रांची। साइकिलिंग में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में दर्जनों मेडल जीतने वाली सरिता कुमारी के पास अपनी साइकिल खरीदने के पैसे नहीं हैं। सरिता लोहरदगा जिले के करचाटोली की रहने वाली है। पिता मजदूरी करते हैं। सरिता करचा टोली निवासी मजदूर सनिया उरांव और सातो उरांव की बेटी है, जिसने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जूनियर साइकिलिंग में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पदकों की झड़ी लगा दी, लेकिन आज तक जिले के अधिकारी और जनप्रतिनिधि उनको पुरस्कृत नहीं कर पाये, जिसका मलाल खुद सरिता को भी होता है।
सरिता का कहना है कि घर की बेटी को अगर घर में सम्मान नहीं मिले, तो फिर मन छोटा होता ही है। मेहनत को मुकाम तक ले जाने में दिक्कत आती है। सरिता कुमारी ने एथलेटिक्स से अपनी शुरूआत की थी, लेकिन एक दिन साइकिलिंग की ट्रायल में जाने के बाद उनकी दुनिया ही बदल गयी। और फिर देखते ही देखते जिला से राज्य और राज्य से देश के लिए खेलने का गौरव प्राप्त किया। 2021 से साइकिलिंग के क्षेत्र में पहुंची सरिता ने अब तक दर्जनों गोल्ड मेडल सहित कई पदक जीते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 2022 में गुवाहाटी में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में तीन गोल्ड और एक सिल्वर मेडल के साथ बेस्ट राइडर का खिताब भी जीता था।
वहीं 2023 में रांची में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 3 गोल्ड जीत कर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए भारत का प्रतिनिधित्व किया। उसमें 2024 में आयोजित जूनियर एशियन चैंपियनशिप में 1 गोल्ड और एक ब्रॉन्ज मेडल प्राप्त किया था। वहीं 2024 में चीन में आयोजित जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में 500 मीटर साइकिलिंग रेस में पदक से वंचित रही, लेकिन मात्र 36.6 सेकंड में रेस पूरा कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम किया। जो इतनी कम उम्र में सरिता के लिए कर पाना गौरव की बात है।
सरिता की इस शानदार उपलब्धि पर देश दुनिया तारीफें करते नहीं थक रहे हैं, लेकिन अपने राज्य और जिला में उसकी कोई पूछ नहीं है। सरिता को न तो कोई सम्मान मिला और न ही कोई संसाधन, जिससे वो इस क्षेत्र में और कामयाब होकर राज्य और देश का नाम रौशन कर सके। सरिता बताती हैं कि पापा मजदूरी करते हैं लेकिन अब हाथ में खराबी के कारण वे भी घर में बैठे हैं, जिससे घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। वहीं उनको वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने और बेहतर तैयारी के लिए लगभग 14-16 लाख की लागत वाली साइकिल की जरूरत है, जिसके लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। उसने राज्य सरकार से अपील की है कि उन्हें मदद दी जाये, जिससे वह इस क्षेत्र में और बेहतर कर सके। सरिता खेलो इंडिया एकेडमी पटियाला से प्रशिक्षण लेकर फिलहाल दिल्ली में इसी एकेडमी में रह कर तैयारी कर रही है।