नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी दो नवंबर से तीन दिनों की नेपाल की राजकीय यात्रा करेंगे। नेपाल में लोकतांत्रिक सविधान को स्वीकार्य किए जाने के बाद उनकी यह यात्रा हो रही है जिसे ‘विशेष सद्भावना यात्रा’ के तौर पर देखा जा रहा है। भारत के किसी राष्ट्राध्यक्ष की नेपाल यात्रा 18 वर्षों के बाद होगी। अपने नेपाल प्रवास के दौरान मुखर्जी वहां राजनीतिक नेतृत्व के साथ ‘द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुराष्ट्ररीय मुद्दों के संपूर्ण पहलुओं’ पर बातचीत करेंगे। बातचीत के मुद्दों में भूकंप के बाद पुननिर्माण की परियोजनाओं, मधेसी समुदाय की चिंताएं भी शामिल होंगी। पड़ोसी देश में राजकीय यात्रा होने में इतना समय लगने के लिए जिम्मेदार कई कारणों में नेपाल के भीतर राजनीतिक अस्थिरता शामिल हैं। मुखर्जी नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, उप राष्ट्रपति नंद किशोर पुन और प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड तथा मधेसी नेताओं, भारतीय सेना में सेवा दे चुके पूर्व कर्मियों और सामाजिक क्षेत्र के लोगों से मुलाकात करेंगे। नेपाल में भारत विरोधी भावना के बारे में पूछे जाने पर विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (उत्तर) सुधाकर दलेला ने कहा, ‘‘हम राजनीतिक स्तर और कामकाजी स्तर पर बहुत ही गहन संवाद के चरण में हैं। हम नेपाल सरकार के साथ विभिन्न क्षेत्रों में काम करने का प्रयास कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘व्यापार अथवा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में ऐसे मामले रहे हैं जहां काम कर रहे अपने लोगों के बारे में हमारी चिंताए हैं, लेकिन हम नेपाल के साथ काम कर रहे हैं।“
मुखर्जी की नेपाल यात्रा पर उनके साथ एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल होगा जिसमें रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे, सांसद एल गणेशन, जगदम्बिका पाल, आरके सिंह शामिल होंगे। इसमें एक और सांसद शामिल होगा जिसके नाम को अंतिम रूप दिया जा रहा है। काठमांडो में कूटनीतिक चर्चा के बाद राष्ट्रपति भारतीय सीमा के निकट के जिले जनकपुर भी जाएंगे जहां उनका अभिनंदन किया जाएगा। वह पोखारा भी जाएंगे जहां पूर्व सैन्यकर्मियों से बातचीत करेंगे। जनकपुर मधेसियों का गढ़ माना जाता है। राष्ट्रपति को काठमांडो विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की जाएगी। दलेला ने कहा, ‘‘मेरा आकलन है कि द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के सभी पहलुओं पर विस्तृत बातचीत होगी।“