विशेष
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड इन दिनों एक नये किस्म की परिस्थिति से जूझ रहा है। प्रदेश में पिछले एक सप्ताह के दौरान जिस तरह से दर्जन भर युवाओं की असमय मौत हुई है, उसने हर व्यक्ति को झकझोर कर रख दिया है। ये युवक झारखंड सरकार के उत्पाद विभाग में सिपाही बनने के इच्छुक थे, लेकिन दौड़ के दौरान अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ने से वे हार्टअटैक के शिकार हो गये, यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उजागर हुआ है। सदर अस्पताल के मेडिकल अफसर डॉ शुभम शेखर का कहना है कि बिना प्रैक्टिस और बिना एक्सरसाइज 10 किलोमीटर की दौड़ ठीक नहीं है। दौड़ पूरी करनी है यह सोच कर अभ्यर्थी लगातार भागते हैं, इससे बीपी बढ़ता, तो उन्हें लगता है कि दौड़ की वजह से पसीना आ रहा है। वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, लेकिन जब असहजता महसूस हो, तो तुरंत उन्हें बैठ जाना चाहिए। हार्ट अटैक के लिए उम्र सीमा तय नहीं है। 28 साल से भी कम उम्र के युवा को आर्ट अटैक आ रहा है। वैसे तो मौत पर किसी का नियंत्रण नहीं होता, लेकिन इस तरह की मौत कई सवाल खड़े करती है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद पहली बार उत्पाद विभाग में सिपाही बहाली के लिए जो प्रक्रिया अपनायी गयी है, उसमें कुछ खामियोंं की तरफ ध्यान केंद्रित हो रहा है। जिस तरीके से भर्ती के दौरान दर्जन भर अभ्यर्थियों की मौत हुई है, उसने राज्यवासियों को स्तब्ध कर दिया है। इस मामले में झामुमो और भाजपा एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। भाजपा का कहना है कि नियम के साथ छेड़छाड़ की गयी है। वहीं झामुमो का कहना है कि यह नियमावली पूर्ववर्ती सरकार ने बनायी थी।
इस मुद्दे को लेकर असम के मुख्यमंत्री और भाजपा विधानसभा चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से हेमंत सोरेन से अपील भी की थी कि उत्पाद सिपाही भर्ती प्रक्रिया 15 सितंबर तक सरकार रद्द कर दे। वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संवेदनशीलता दिखाते हुए पूरी प्रक्रिया को तीन दिन के लिए स्थगित कर दिया है। साथ ही उन्होंने कहा है कि यह नियमावली पूर्व की सरकार ने बनायी थी, अब हम उसकी समीक्षा करेंगे। दलों के आरोप-प्रत्यारोप तो चलते रहेंगे, यहां सवाल यह है कि जिन दर्जन भर युवाओं ने जान गंवायी है, उनके परिजनों के दुख-दर्द को कौन बांटेगा। नियमावली पहले बने या उसे लागू करने में बदलाव हुआ, ये सवाल उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। महत्वपूर्ण यह है कि ऐसी नियमावली बनानेवाले आखिर पुलिस के वे कौन अधिकारी थे, जिन्होंने व्यावहारिकता को नहीं देखा। एक घंटे में 10 किलोमीटर की दौड़ क्या व्यावहारिक है। नियम तो अधिकारी बनाते हैं, लेकिन जवाब देना पड़ता है नेताओं को। उत्पाद सिपाही भर्ती के दौरान अभ्यर्थी रात-रात भर लाइन में खड़े रहे और फिर उमस भरी गर्मी में 10 किमी की इतनी कठिन दौड़ पूरी करने के लिए जी-जान लगा दिये। नतीजा सामने है। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या उत्पाद सिपाही भर्ती के लिए 10 किलोमीटर की कठिन दौड़ व्यावहारिक है। इस बहाली प्रक्रिया में इतनी बड़ी संख्या में हुई मौतों ने 10 किमी की दौड़ को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। झारखंड में भी 2016 से पहले छह मिनट में 1600 मीटर की दौड़ की शर्त थी। पड़ोसी राज्य बिहार में आज भी यह नियम लागू है, फिर झारखंड में आखिर पुलिस अधिकारियों ने इतनी कठिन दौड़ की शर्त क्यों रख दी। इस नियमावली को बनानेवाले अधिकारी कौन थे। इन तमाम बिंदुओं पर विस्तार से प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में पिछले 22 अगस्त से शुरू हुई उत्पाद सिपाही बहाली प्रक्रिया विवादों में घिर गयी है। यह विवाद इस बहाली प्रक्रिया के दौरान दर्जन भर अभ्यर्थियों की मौत के कारण पैदा हुआ है, जो एक घंटे में 10 किलोमीटर की दौड़ पूरी करने की शर्त को पूरा करने के क्रम में जान गंवा बैठे। 20 से 25 वर्ष की उम्र के इन नौजवानों की मौत क्यों हुई, इसे लेकर रिम्स में तीन अभ्यर्थियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा है। रिपोर्ट कहती है कि अभ्यर्थियों की मौत हार्ट अटैक से हुई है। रिपोर्ट को तैयार करनेवाले डॉक्टरों के अनुसार दौड़ के दौरान अचानक अभ्यर्थियों का ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है और वे हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं। हार्ट अटैक का सबसे बड़ा कारण गर्मी और 10 किलोमीटर की लंबी और थकाऊ दौड़ है। रिम्स के डॉक्टर का मानना है कि बिना प्रैक्टिस और बिना एक्सरसाइज 10 किमी की दौड़ ठीक नहीं है। दौड़ पूरी करनी है, यह सोच कर अभ्यर्थी लगातार भागते हैं। इससे बीपी बढ़ता है, तो उन्हें लगता है कि दौड़ की वजह से पसीना आ रहा है। वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। लेकिन जब असहजता महसूस हो तो तुरंत बैठ जाना चाहिए। हार्ट अटैक के लिए उम्र सीमा तय नहीं है। 28 साल से कम उम्र के भी युवा को हार्ट अटैक आ रहा है।
क्या थी बहाली की नियमावली और शर्त
बता दें कि झारखंड सरकार के उत्पाद विभाग में सिपाही के 583 पदों पर नियुक्ति के लिए अगस्त, 2023 में विज्ञापन निकाला गया था। इस नियुक्ति के लिए जो योग्यताएं तय की गयी थीं, उनमें न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मैट्रिक पास थी, जबकि शारीरिक परीक्षा के लिए एक घंटे में 10 किलोमीटर की दौड़ पूरी करने के अलावा अन्य सामान्य शारीरिक योग्यताएं शामिल थीं। महिला अभ्यर्थियों के लिए 40 मिनट में पांच किलोमीटर की दौड़ की शर्त रखी गयी थी। इस परीक्षा के लिए पांच लाख, 13 हजार 832 आवेदन आये हैं। 22 अगस्त से शारीरिक दक्षता परीक्षा शुरू हुई थी। यह परीक्षा 4 सितंबर तक चलनी थी। दौड़ प्रतियोगिता के दौरान 2 सितंबर तक लगभग एक दर्जन नौजवाना अपनी जान गंवा बैठे। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक 1 लाख 27 हजार 572 अभ्यर्थी शारीरिक दक्षता परीक्षा में शामिल हुए हैं। इनमें 78,023 अभ्यर्थी सफल हुए हैं। इनमें 55,439 पुरुष और 21,582 महिलाएं हैं।
2016 में झारखंड में बना नया नियम
झारखंड में यह नियम 2016 में बनाया गया। उससे पहले छह मिनट में 16 सौ मीटर दौड़ने का नियम था। 2016 से पहले झारखंड में सिपाही नियुक्ति में पहले लिखित परीक्षा ली जाती थी। उसमें एक कट आॅफ तय किया जाता था और उतना अंक लानेवाले अभ्यर्थियों को शारीरिक परीक्षा में शामिल किया जाता था। फिर अंतिम रूप से सफल अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के बाद नियुक्ति पत्र दिया जाता था।
क्यों बदला गया यह नियम
2014 में सिपाही नियुक्ति के दौरान कट आॅफ मार्क्स को लेकर विवाद हो गया था। इसके बाद मामला हाइकोर्ट में चला गया था। यह आरोप भी लगा था कि शारीरिक परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी। उसके बाद तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने नियमावली में संशोधन करने का फैसला किया और 2016 में नयी नियमावली लागू हो गयी।
उत्पाद सिपाही बहाली प्रक्रिया में समुचित व्यवस्था नहीं होने की शिकायत पहले दिन से ही शुरू हो गयी थी। राज्य के सात केंद्रों पर शारीरिक परीक्षा आयोजित की गयी थी, वहां यह खयाल नहीं रखा गया कि वह जगह उपयुक्त है या नहीं। अभ्यर्थियों का केंद्र आवंटन में कुछ-कुछ खामियां सामने आयीं। मसलन रांची के एक अभ्यर्थी को साहिबगंज बुलाया गया, तो दूसरे को मुसाबनी, जबकि तीसरे को हजारीबाग, जबकि एक का सेंटर रांची के हटिया में था। बाहर से गये अभ्यर्थियों के लिए उन केंद्रों के आसपास ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं थी। यहां तक कि कई केंद्रों पर शौचालय तक नहीं थे। अभ्यर्थी आधी रात को ही लाइन में लग गये। उन्हें आठ से 12 घंटे तक लाइन में खड़ा रहना पड़ा। फिर उन्हें दौड़ने को कहा गया। अब रांची से पलामू गया कोई अभ्यर्थी दिन भर सड़कों पर भटकने के बाद आधी रात को लाइन में खड़ा हो जाये और फिर आठ घंटे खड़ा रहने के बाद उमस भरी गर्मी में 10 किलोमीटर की दौड़ शुरू करे, तो वह बीमार होगा ही। हुआ भी ऐसा ही। कई अभ्यर्थी बेहोश होकर गिरने लगे। उनके लिए शुरू में चिकित्सा की समुचित व्यवस्था केंद्रों पर नहीं थी। तीन सौ से अधिक अभ्यर्थी बेहोश हो गये। कुछ की मौत वहीं हो गयी, जबकि कुछ को अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन कुछ को बचाया नहीं जा सका।
उठ रहे सवाल
इस बहाली प्रक्रिया में हुई मौतों को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर पूर्व की नियमावली को बदलने का सुझाव किसने दिया था और किसने इसे अंतिम रूप दिया। फिर व्यवस्थागत खामियों के लिए कौन जिम्मेवार है। अकसर देखा जाता है कि किसी गड़बड़ी की स्थिति में सारा दोष सरकार के मुखिया पर मढ़ा जाता है, जबकि असली दोषी नौकरशाह होते हैं। गड़बड़ी की कीमत सत्ताधारी दल को चुकानी पड़ती है, जबकि उसका इस गड़बड़ी में सीधा हाथ नहीं होता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। विपक्ष इस मामले को लेकर सरकार पर तीखे हमले कर रहा है। पूरे मामले की जांच के साथ प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने की मांग हो रही है। विपक्षी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने झारखंड सरकार को इस पूरे मामले में दोषी करार दिया है। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष की तरफ से इस संवेदनशील मुद्दे को राजनीति से अलग रखने की बात की जा रही है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पूरे मामले की जांच करने और बहाली प्रक्रिया को स्थगित करने का आदेश दे दिया है।
यह सियासत चलती रहेगी और सरकारें आयेंगी और जायेंगी, लेकिन असली सवाल तो यह है कि नियमावली जब भी बनी, इसको बनानेवाला कौन था। जिम्मेवारी तय कर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने से ही नौकरी पाने की चाहत रखनेवाले मृत नौजवानों को इंसाफ मिलेगा और उनके परिवारों को राहत।
583 पदों के लिए पांच लाख से अधिक आवेदन
उत्पाद सिपाही के 583 पदों पर नियुक्ति के लिए 22 अगस्त से शारीरिक दक्षता परीक्षा शुरू हुई है। वहीं पलामू में यह 27 अगस्त से शुरू हुई थी। इस परीक्षा के लिए 5,13,832 आवेदन आए हैं। इसके लिए राज्य में सात चयन पर्षद बनया गया है। इसके तहत रोज सात हजार से ज्यादा अभ्यर्थियों की जांच की जा रही है।