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    Home»विशेष»भारत के लिए चुनौती नहीं, अवसर है ट्रंप की वीजा नीति
    विशेष

    भारत के लिए चुनौती नहीं, अवसर है ट्रंप की वीजा नीति

    shivam kumarBy shivam kumarSeptember 23, 2025No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    विदेश की बजाय अपने देश में ही इस्तेमाल हो सकेगी भारतीय प्रतिभा
    प्रधानमंत्री मोदी के स्वदेशी अभियान को मिल सकती है कामयाबी
    भारतीय प्रतिभा अब भारत में ऊर्जा लगायें और देश को आगे बढ़ायें

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एच-1बी वीजा के नियम बदल दिये हैं। इसके तहत कंपनियों को हर एक एच-1बी वीजा कर्मचारी के लिए सालाना एक लाख डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) का भुगतान करना होगा। इसको लेकर भारत में चिंता का माहौल है, लेकिन हकीकत यही है कि ट्रंप का यह कदम अमेरिकी इनोवेशन को प्रभावित करेगा और भारत के विकास को बढ़ावा देगा। यदि इसे दूसरे शब्दों में कहें, तो यह भारत के लिए चुनौती नहीं, अवसर है। वास्तव में भारत समेत दुनिया भर की प्रतिभाओं के लिए दरवाजे बंद कर अमेरिका नयी प्रयोगशालाओं, पेटेंटों, इनोवेशन और स्टार्टअप की अगली लहर को बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम की ओर धकेल रहा है। अमेरिका में काम कर रहे एच-1बी वीजा धारकों में सबसे अधिक भारतीय हैं। इनमें कुछ बेहतरीन पेशेवर और तकनीकी विशेषज्ञ हैं, जो देश के विकास में योगदान दे सकते हैं। भारत के बेहतरीन डॉक्टरों, इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और इनोवेटरों के पास अब भारत के विकास में योगदान देने का अवसर है। कुल मिला कर नयी वीजा नीति से अमेरिका का नुकसान भारत के लिए फायदेमंद होगा। वीजा के नये नियमों को यदि अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है, तो इसका अमेरिका की स्वास्थ्य सेवाओं, उच्च शिक्षा और तकनीकी क्षेत्रों पर असर पड़ने की संभावना है। अमेरिका में विज्ञान, तकनीकी, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम-एसटीइएम) पेशेवरों की संख्या 2000 और 2019 के बीच दोगुनी से ज्यादा होकर लगभग 25 लाख हो गयी, जबकि इस दौरान समेकित रोजगार में केवल 44.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। क्या है ट्रंप की नयी वीजा नीति और भारत के लिए कैसे यह अवसर बन सकता है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के संपादक राकेश सिंह।

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा को लेकर जो नया कदम उठाया है, वह केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि वैश्विक प्रतिभा प्रवाह (ग्लोबल टैलेंट फ्लो) की दिशा बदलने वाला निर्णय सिद्ध हो सकता है। इस नीति के अंतर्गत हर वर्ष एच-1बी वीजा के लिए कंपनियों को एक लाख डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) शुल्क देना होगा। यह राशि वर्तमान ढांचे की तुलना में कई गुना अधिक है और सीधे-सीधे उन कंपनियों पर बोझ डालेगी, जो भारतीय और चीनी पेशेवरों पर निर्भर हैं।

    क्यों लिया गया यह फैसला
    दरअसल ट्रंप प्रशासन का दावा है कि अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करना उनकी प्राथमिकता है। उनके अनुसार जब अमेरिकी विश्वविद्यालय हर साल लाखों ग्रेजुएट पैदा कर रहे हैं, तो कंपनियों को चाहिए कि वे उन्हीं को प्रशिक्षित करें और काम दें। यह कदम उनके अमेरिका फर्स्ट एजेंडे का हिस्सा है। इसके साथ ही प्रोजेक्ट फायरवॉल नामक नयी पहल भी शुरू की गयी है, जिसका उद्देश्य कंपनियों द्वारा वीजा दुरुपयोग पर रोक लगाना है। ट्रंप का कहना है कि अब तक एच-1बी वीजा का इस्तेमाल कंपनियां वेतन दबाने और अमेरिकी युवाओं की नौकरियां छीनने के लिए करती रही हैं। नयी व्यवस्था में कंपनियों को भारी-भरकम शुल्क चुकाना होगा, जिससे वे विवश होकर स्थानीय कर्मचारियों को प्राथमिकता देंगी।

    भारतीय प्रतिभाओं पर निर्भर हैं अमेरिकी कंपनियां
    अमेरिका की अधिकांश टेक कंपनियां, जिनमें माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, मेटा और जेपी मॉर्गन जैसी दिग्गज शामिल हैं, भारतीय प्रतिभाओं पर काफी हद तक निर्भर हैं। केवल 2025 की पहली छमाही में ही अमेजन और उसकी क्लाउड इकाई अमेजन वेब सर्विसेज ने 12 हजार से अधिक एच-1बी वीजा मंजूर करवाये। देखा जाये तो भारत अकेले लगभग 71 प्रतिशत एच-1बी वीजा का लाभार्थी है। टेक कंपनियों का तर्क है कि अमेरिकी विश्वविद्यालय इतनी मात्रा में कुशल इंजीनियर और प्रोग्रामर तैयार नहीं कर पा रहे, जो उनकी जरूरत पूरी कर सकें। इस स्थिति में भारतीय और अन्य एशियाई देशों के पेशेवर ही उनकी रीढ़ बने हुए हैं।

    कम हो जायेगी अमेरिकी नवाचार की क्षमता
    अब ट्रंप के नये फैसले के बाद विशेषज्ञों का कहना है कि शुल्क बढ़ाने से अमेरिका अपनी नवाचार क्षमता खो सकता है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ), सेमीकंडक्टर और एडवांस टेक्नोलॉजी की होड़ में चीन से पिछड़ सकता है।

    भारत पर क्या होगा असर
    बड़ा सवाल यह है कि ट्रंप के फैसले का भारत पर क्या असर होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है, क्योंकि हर साल हजारों भारतीय इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक और वित्त विशेषज्ञ एच-1बी वीजा के जरिये अमेरिका जाते हैं। देखा जाये तो भारतीय युवाओं के लिए अमेरिकी नौकरी बाजार का दरवाजा इस फैसले के बाद सीमित हो जायेगा। इससे उनके सपनों पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा इंफोसिस, विप्रो और टीसीएस जैसी कंपनियां अमेरिकी परियोजनाओं के लिए बड़ी संख्या में भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका भेजती रही हैं। नयी नीति से इनकी लागत बढ़ेगी और परियोजनाओं की गति धीमी पड़ सकती है। साथ ही ट्रंप के फैसले का सबसे बड़ा असर यह हो सकता है कि अब तक जो उच्च कुशल प्रतिभा अमेरिका चली जाती थी, वह भारत में ही रह कर यहां की कंपनियों के लिए काम करेगी।

    भारत के लिए बन सकता है अवसर
    ट्रंप के फैसले को केवल नकारात्मक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए। भारत के लिए यह एक अवसर भी है। अब तक देखा गया है कि भारतीय मूल के कई दिग्गज अमेरिकी कंपनियों में शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं। जैसे सत्या नडेला (माइक्रोसॉफ्ट), सुंदर पिचाई (गूगल), अजय बंगा (विश्व बैंक) आदि। यदि यही प्रतिभा भारत में रह कर देश की कंपनियों को आगे बढ़ाती, तो भारत की वैश्विक स्थिति कहीं और होती।

    अवसर को भुनाने की चुनौती
    देखा जाये तो जब वैश्विक दरवाजे सीमित होंगे, तो भारत में स्टार्टअप संस्कृति और मजबूत हो सकती है। भारत सरकार के पास यह मौका है कि वह उच्च कुशल पेशेवरों को आकर्षित करने के लिए टैक्स लाभ, बेहतर शोध सुविधाएं और आसान कारोबारी वातावरण उपलब्ध कराये। यदि भारत सरकार मजबूत अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) ढांचा विकसित करे, तो भारतीय युवाओं को अमेरिका जाने की आवश्यकता कम होगी। इसके अलावा अमेरिका में काम करने वाली भारतीय प्रतिभा यदि भारत लौटती है, तो सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जिससे ये लोग यहां की कंपनियों को आगे बढ़ायें। साथ ही उच्च कौशल वाले पेशेवरों को कर में छूट, आसान फंडिंग और ढांचागत सुविधाएं मुहैया कराकर भारतीय उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है।

    इसमें कोई दो राय नहीं कि ट्रंप का यह निर्णय अमेरिका के लिए शायद तात्कालिक राजनीतिक लाभ ला सकता है, लेकिन दीर्घकाल में यह कदम उसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमजोर कर सकता है। दूसरी ओर भारत को इसे अवसर के रूप में देखना चाहिए। अब तक कुशल भारतीय पेशेवरों का मस्तिष्क और मेहनत अमेरिकी कंपनियों के लिए संपत्ति बनता रहा है। यदि यही प्रतिभा भारत में रहकर भारतीय कंपनियों के लिए काम करे, तो न केवल भारतीय उद्योग जगत, बल्कि पूरे देश की प्रगति तेज हो सकती है। आज भी गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोबी, आइबीएम और विश्व बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों के शीर्ष पदों पर भारतीय बैठे हैं। अगर यही भारतीय प्रतिभा भारत की कंपनियों में अपनी ऊर्जा लगायें, तो इसका लाभ सीधे भारत की अर्थव्यवस्था और समाज को मिलेगा। भारत सरकार को चाहिए कि इसे अवसर मानकर उच्च कौशल वाले पेशेवरों के लिए सुविधाजनक माहौल और प्रोत्साहन तैयार करे। बहरहाल ट्रंप की यह नीति भारत के लिए मस्तिष्क पलायन को रोकने और प्रतिभा को देश में ही बनाये रखने का सुनहरा अवसर साबित हो सकती है।

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