चित्रकोट से हरिनारायण सिंह
छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ की सीमा में झारखंड की ओर से प्रवेश करने के बाद आप जैसे-जैसे अंदर की ओर बढ़ते जायेंगे, चौड़ी और चमचमाती सड़कें आपका स्वागत करेंगी। जशपुर से लेकर चित्रकोट तक के सफर के दौरान नक्सल प्रभावित बस्तर और दंतेवाड़ा इलाकों से गुजरने के दौरान कहीं भी रुकने पर लोग बात करते हैं चावल बाबा की। दरअसल मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह पूरे राज्य में चावल बाबा के नाम से जाने जाते हैं। गरीबों को एक रुपये किलो चावल देनेवाली उनकी सरकार के बारे में लोग कोई नकारात्मक टिप्पणी तो नहीं करते, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उनका समर्थन भी करते हैं। चावल के साथ दाल और चना भी मिलता है। चुनाव के समय शिकवा-शिकायतों का दौर तो चलता ही रहता है, लेकिन लोग रमन सिंह के काम का उल्लेख जरूर करते हैं। यानी चावल बाबा के बारे में यह कहना अधिक सटीक है कि आप चाहे उनको सपोर्ट करें या उनका विरोध करें, उनको इग्नोर (उपेक्षा) नहीं कर सकते।

छत्तीसगढ़ सरकार के जो काम लोग शिद्दत से गिनाते हैं, उनमें दिहाड़ी मजदूरों को साइकिल और उपकरण देना, महिलाओं के लिए पट्टा, स्कूली लड़कियों को साइकिल और घरों में उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन शामिल हैं। इन योजनाओं का बेहद ठोस क्रियान्वयन हुआ है। इन कामों की वजह से रमन सिंह की राह थोड़ी आसान होती दिख रही है। दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि लोग रमन सिंह सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों के स्थायित्व को लेकर बेहद फिक्रमंद हैं। वे कहते हैं केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने का लाभ छत्तीसगढ़ को मिला है।

यदि कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आयेगी, तो फिर इन विकास कार्यों का क्या होगा। क्या दिल्ली की मदद के बिना ये योजनाएं जारी रखी जा सकेंगी। ये दोनों सवाल छत्तीसगढ़ के लोगों के जेहन में खूब कौंध रहे हैं। इसके अतिरिक्त लोग उन इलाकों की बात भी करते हैं, जहां कांग्रेस के विधायक हैं। लोग विकास के हर काम का श्रेय विधायक को देते हैं। लोग उन इलाकों की बात करते हैं, जहां विकास कम हुआ है। वहां कांग्रेस के विधायक हैं। कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह हकीकत है कि उन क्षेत्रों में विकास अपेक्षाकृत कम हुआ है। लोग यह नहीं जानते कि विपक्ष में होने के कारण वहां के विधायक विकास योजनाओं को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित नहीं करा सके, या फिर खुद इसकी इच्छा नहीं रखते। यह भी सच है कि कांग्रेस के प्रभाव वाले इलाकों में सरकारी योजनाएं नहीं पहुंचीं।

इस इलाके का जनजीवन पूरी तरह शांत है। अपराध का नामो-निशान नहीं है। अपराध के नाम पर नक्सली हिंसा ही यहां के जनजीवन को प्रभावित करता है। यहां सीआरपीएफ की टुकड़ियां तैनात हैं, लेकिन स्थानीय लोग उन्हें पसंद नहीं करते। दूसरी तरफ स्थानीय पुलिस है, जो लोगों के अधिक करीब है। नक्सलियों ने सुरक्षा बलों को यहां देशी और बॉयलर नाम दिया गया है। वे राज्य पुलिस को देशी कहते हैं, जबकि सीआरपीएफ को बॉयलर। भौगोलिक जानकारी के अभाव में सीआरपीएफ को अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ में बिजली नहीं कटती है। लोगों को लोड शेडिंग और शटडाउन जैसी समस्याओं की जानकारी भी नहीं है। वे कहते हैं कि आम नागरिक सुविधाओं का कोई अभाव नहीं है। सड़कें अच्छी हैं, सरकारी योजनाएं अच्छी तरह से कार्यान्वित हो रही हैं।

राजनीतिक और सांगठनिक रूप से भी अन्य पार्टियों की तुलना में भाजपा राहत महसूस कर रही है। सौदान सिंह के नेतृत्व में भाजपा जहां गांवों तक में सक्रिय दिखती है, वहीं दूसरी पार्टियों के लोग कुछ इलाकों में सिमटे हुए नजर आते हैं। कांग्रेस के लोग असमंजस में हैं। उन्हें राहुल गांधी का इंतजार है, जो अपना अधिकांश समय राजस्थान और मध्यप्रदेश पर लगा रहे हैं। अजीत जोगी के अधिकांश उम्मीदवार कांग्रेस के असंतुष्ट हैं। भाजपा की पार्टी मशीनरी इस मोर्चे पर आगे दिखती है। पार्टी ने कई चुनावों के प्रभारी रहे लोगों को यहां तैनात किया है। उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड से संगठन प्रभारियों को यहां लगाया गया है। सांसद सुनील सिंह, राकेश भास्कर, शशिकांत सिंह, संजय सिंह सरीखे तपे-तपाये और अनुभवी नेता प्रचार प्रबंधन देख रहे हैं। स्थानीय कार्यकर्ता पार्टी के प्रचार अभियान को जमीनी स्तर तक ले जा रहे हैं। यहां पहुंचे नेता प्रखंड स्तर पर प्रवास कर रहे हैं।

भाजपा के पक्ष में एक और बात जाती नजर आती है। वह है कि स्थानीय मुद्दों का अभाव। यहां के लोग कश्मीर की समस्या पर बात करते हैं, पाकिस्तान और आतंकवाद की बात करते हैं। यह साबित करता है कि यहां स्थानीय मुद्दे नहीं हैं। विपक्षी दलों को आज भी वैसे किसी मुद्दे की तलाश है, जिसे उठा कर वह मतदाताओं को प्रभावित कर सकें। कुल मिला कर छत्तीसगढ़ की स्थिति ऐसी है कि यहां के लोगों के पास विकल्प का घोर अभाव है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि इस बार वे किसे समर्थन दें। इस दुविधा का लाभ सत्ताधारी दल को मिलना स्वाभाविक नजर आ रहा है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version