रांची। तीन साल से विवाद में घिरे बकोरिया मुठभेड़ कांड के मामले में हाइकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुना दिया है। हाइकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराने का आदेश दे दिया। यह आदेश पुलिस के लिए बड़ा झटका है। बकोरिया कांड को पुलिस के कई अधिकारी फर्जी बता रहे थे, जबकि एक वर्ग इसे सही ठहरा रहा था। सीबीआइ जांच के आदेश के बाद पुलिस महकमे के कुछ अधिकारियों में हड़कंप मच गया है।

पलामू के चर्चित बकोरिया मुठभेड़ कांड झारखंड हाइकोर्ट ने सीबीआइ जांच के आदेश दे दिये हैं। इस मामले में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रंजन मुखोपाध्याय ने सीआइडी जांच रिपोर्ट को संतोषजनक नहीं माना और जनहित को ध्यान में रख कर मामले की सीबीआइ जांच के आदेश दे दिये। इस संदर्भ में कथित मुठभेड़ में मारे गये पारा टीचर उदय यादव के परिजन जवाहर यादव ने हाइकोर्ट में याचिका दायर कर मामले की सीबीआइ जांच की मांग की थी। इस आदेश के बाद झारखंड पुलिस महकमा सकते में है।

बताते चलें कि 8 जून 2015 को बकोरिया में पुलिस ने नक्सलियों के साथ मुठभेड़ का दावा किया था, जबकि गांववालों और ग्रामीणों का कहना था कि पुलिस ने लोगों को घेर कर मार दिया है। ग्रामीणों का दावा था कि मुठभेड़ के नाम पर जिनको मारा गया, वे ग्रामीण थे। इसी मामले को लेकर जवाहर यादव ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। सीआइडी ने आनन-फानन में जांच रिपोर्ट पलामू कोर्ट में सौंप दी थी।

सीआइडी ने रिपोर्ट में मुठभेड़ को सही बताया था। कहा था कि माओवादी डॉ अनुराग समेत 12 के खिलाफ सतबरवा थाना में दर्ज कांड पूरी तरह सही है। यहां उल्लेख करना जरूरी है कि मृतकों में पांच के नाबालिग होने की बात पहले ही सामने आयी थी, लेकिन सीआइडी ने अपनी जांच रिपोर्ट में सभी को बालिग करार दिया है। सीआइडी ने अपनी रिपोर्ट में मृतकों का बयान लेने का दावा किया है। सीआइडी ने अपनी जांच रिपोर्ट में तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो और तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक के बयान को पूर्वाग्रह से ग्रसित और झूठ करार दिया है। सीआइडी ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह कहा है कि उनके बयान को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।

सीआइडी की जांच रिपोर्ट में अभियान को बताया गया गोपनीय
सीआइडी ने जांच रिपोर्ट में लिखा है कि माओवादियों के खिलाफ अभियान की योजना बेहद गोपनीय थी। इसकी जानकारी सभी अधिकारियों को नहीं दी गयी थी। रिपोर्ट में उसने यह भी मेंशन किया है कि मारे गये माओवादियों के पास से बरामद हथियार को भी एफएसएल जांच के लिए भेजा गया था। एफएसएल जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि माओवादियों के पास से बरामद हथियार से ही फायरिंग की गयी थी।

डीआइजी, थानेदार, लातेहार एसपी अजय लिंडा और एमवी राव ने मुठभेड़ को गलत बताया था
बकोरिया कांड उस समय विवाद में आ गया, जब पलामू के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो, तत्कालीन थानेदार हरीश पाठक ने इसे फर्जी बता दिया। थानेदार ने लिखित में यह आरोप लगाया था कि उन्हें बकोरिया की घटना को मुठभेड़ बताने के लिए दबाव डाला गया। डीआइजी ने भी थानेदार की बातों पर मुहर लगायी। यही नहीं, लातेहार के तत्कालीन एसपी अजय लिंडा ने भी मुठभेड़ पर सवाल उठाये थे। बाद में तेज-तर्रार अफसर एमवी राव ने भी इस मामले में पुलिस तंत्र को लपेट दिया। उनके रुख के बाद उनमें और पुलिस महकमे में ठन भी गयी और एमवी राव को दिल्ली का रास्ता दिखा दिया गया।

अधिकारियों का कॉल डिटेल नहीं निकाला
इस मुठभेड़ की परतें उस समय खुलने लगीं, जब सीआइडी के तत्कालीन एडीजी एमवी राव ने दिसंबर 2017 में केस की समीक्षा की। समीक्षा के बाद उन्होंने केस के अनुसंधानकर्ता को आदेश दिया था कि उस दिन बकोरिया घटनास्थल पर गये तमाम पुलिस अधिकारियों का सीडीआर निकालें, सभी अधिकारियों, उनके चालक, बॉडीगार्ड का बयान लेने का आदेश भी केस के अनुसंधानकर्ता को दिया गया था। अनुसंधानकर्ता ने अनुसंधान में जानकारी दी कि उसने अधिकारियों के मोबाइल की सीडीआर निकालने के लिए मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों को पत्र लिखा था, लेकिन एक साल पुरानी सीडीआर देने में कंपनियों ने असमर्थता जतायी। मुठभेड़ के समर्थन में सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट, पलामू के तत्कालीन एसपी कन्हैया मयूर पटेल, सतबरवा के तत्कालीन थानेदार, अधिकारियों के बॉडीगार्ड और चालक का बयान सीआइडी ने दर्ज किया है।

आठ जून 2015 को हुई थी मुठभेड़
गौरतलब है कि आठ जून 2015 को पलामू के सतबरवा ओपी के बकोरिया में तथाकथित मुठभेड़ में भाकपा माओवादी अनुराग, पांच नाबालिगों समेत 12 लोगों की मौत हो गयी थी। मुठभेड़ के बाद पलामू डीआइजी हेमंत टोप्पो, लातेहार के तत्कालीन एसपी अजय लिंडा, पलामू सदर थाना के प्रभारी हरीश पाठक ने मुठभेड़ पर सवाल उठा दिया था। पुलिस अधिकारियों ने ही इस मुठभेड़ को संदेहास्पद माना था। पुलिस अधिकारियों ने अपने बयान में यह कहा था कि संभवत: जेजेएमपी नामक उग्रवादी संगठन ने ही इस घटना को अंजाम दिया है और बाद में वाहवाही लेने के लिए इसे पुलिस मुठभेड़ की कहानी गढ़ दी गयी।

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