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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»मंदिरों की नगरी इचाक : यहां हैं 100 से अधिक मंदिर और तालाब
    स्पेशल रिपोर्ट

    मंदिरों की नगरी इचाक : यहां हैं 100 से अधिक मंदिर और तालाब

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 10, 2025Updated:September 10, 2025No Comments4 Mins Read
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    सरकार पहल करे तो भव्य पर्यटक स्थल बन सकता है इचाक
    दीपक सिंह
    हजारीबाग। हजारीबाग जिला मुख्यालय से लगभग 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित इचाक प्रखंड क्षेत्र में 3 किलोमीटर क्षेत्र में 100 से अधिक प्राचीन मंदिर और दर्जनों ऐतिहासिक तालाब हैं। यह दुमका के मलूटी से कम नहीं। अगर पर्यटन विभाग नजरे इनायत करे तो इचाक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। इचाक क्षेत्र रामगढ़ राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यही कारण है कि परासी, कुटुमसुकरी, पुराना इचाक, छावनी जैसे इलाकों में तालाब, मंदिर और बाग-बगीचों की भरमार है, जो इस क्षेत्र की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं। मंदिरों की अधिकता के कारण इस क्षेत्र को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। यहां के मंदिर, तालाब और बाग-बगीचे ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में जाने जाते हैं। लेकिन हाल के दिनों में इन धरोहरों की समुचित देखभाल एवं रखरखाव नहीं होने से इनकी स्थिति जर्जर होती जा रही है। सिंह दरवाजा, बंशीधर मंदिर, भैरवनाथ मंदिर, लक्ष्मी नारायण बड़ा अखाड़ा, श्रीराम जानकी छोटा अखाड़ा, बुढ़िया माता मंदिर, बनसटांड़ मंदिर, सूर्य मंदिर समेत कई ऐसे मंदिर हैं जो राजा के समय से स्थापित हैं। अगर पर्यटन विभाग पहल करे तो आज सभी मंदिर और मठ की स्थिति बदल सकती है। बड़ा अखाड़ा और छोटा अखाड़ा तो अब खंडहर का रूप लेते जा रहा है। इन मंदिरों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए ग्रामीण और क्षेत्र के समाजसेवी व जनप्रतिनिधि प्रयासरत हैं।

    इचाक की ऐतिहासिक धरोहरों की स्थिति
    इचाक को मंदिरों की नगरी कहा जाता है। कभी रामगढ़ राज परिवार की राजधानी इचाक हुआ करती थी। संत-महर्षियों के विश्राम के लिए मठ हुआ करते थे, अब सभी मठ और मंदिर जर्जर हो गये हैं, इसलिए इनका पुनरुद्धार जरूरी है।

    बड़ा अखाड़ा को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की जरूरत
    परासी पंचायत का बड़ा अखाड़ा देखरेख के अभाव में जर्जर होते जा रहा है, जबकि इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की कोशिश जारी है। इसको लेकर कई बार आवेदन दिये गये हैं, लेकिन अभी तक सरकार या पर्यटन विभाग ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं।

    प्रसिद्ध है छोटा अखाड़ा
    इचाक का छोटा अखाड़ा जिसे श्री राम जानकी मंदिर भी कहते हैं, लगभग 250-300 साल पुराना है। आज छोटा अखाड़ा के मरम्मत की जरूरत है। चाहे मुख्य दरवाजा हो या चहारदिवारी, या फिर मंदिर सभी के मरम्मत की जरूरत है।

    बाबाधाम की तर्ज पर बना है भगवती मठ मंदिर
    भगवती मठ मंदिर बाबाधाम की तर्ज पर बना है। यह परासी गांव में स्थित है। एक साथ तीन मंदिरों की श्रृंखला है। देवघर की तरह दो मंदिर आमाने सामने जबकि एक मंदिर बगल में स्थित है।

    सूर्यमंदिर का भी अपना है इतिहास
    मंदिरों, तालाबों की नगरी इचाक में कई ऐतिहासिक धार्मिक धरोहर हैं। जिसमें सूर्य मंदिर का इतिहास लोक आस्था से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1772 में सूर्य मंदिर का निर्माण कराया गया था। मंदिर के सामने बड़ा तालाब है। कहा जाता है कि पूर्व में राजघराने से आने वाले इसी तालाब में स्नान के बाद सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करते थे।

    बुढ़िया माता मंदिर जहां निराकार रूप की होती है पूजा
    इचाक प्रखंड के कुटुम सुकरी में एक अनोखा मंदिर है, बुढ़िया माता मंदिर, जहां माता के निराकार रूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां एक मिट्टी की दीवार पर देवी मां की आकृतियां उभरी हुई हैं, जिन पर सिंदूर लगाकर पूजा की जाती है। मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, 1668 में फैली हैजा महामारी के दौरान एक बुढ़िया माता ने महामारी को दूर भगाने के लिए मिट्टी दी थी, और बाद में वे स्वयं गायब हो गयीं, जिससे यह स्थान आस्था का केंद्र बन गया।

    बंशीधर मंदिर : यहां रात में सुनाई पड़ती थी बांसुरी की धुन:
    रामगढ़ राज घराने से इस मंदिर का तालुका है। जन्माष्टमी के दिन यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है। यहां जन्माष्टमी की रात 12 बजे बांसुरी की सुरीली धुन सुनाई पड़ती थी। ऐतिहासिक मंदिर को रखरखाव की जरूरत है।

    संरक्षण और विकास की आवश्यकता
    इचाक में आज भी दर्जनों अद्भुत शिल्पकला और भव्यता वाले मंदिर और मठ मौजूद हैं, जो अपनी भव्यता की झलक देते हैं। उन्हें संरक्षित कर पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की अपार क्षमता है। इचाक की ऐतिहासिक धरोहरों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सरकार से कई बार गुहार लगायी गयी है, पर अभी तक राज्य सरकार ने इस दिशा में विशेष ध्यान नहीं दिया है, इसे संरक्षित करने से न केवल स्थानीय संस्कृति को बचाया जा सकेगा, बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

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