वाशिंगटन : मंगलवार की रात और बुधवार की सुबह के बीच पृथ्वी पर से एक खतरा टल गया।
पूर्व में इसी वजह से दुनिया के तबाह होने की भविष्यवाणियां की गयी थीं।
अंतरिक्ष में भटकता एक उल्कापिंड पृथ्वी के काफी करीब से गुजर गया।
वैसे इसके अध्ययन में जुटे वैज्ञानिक मानते हैं कि अपने अगले चक्कर में यह उल्कापिंड
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के दायरे में आ सकता है।

वैसी स्थिति में यह पृथ्वी से टकरायेगा। इस उल्का पिंड का आकार एक प्लेन के जितना है।

इसकी गतिविधियों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों ने बताया कि पूर्व के मुकाबले यह इस बार पृथ्वी के काफी करीब पहुंच चुका है।
वर्ष 2012 में इसे पहली बार देखा गया था। वैज्ञानिकों ने इसका नाम 2012 टीसी 4 रखा था। इस बार यह पृथ्वी से करीब 27 हजार तीन सौ मीलकी दूरी से गुजरा।
इसके कुछ हजार मील नीचे ही दुनिया के तमाम सैटेलाइट परिक्रमा कर रहे हैं।
इसके पहले जब यह पृथ्वी के करीब आया था तो उसकी दूरी वर्तमान दूरी से दोगुनी थी।
इस लिहाज से वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि अंतरिक्ष में चक्कर काटते हुए यह उल्कापिंड
धीरे धीरे पृथ्वी के करीब आ रहा है।

आकाश में उड़ते इस पत्थर के भावी रास्ते के आकलन में जुटे वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि हर चक्कर में यह पृथ्वी के करीब आता जा रहा है।
यूरोपिय स्पेस एजेंसी के रिडिजर जेन ने कहा कि अगर अगली बार यह पृथ्वी के और करीब आया तो यह समझा जाना चाहिए वि वर्ष 2079 तक यह पृथ्वी से टकराकर समाप्त हो जाएगा।
उनके मुताबिक वर्ष 2050 में इसके पृथ्वी से टकराने की संभावना थोड़ी कम है।
वैसे इसी क्रम में यह भी पता चल रहा है कि कई और बड़े उल्कापिंड भी धीरे धीरे चक्कर काटते हुए पृथ्वी के करीब पहुंच रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया है कि इस उल्कापिंड में कोई आग और टकराव जैसी बात नहीं है।
प्राचीन काल में किसी जलते हुए उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने की वजह से ही
डायनासोर की प्रजाति अचानक समाप्त हो गयी थी।
इस उल्का पिंड से ऐसा कोई खतरा अभी नजर नहीं आ रहा है।
रुस के चेलाबिंस्क में जिस तरीके से उल्का पिंड के टकराने से कुछ खिड़कियां टूटी थी, प्लेन के आकार का होने की वजह से कुछ ऐसा ही होगा।

लेकिन एक चिंता इस बात को लेकर है कि गुरुत्वाकर्षण के अंदर आने के बाद घर्षण से शायद
इस उल्कापिंड में भी आग पैदा हो जाए और यह जलता हुआ पृथ्वी की सतह से टकराये।
अंतरिक्ष में मौजूद अन्य उल्कापिंडों के आकार और प्रकार की जानकारी लेने के लिए वैज्ञानिक दिन रात टेलीस्कोपों के सहारे आसमान की गतिविधियों पर नजर बनाये हुए हैं। अब भी किसी बहुत बड़े उल्कापिंड के पृथ्वी के करीब आने का पता नहीं चल पाया है।

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