विशेष
कार्यकर्ताओं को चाहिए सिर्फ मान और सम्मान
हेमंत और कल्पना भीड़ में जाकर रख रहे हैं अपनी बात
भाजपा के नेताओं में ज्यादा से ज्यादा सभा करने का लक्ष्य
खुद की ताकत की पहचान ही खोलेगी जीत का द्वार
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
रांची। झारखंड में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान भले ही नहीं हुआ हो, लेकिन चुनावी यात्राओं का अभियान तेज हो गया है। भाजपा ने 21 सितंबर से पूरे राज्य में परिवर्तन यात्रा शुरू की है। इसके जवाब में राज्य की सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 23 सितंबर से मंईयां सम्मान यात्रा का आगाज किया है। इन दोनों यात्राओं के शोर में झारखंड की सियासत गोते लगाने लगी है। भाजपा के केंद्रीय से लेकर प्रदेश स्तरीय नेता हर दिन झारखंड के विभिन्न हिस्सों में सभाएं कर रहे हैं, परिवर्तन यात्रा में शामिल हो रहे हैं। उधर झामुमो की मंईयां सम्मान यात्रा की कमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायक पत्नी कल्पना सोरेन के हाथ में है। उनके साथ दो महिला मंत्रियों, बेबी देवी और दीपिका पांडेय सिंह भी हैं। दोनों ही पक्षों को उम्मीद है कि इन यात्राओं की मदद से उन्हें जनता का अपार समर्थन मिलेगा। उनकी उम्मीद पूरी होगी या नहीं, यह तो बाद में तय होगा, लेकिन यात्राओं का मुख्य उद्देश्य पब्लिक कनेक्ट ही है। दोनों जनता से सीधा जुड़ाव चाहते हैं।
बात सत्ताधारी दल की मंईयां सम्मान यात्रा से करते हैं। आमजन की जो राय आ रही है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि झामुमो के आयोजन में जनता का जुड़ाव महत्वपूर्ण है, जबकि भाजपा की सभा में सत्ताधारी दल पर हमला करना मुख्य है। दोनों आयोजनों की मंच संरचना से लेकर दूसरी व्यवस्थाओं में साफ-साफ अंतर दिखाई दे रहा है। एक तरफ जहां कल्पना सोरेन जनता के बीच जाकर उनसे मिल रही हैं। उनकी खुशियों में शरीक हो रही हैं। उनके भाषण देने का तरीके से झामुमो नेताओं-कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास का संचार हो रहा है। हेमंत सोरेन भी अपने कार्यक्रमों में सुरक्षा घेरा को धत्ता बताते हुए जनता के बीच पहुंच जा रहे हैं। लोग उन्हें देख चौंक जा रहे हैं। जनता इससे जुड़ाव महसूस करती है। जेएमएम इस यात्रा के माध्यम से हर वर्ग को साधने का प्रयास कर रहा है। इस यात्रा का असर यह हो रहा है कि झामुमो कार्यकर्ता और सभा में आये लोग हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन को अपने बीच पाकर काफी जुड़ाव महसूस कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं में इसका बहुत सकारात्मक मैसेज जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि परिवर्तन यात्रा में भाजपा से लोग कनेक्ट नहीं कर रहे हैं, उनकी परिवर्तन यात्रा भी खूब सुर्खियां बटोर रही है। लेकिन भाजपा के कार्यकर्ताओं और वोटर्स को इन नेताओं से और भी उम्मीदें हैं। यानी वे अपने नेताओं को अपने बीच पाना चाहते हैं। दोनों पार्टियों की यात्रा में आम लोगों की भीड़ तो उमड़ रही है, लेकिन कौन कितना कनेक्ट कर पाता है, सारा खेल उसी में है। क्या है इन दोनों यात्राओं का अंतर और क्या हो सकता है इसका परिणाम, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड में एक तरफ जहां चुनाव आयोग की देखरेख में प्रशासन विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियां भी अपनी पूरी तैयारी में जुटी हुई हैं। राजनीतिक समीकरणों के साथ सामाजिक और जातीय समीकरण साधने और प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रचार अभियान की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यह चुनाव बेहद रोमांचक होनेवाला है, क्योंकि राज्य में पहली बार भाजपा विपक्ष में रह कर चुनाव मैदान में उतर रही है, जबकि झामुमो-कांग्रेस-राजद का गठबंधन सत्ता में है। इसलिए दोनों तरफ से चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने की जी-तोड़ कोशिशें हो रही हैं। इस चुनावी आपाधापी में झारखंड इन दिनों यात्राओं के शोर में खूब गोते लगा रहा है। एक तरफ सत्तारूढ़ झामुमो की मंईयां सम्मान यात्रा चल रही है, तो दूसरी तरफ भाजपा की परिवर्तन यात्रा खूब सुर्खियां बटोर रही है। इन दोनों यात्राओं का उद्देश्य एक ही है और वह है जनता को अपनी तरफ आकर्षित करना।
क्या है भाजपा की परिवर्तन यात्रा
संथाल परगना के भोगनाडीह और राज्य के पांच अन्य स्थानों से शुरू हुई भाजपा की परिवर्तन यात्रा की शुरूआत पार्टी के शीर्षस्थ नेता अमित शाह ने की। उसके बाद अलग-अलग जगहों से शुरू हुई इस यात्रा में अब तक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान, सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और अन्य बड़े नेता शामिल हो चुके हैं। मनोज तिवारी से लेकर रवि किशन भी आ चुके हैं। इस यात्रा का मुख्य लक्ष्य वर्तमान हेमंत सरकार से पिछले पांच वर्षों का हिसाब लेना है। झारखंड भाजपा ने इस यात्रा को बेटी, रोटी, माटी की रक्षा, युवाओं के भविष्य और झारखंड में परिवर्तन लाने के संकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। परिवर्तन यात्रा सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी और छह सांगठनिक प्रमंडलों में आयोजित होगी। 20 सितंबर से 3 अक्टूबर के बीच भाजपा की परिवर्तन यात्रा कुल 5400 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। यात्रा के दौरान 80 स्वागत कार्यक्रम और 65 सार्वजनिक रैलियां होंगी। इस यात्रा का थीम है- न सहेंगे न कहेंगे बदल कर रहेंगे।
क्या है झामुमो की मंईयां सम्मान यात्रा
भाजपा की यात्रा के जवाब में सत्तारूढ़ झामुमो ने 23 सितंबर से मंईयां सम्मान यात्रा शुरू की है। इस यात्रा की कमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायक पत्नी कल्पना सोरेन के साथ दो महिला मंत्रियों बेबी देवी और दीपिका पांडेय सिंह ने संभाल रखी है। गढ़वा के श्रीबंशीधर नगर से शुरू हुई इस यात्रा के दौरान 25 हजार आमसभा, साढ़े सात हजार सभाएं और डेढ़ हजार जगहों पर स्वागत समारोह आयोजित करने का लक्ष्य रखा गया है। इस यात्रा का उद्देश्य झारखंड सरकार द्वारा शुरू की गयी चर्चित झारखंड मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना को प्रचारित-प्रसारित कर आम लोगों को जागरूक करना है। कल्पना सोरेन खूब पसीना बहा रही हैं। वह मैराथन दौरा कर रही हैं। उनकी ऊर्जा के झामुमो कार्यकर्ता कायल हो रहे हैं। भाषण शैली के लोग दीवाने हो रहे हैं। कल्पना कहती हैं कि मंईयां सम्मान यात्रा किसी एक विशेष जाति के लिए यात्रा नहीं है। यह यात्रा, सभी जाति, वर्ग, धर्म को संगठित करने की यात्रा है। यात्रा के दौरान वह भाजपा और खासकर केंद्र सरकार पर सधे हुए शब्दों से वार भी कर रही हैं। कह रही हैं कि हमें हमारा हक चाहिए। हम भीख नहीं मांग रहे, झारखंडियों का हक मांग रहे हैं। उनका इशारा केंद्र सरकार पर राज्य सरकार के बकाये की तरफ है, जिसकी चर्चा बार-बार हेमंत सोरेन करते रहे हैं। हेमंत का कहना है कि हमें खैरात नहीं चाहिए, हम अलग स्टेटस भी नहीं मांग रहे, हमारा बकाया 1 करोड़ 36 लाख दीजिए, इससे हम झारखंड को संवार देंगे।
राज्य सरकार की नाकामियों और भ्रष्टाचार पर वार कर रहे हैं भाजपा नेता
परिवर्तन यात्रा में भाजपा नेताओं का मुख्य निशाना हेमंत सोरेन सरकार की पांच साल की नाकामियों को जनता को बताना है। वह कह रहे हैं कि इस सरकार ने अपने वायदे के मुताबिक राज्य के लोगों को कुछ नहीं दिया। कोई भी वायदा पूरा नहीं किया। चुनाव के समय इसने मंईयां सम्मान का झुनझुना पकड़ा दिया। हर नेता हेमंत सरकार के ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा है। बता रहा है कि कैसे झारखंड में दलालों का बोलबाला है। कैसे यहां के आदिवासी खतरे में हैं। कैसे बांग्लादेशी घुसपैठिये और रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ से संताल परगना तबाह हो रहा है। वे रोटी, बेटी और माटी की बात उठा रहे हैं।
क्या जा रहा है दोनों यात्राओं का संदेश
इन दोनों यात्राओं के शुरू हुए तीन दिन से अधिक का समय बीत चुका है। इसलिए अब इन दोनों यात्राओं के बारे में लोग चर्चा करने लगे हैं। लोगों की नजर में भाजपा की यात्रा जहां झारखंड की सत्ता में परिवर्तन के उद्देश्य के लिए निकाली गयी है, वहीं झामुमो की यात्रा का उद्देश्य सरकारी योजनाओं का लाभ बता कर आम लोगों को जोड़ना है। वैसे सत्ता दुबारा हासिल करना तो पहला उद्देश्य ही किसी राजनीतिक दल के लिए रहता है। लेकिन इन यात्राओं से अलग-अलग मैसेज जाने लगा है। मंईयां सम्मान यात्रा के जरिये सत्ताधारी दल और खासकर कल्पना सोरेन आम जन से डायरेक्ट जुड़ने का प्रयास कर रही हैं। उनके बीच जाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहीं। कल्पना सोरेन में एक अलग ही ऊर्जा दिखाई दे रही है। उनके बॉडी लैंग्वेज और भाषणों में एक अलग सा कॉन्फिडेंस नजर आ रहा है। जनता उनसे अपनापन महसूस कर रही है। वहीं भाजपा की कोशिश है कि एक दिन में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर सभा हो। यह जरूर है कि केंद्रीय नेताओं के ऊपर और भी कई तरह की जिम्मेदारियां हैं, लेकिन चुनाव के समय आम कार्यकर्ताओं और आमजन को यह उम्मीद रहती है कि बड़ा नेता उनके बीच आये। उनका हालचाल ले। कार्यकर्ता यह उम्मीद करते हैं कि बड़े नेता के साथ खड़े होकर फोटो खिंचवायें। उनसे हाथ मिलायें। भाजपा के केंद्रीय नेताओं को जनता नजदीक से देखना चाहती है, सुनना चाहती है। अपने पास भी चाहती है, ये आते भी हैं, बोलते भी हैं, लेकिन स्टेज और जनता के बीच की दूरी 45-50 फीट की हो जाती है। भीड़ में पीछे बैठी जनता या कार्यकर्ता इनका चेहरा भी नहीं देख पाते हैं, जबकि उनकी इच्छा होती है कि उनके बीच जायें। कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर पब्लिक से कनेक्ट होना है, तो भाजपा नेताओं को लोगों के बीच जाना ही पड़ेगा। उन्हें लोगों की भीड़ में घुसना ही पड़ेगा। झारखंड के गावों में परिवर्तन रथ को मोड़ना ही पड़ेगा।
भाजपा की यात्रा के दौरान आयोजित होनेवाली परिवर्तन संकल्प सभाओं में भीड़ तो खूब जुटती है, लेकिन सभा का मंच और आम लोगों के बीच 40 से 45 फुट की दूरी होती है। मंच पर केंद्रीय और प्रदेश स्तरीय नेताओं के अलावा स्थानीय नेताओं को भी जगह मिलती है, लेकिन मंच और जनता के बीच की दूरी से आम जन के बीच वह संदेश नहीं जा पाता, जो जाना चाहिए। भाजपा के नेता आयोजन में आते हैं, यात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना करते हैं, मंच पर आकर अपना वक्तव्य देते हैं और फिर व्यस्तता के कारण अपने अगले कार्यक्रम के लिए निकल पड़ते हैं। इससे वे आम लोगों के साथ जुड़ नहीं पा रहे हैं। मंच और आम लोगों के बीच की दूरी निश्चित रूप से सुरक्षा संबंधी मजबूरियों के कारण होती है, लेकिन इसका मैसेज राजनीतिक रूप से अच्छा नहीं जा रहा है। अगर कोई नेता जनता के लिए आया है, और जनता चार-पांच घंटे उसे सुनने के लिए इंतजार करती है। मीडिया भी उनका इंतजार करता है, तो उन नेताओं को समझना होगा कि उनका आगमन केवल वक्तव्य देने के लिए नहीं हुआ है। जनता से कनेक्ट करना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
हेमंत-कल्पना भीड़ के बीच
इसके विपरीत झामुमो की यात्रा के दौरान ऐसी कोई दूरी नहीं होती है। वैसे भी महिलाओं में लोगों से जुड़ने का गुण अधिक होता है और कल्पना सोरेन, बेबी देवी और दीपिका पांडेय सिंह इस गुण का बखूबी प्रदर्शन कर रही हैं। सभा मंच से उतर कर वे सीधे लोगों के बीच पहुंच जा रही हैं, उनसे बातचीत कर रही हैं, घर-परिवार की समस्याओं पर बातचीत कर रही हैं। पर्व-त्योहार और गांव-गिरांव की बातें कर झामुमो-कांग्रेस की महिला नेता बहुत जल्दी लोगों से घुल-मिल जा रही हैं। उनके साथ सेल्फी भी ले रही हैं।
केवल महिला नेता ही नहीं, झामुमो का हर नेता इन दिनों आम लोगों से गहरे जुड़ने की कोशिश में है। यहां तक कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद मंच से या गाड़ी से उतर कर आम लोगों के बीच पहुंच जाते हैं। झारखंड के सीधे-सादे लोगों के बीच इसका सकारात्मक संदेश जा रहा है।
क्या हो सकता है इस अंतर का परिणाम
झामुमो और भाजपा की यात्राओं के दौरान आयोजित होनेवाले कार्यक्रमों में इस अंतर का दूरगामी परिणाम हो सकता है। भाजपा के आयोजनों को लोग राजनीतिक मान कर इसे सत्ता हासिल करने की कोशिश के रूप में देखने लगेंगे, जबकि झामुमो का आयोजन आम लोगों को उससे जुड़ने का आभास देगा।