आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात करनेवाले घुसपैठियों का बचाव शर्मनाक
रांची। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पलटवार करते हुए कहा कि झामुमो का वास्तविक अर्थ झारखंड मुद्रा मोचन पार्टी है। पांच वर्षों में इन पर 70,000 करोड़ के घपले, घोटाले का आरोप लगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जमीन विवाद में पांच महीने के लिए जेल घूम आये। झामुमो हेमंत सोरेन को बेल मिलने पर क्लीन चिट दे रही है, जबकि ट्रायल अभी तक शुरू भी नहीं हुआ। पूर्व मंत्री आलमगीर आलम और हेमंत सोरेन के दरबार के प्रेम प्रकाश, अमित अग्रवाल, पंकज मिश्रा जैसे नवरत्न अभी भी जेल में बंद हैं।
भ्रष्टाचार की मुहिम से झामुमो डरा हुआ है
प्रतुल ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री जब झारखंड आते हैं, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को बदहवासी में दौरा पड़ने लगता है। प्रधानमंत्री विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और उन्होंने देश की तस्वीर और तकदीर बदल दी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पूरी देशव्यापी मुहिम चली है। जाहिर तौर पर इस मुहिम से झारखंड मुक्ति मोर्चा डरा हुआ है और यह डर अच्छा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं को अपनी बदहवासी वाली मानसिक स्थिति का इलाज किसी बढ़िया मनोचिकित्सक से कराना चाहिए।
उच्च न्यायालय में उपायुक्तों ने गलत रिपोर्ट दी
प्रतुल ने कहा कि घुसपैठ के मामले में उच्च न्यायालय में सरकार के दबाव में उपायुक्तों ने झूठ बोला, जो हाइकोर्ट में एक्सपोज हो गया। अब तो कमेटी इस बात की जांच भी करेगी। केंद्र सरकार ने जिन घुसपैठियों की सूची 2021 में राज्य सरकार को दी थी, उसको राज्य सरकार ने दबा दिया। राज्य सरकार के लिए ये बांग्लादेशी वोट बैंक का काम करते हैं। इसलिए राज्य सरकार इनको बचाती रहती है। प्रतुल ने कहा कि यह अत्यंत शर्मनाक है कि खुद को आदिवासी की हितैषी कहने वाली हेमंत सरकार इन घुसपैठियों को बचाने के चक्कर में राज्य के आदिवासी हितों पर कुठाराघात कर रही है। जबकि यही बांग्लादेशी घुसपैठिए लव जिहाद, लैंड जिहाद और पॉलिटिकल जिहाद करते हैं।
निर्मला सीतारमण पर सफाई
प्रतुल ने कहा कि अभी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने वित्त मंत्री के खिलाफ सिर्फ मामला दर्ज करने का आदेश दिया है। लेकिन इस देश की न्यायिक व्यवस्था में अपीलीय अदालतें भी होती हैं और उचित समय पर उचित कदम उठाया जायेगा। लेकिन आज न्यायालय की बात वे लोग कर रहे हैं, जिनको अपनी सुविधा अनुसार न्यायालय पर कभी विश्वास तो कभी अविश्वास हो जाता है।