, ध्यान योग, वेद, दर्शन शास्त्र, रामायण, गीता यह हमारे ऋषियों का चिंतन था। आज नई पीढ़ियां इसे देख भी नहीं पाती हैं। आज ब्रह्माकुमारीज़ जैसे केंद्र इनके प्रसार में लगी हैं। इनके समस्त विश्व में परम विस्तार की आवश्यकता है। जिससे सही अर्थों में मानव अपने स्वरूप को समझकर के परमात्मा द्वारा प्रदत्त इस जीवन को सफल कर सके।

    राज्यपाल ने कहा कि परमात्मा सतचित् आनंद, दयालु, निर्विकार, सर्वेश्वर, अमर, पवित्र है ऐसे परमात्मा के सान्निध्य में आकर ये सारे गुणों के आनंद मिलने का रास्ता ब्रह्माकुमारीज़ जैसे स्थलों पर आकर उदित होता है। राज्यपाल ने सिकंदर के भारत पर आक्रमण का एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि जब सिकंदर जाते समय अपने साथ संत को ले जाने की जिद करने लगा तो संत ने कहा ओ सिकंदर जिसे तू देख रहा है, वह मैं नहीं हूं। जो तू देख रहा है, वह मैं नहीं हूं। जो मैं हूं उसे तेरी तलवार नहीं काट सकती। न ही आग जला सकती है। न पानी गला सकता। यह सुनकर सिकंदर की तलवार साधु के सामने गिर पड़ी और नतमस्तक हो गया। उसने अपनी हार स्वीकार कर ली। ये है भारत का अध्यात्म। हमारी विरासत।

    मुंबई से आईं प्रसिद्ध फिल्म एक्ट्रेस मधु शाह ने कहा कि आस्था चैनल पर ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी को सुना और धीरे-धीरे मेरी सोच बदलने लगी। उनकी क्लास से जाना कि हमें डेली लाइफ में कैसे थॉट्स करना है। यहां से सीखा है कि हमें अपने कर्म से लोगों को अपने होने का अहसास कराना है। खुद में सकारात्मक परिवर्तन लाना है। यही बात में सीखकर जा रही हूं। कला-संस्कृति प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा राजयोगिनी चंद्रिका दीदी ने उपरोक्त विषय पर कहा कि वास्तव में हम सभी आत्माएं हैं। परम कलाकार परमपिता शिव परमात्मा 87 साल से विश्व परिवर्तन का कार्य करा रहे हैं। यहां 13 लाख से अधिक युवा, बड़े, बच्चे-बुजुर्ग इस कार्य में सहयोगी बने हुए हैं। आज से हम खुद को एक महान आत्मा, चैतन्य आत्मा, दिव्य आत्मा समझना शुरू कर दें। परमात्मा आनंद के सागर हैं, प्रेम के सागर हैं, सुख के सागर हैं, सर्वशक्तिमान हैं, उसी तरह मैं आत्मा आनंद स्वरूप, प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप हूं। इसी सोच, संकल्प और भावना से कर्म में आने से मन परिवर्तन, व्यक्ति परिवर्तन, समाज परिवर्तन होगा, हो रहा है। आज से संकल्प करें कि मुझे अपनेआप में सकारात्मक परिवर्तन करना है। जो करना चाहिए वही करेंगे वह सकारात्मक है। उन्होंने सभी को संकल्प कराया कि आज के इस कला संस्कृति कार्यक्रम के अंतर्गत मैं अपने आप से संकल्प करता हूं कि मैं अपने जीवन में संपूर्ण सकारात्मकता को अपनाकर, औरों के जीवन में भी सकारात्मकता का चिंतन करके अपना संपूर्ण योगदान दूंगी।

    संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके डॉ. निर्मला दीदी ने कहा कि मन ही दुख और सुख का कारण है। जो पॉजीटिव सोचने वाला है तो उसी स्थिति को पॉजीटिव स्थिति से सोचेंगे और खुश रहेंगे। जो नेगेटिव सोचने वाले होंगे उसी को नेगेटिव सोचकर खराब कर देंगे। साइंस ने सबकुछ हासिल कर लिया है लेकिन पॉजीटिव जीवन जीने की कला ब्रह्माकुमारीज़ सिखा रही है।

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