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    Home»Breaking News»रमन सिंह ही नहीं, नक्सली भी लड़ रहे हैं अस्तित्व की लड़ाई
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    रमन सिंह ही नहीं, नक्सली भी लड़ रहे हैं अस्तित्व की लड़ाई

    azad sipahiBy azad sipahiOctober 31, 2018No Comments6 Mins Read
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    दंतेवाड़ा से हरिनारायण सिंह
    छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के चुनाव में नक्सली हमेशा से एक महत्वपूर्ण फैक्टर रहे हैं। इस बार नक्सली अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। बिहार और झारखंड में कमर टूटने के बाद नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में तन कर खड़ा होने की कवायद शुरू कर दी है। उन्होंने बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और नारायणपुर को इसलिए चुना है, क्योंकि वहां उनके सुरक्षा कवच के रूप में जंगल, पहाड़ और घाटी मौजूद हैं। उन्होंने चुनाव बहिष्कार की चेतावनी लगे पोस्टर लगा रखे हैं। राज्य के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर और बस्तर में नक्सलियों के पोस्टर खूब दिखते हैं। इनमें वोट देने पर हाथ काटने की धमकी लिखी हुई है।

    इसे नक्सलियों का आतंक कह लें या उनका असर, इन इलाकों के करीब 20 प्रतिशत बूथ अब भी राजनीतिक दलों की पहुंच से दूर हैं। उन इलाकों में जाने का साहस प्रशासन भी नहीं कर पा रहा है। भाजपा के 15 साल के शासन में इतना बदलाव जरूर हुआ है कि इन इलाकों के ग्रामीण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन उन्हें पड़ोसी राज्यों, झारखंड, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओड़िशा से आये हार्डकोर नक्सलियों का डर है।

    छत्तीसगढ़ के इन इलाकों में स्थानीय नक्सली नहीं के बराबर बच गये हैं। पूरे इलाके में गढ़चिरौली (महाराष्ट्र), करीमनगर (आंध्रप्रदेश-तेलंगाना) और उड़ीसा के नक्सली फैले हुए हैं। झारखंड के गुमला और नेतरहाट से आये नक्सली भी इलाके में हैं। नक्सली गतिविधियों की कमान आंध्र के नक्सली संभाले हुए हैं। ये नक्सली सबरी, इंद्रावती, डंकिनी, संकिनी जैसी नदियों के किनारों से होकर आते हैं और वारदात कर लौट जाते हैं। इन इलाकों में विकास भी खूब दिखता है, लेकिन नक्सली हथियार के बल पर दबदबा बनाये हुए हैं।

    दंतेवाड़ा और सुकमा में लगाये गये नक्सली पोस्टरों में ‘बायकॉट फेक छत्तीसगढ़ चुनाव’ और ‘कॉरपोरेट एंड हिंदू फासिस्ट’ बीजेपी का बहिष्कार करो और दूसरी राजनीतिक पार्टियों को जन अदालत में खड़ा करो जैसे नारे लिखे गये हैं। चेतावनी भरे पोस्टरों में वोट डालने पर हाथ काट देने और जन अदालत में सजा देने की बात कही गयी है। भाकपा (माओवादी ) ने ये पोस्टर जारी किये हैं। कई पोस्टरों में लिखा है, ‘जनता सरकार को मजबूत करेंगे, उनका विस्तार करेंगे, जनयुद्ध को तेज करके, दमन योजना समाधान को हरायेंगे।’

    नक्सलियों का इतिहास रहा है कि वे अधिकतर सत्ताधारी दल पर ही निशाना साधते हैं, क्योंकि वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ हैं। पुलिस के लोग कहते हैं कि नक्सली गांवों में मीटिंग करके ग्रामीणों को धमकाते हैं और उन्हें चुनाव से दूर रहने को कहते हैं।

    इलाके में सुरक्षा बल तैनात : पुलिस अधिकारी बताते हैं कि हमने पोस्टर जब्त कर लिये हंै। इनमें नक्सली सीधे-सादे आदिवासियों को धमकाते हुए बीजेपी, कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को वोट नहीं करने को कहते हैं। बीजापुर में केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल के एक अधिकारी ने कहा कि वैसे तो राज्य में भारी-भरकम सुरक्षा बल की तैनाती की गयी है, लेकिन नक्सली अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हिंसा भड़काने की कोशिश कर सकते हैं।

    चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा: पूरे नक्सल प्रभावित इलाके में सुरक्षा के कड़े इंतजाम दिखते हैं। सड़कों पर बैरियर लगे हैं। वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है। गाड़ियों की बारीकी से जांच की जाती है और उनका रिकॉर्ड रखा जाता है।

    उम्मीदवारों को दिये गये हैं दो-दो पीएसओ: बस्तर संभाग के पुलिस अधिकारी शांतिपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने सुरक्षा का एक ब्लू प्रिंट तैयार किया है। उम्मीदवारों को सुरक्षा के लिए दो पीएसओ दिये गये हैं। इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आधा दर्जन गांवों में दो दशक बाद मतदान कराने के लिए कड़े इंतजाम किये गये हैं। दंतेवाड़ा के कुआकोंडा-अरनपुर क्षेत्र में ऐसे आधा दर्जन गांव हैं, जहां मतदान कराना दुरूह रहा है। इन गांवों में पिछली बार एक भी वोट नहीं पड़ा था। इस बार सरकार के सुरक्षा इंतजाम को देखकर गांववाले मतदान को लेकर काफी उत्साहित हैं।

    राजनीतिक दलों की रणनीति: छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़नेवाले तमाम राजनीतिक दलों ने नक्सलियों से बचने के लिए अलग-अलग रणनीति बनायी है। भाजपा के लोग जहां सामान्य ढंग से अपना काम कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के लोग दिन के उजाले में ही गांवों में जाते हैं। भाजपा नेताओं को इस बात का एहसास है कि सत्ताधारी दल होने के नाते सर्वाधिक खतरा उन्हें ही है। इसलिए पार्टी ने करीब तीन महीने पहले ही अगल-बगल के राज्यों से अपने पूर्णकालिक और तपे-तपाये कार्यकर्ताओं को गांवों में तैनात कर दिया है। ये कार्यकर्ता पार्टी की अगली पंक्ति के नेताओं और स्थानीय कार्यकर्ताओं-लोगों के बीच कड़ी बने हुए हैं। वे गांवों में किसी कार्यकर्ता के घर में या खेतों में रहते हैं, वहीं खाना खाते हैं। बस्तर में भाजपा के कई ऐसे लोग मिले, जो पिछले दो महीने से खेत में रह रहे हैं। वहीं खाना खाते हैं। भाजपा के नेता गांवों में जाने से बच रहे हैं। इसका कारण उन्हें मिली सुरक्षा है। वे जहां भी जाते हैं, सुरक्षाकर्मी उनके साथ रहते हैं। सुरक्षाकर्मियों को देख कर नक्सली लाल-पीले हो जाते हैं।

    भाजपा के कप्तान सौदान सिंह के निर्देश में राजेंद्र सिंह लगातार दौरा कर रहे हैं। सुबह छह बजे से उनका दौरा शुरू हो जाता है, जो शाम ढलने से पहले मुख्यालय लौटने तक जारी रहता है। उसके बाद आधी रात के बाद तक वह शहरी इलाकों में काम करते हैं। अरुण परिहार, संजय कुमार, अरुण सिंह, जितेंद्र सिंह, अजय सिंह सरीखे कार्यकर्ता गांवों-कस्बों में ही प्रवास कर रहे हैं। सभी दलों ने अपने कार्यकर्ताओं को अंधेरा होने से पहले घरों में या कार्यालयों में लौट आने का कड़ा निर्देश दे रखा है। राजेंद्र सिंह ने एक नारा दे रखा है, जहां कम वहां हम। अर्थात जहां कोई समस्या है या किसी चीज की कमी है, भाजपा के लोग वहां पहुंचते हैं और समस्याओं का समाधान करते हैं।

    उम्मीदवार और लगभग सभी दलों के नेता लगातार गाड़ियां और ड्राइवर भी बदलते रहते हैं। उनके आने-जाने की सूचना बेहद गोपनीय रखी जाती है। केवल स्थानीय स्तर पर तैनात कार्यकर्ताओं को उनके आने की सूचना मिलती है। उम्मीदवारों और उनकी गाड़ियों पर न तो पार्टी का झंडा-पोस्टर होता है और न ही चुनाव चिह्न। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की स्थिति कुल मिला कर यह है कि जिस तरह रमन सिंह ही और भाजपा का अस्तित्व छत्तीसगढ़ में दांव पर है, उसी तरह माओवादी भी अपना आखिरी किला बचाने के लिए सक्रिय हो गये हैं।

    नक्सली भी लड़ रहे हैं अस्तित्व की लड़ाई
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