इच्छामृत्यु के मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध किया है। आपको बता दें कि एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है उसी तरह उसे मरने का भी अधिकार है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष केन्द्र सरकार ने कहा कि अगर इच्छा मृत्यु को मंजूरी दी गई तो इसका बहुत दुरुपयोग हो सकता है। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस एके सिकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भवन भी हैं। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को भी इस मामले में सुनवाई जारी रहेगी।

आपको बता दे कि फरवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी, जिसमें एक गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्ति जो कि डॉक्टर्स के मुताबिक अब कभी ठीक नहीं हो सकता, उसके लिए इच्छामृत्यु या दया मृत्यु की अपील की गई थी। कोर्ट में याचिका लगाने वाली एनजीओ ने दलीली दी कि ‘गरिमा के साथ मरने का अधिकार’ ‘यानी राइट टू डाय विथ डिग्निटी’ भी होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने 25 फरवरी, 2015 को यह मामला संविधान पीठ के पास भेज दिया था। इसके अलावा संविधान पीठ कल्पना मेहता बनाम भारत सरकार, स्टेट ऑफ झारखंड बनाम हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी बनाम पुष्पा और अन्य से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही है।

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