झारखंड विधानसभा के लिए होनेवाले चुनाव में भाजपा अभी निश्चित रूप से अन्य विपक्षी दलों के मुकाबले बहुत आगे है, लेकिन इसके सामने टिकट बांटने की बड़ी चुनौती है। राज्य गठन के बाद से अधिकतर समय सत्ता में रहनेवाली भाजपा का नेतृत्व अपने कम से कम दो सीटिंग विधायकों को लेकर पसोपेश में है। इनमें अपराधी सिद्ध सजायाफ्ता ढुल्लू महतो और अपने चचेरे भाई की हत्या के संगीन आरोप में जेल में बंद संजीव सिंह शामिल हैं। पार्टी समझ नहीं पा रही है कि इन दो ‘दागों’ को वह किस प्रकार साफ करे, ताकि उसकी साख और सीट बची रह सके। ढुल्लू की कारस्तानी ने भाजपा को लोकसभा चुनाव के पहले से ही परेशान कर रखा है। रंगदारी से लेकर यौन शोषण तक के मामले से घिरे इस विधायक के कारण कई बार पार्टी की किरकिरी भी हुई है। उधर संजीव सिंह का मामला भी कम पेंचीदा नहीं है। पिछली बार मां कुंती सिंह के स्थान पर चुनाव लड़ कर राज्य की सबसे बड़ी पंचायत तक पहुंचे संजीव सिंह को कैसे समझाया जाये, यह सिरदर्द भाजपा झेल रही है। इन दोनों विधायकों के बारे में भाजपा के क्या हैं विचार और क्या है उसकी रणनीति, इस पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
झारखंड बनने के बाद से अधिकांश समय सत्ता में रहनेवाली भाजपा इस साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनावों को लेकर बेहद उत्साहित है। उसे पूरी उम्मीद है कि इस बार वह 65 प्लस के अपने लक्ष्य को जरूर हासिल कर लेगी, क्योंकि कमजोर विपक्ष उसे चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। लेकिन भाजपा के अंदरखाने में इस बात को लेकर चिंता है कि दो सीटिंग विधायकों का क्या किया जाये। चाहे भाजपा का नेतृत्व हो या चुनाव प्रभारी हों, सभी इस बात पर मंथन कर रहे हैं कि इन दो दागों से पीछा कैसे छुड़ाया जाये। ये दो विधायक हैं बाघमारा के सजायाफ्ता विधायक ढुल्लू महतो और झरिया के संजीव सिंह। ढुल्लू महतो को अदालत ने अपराधी करार देते हुए डेढ़ साल की कैद की सजा सुनायी है, जबकि संजीव सिंह अपने चचेरे भाई की हत्या के संगीन जुर्म में जेल में बंद हैं।
भाजपा के समक्ष क्या है दुविधा
भाजपा के लिए ये दोनों विधायक सिरदर्द बन गये हैं। पार्टी नेतृत्व हर कीमत पर इन दोनों को किनारे करना चाहता है, लेकिन समस्या यह है कि उसके पास इन सीटों पर न तो कोई ताकतवर विकल्प है और न ही इन दोनों को किनारे करने का कोई उपाय उसे सूझ रहा है। पार्टी का मानना है कि यदि इन दोनों को टिकट दिया जाता है, तो पार्टी की साफ-सुथरी छवि को नुकसान पहुंचेगा। इतना ही नहीं, बेदाग सरकार की धारणा को भी झटका लगेगा और विपक्ष को बैठे-बिठाये एक बड़ा मुद्दा मिल जायेगा, जिसका नुकसान चुनाव में हो सकता है। पार्टी यदि इन दोनों की पत्नियों पर दांव लगाती है, तो उस स्थिति में उस पर परिवारवाद का आरोप लगेगा और विपक्ष को हमला करने का एक हथियार मिल जायेगा। अर्थात, इन दोनों विधायकों को लेकर भाजपा के समक्ष काफी चुनौती है। भाजपा का एक बड़ा तबका मानता है कि इन दोनों से पार्टी को हमेशा के लिए छुटकारा पा लेना चाहिए, वहीं उसके समक्ष बड़ी चुनौती यह है कि वहां से किसे उतारा जाये। दोनों ही सीटों पर इन विधायकों की पकड़ है और बगैर उनकी सहमति के वहां भाजपा के उम्मीदवार का जीतना मुश्किल है।
ढुल्लू महतो के कारण भाजपा की बार-बार हुई है किरकिरी
जहां तक सजायाफ्ता ढुल्लू महतो की बात है, तो भाजपा की उनके कारण कई बार किरकिरी हो चुकी है। धनबाद के कोयला व्यवसायियों ने ढुल्लू के आतंक से छुटकारा दिलाने की गुहार रांची से लेकर दिल्ली तक लगायी है। कोयला व्यवसायी के साथ धनबाद के दूसरे व्यवसायी, यहां तक कि पूरा चैंबर आॅफ कॉमर्स है। उनका साफ कहना है कि यदि भाजपा ने उन्हें ढुल्लू के आतंक से मुक्ति नहीं दिलायी, तो उनके लिए पार्टी का समर्थन करना मुश्किल हो जायेगा। अपने सबसे विश्वसनीय और ठोस वोट बैंक को एक सजायाफ्ता के लिए भाजपा अपने हाथ से जाने देगी, इसकी कल्पना भी कठिन है। ढुल्लू महतो के खिलाफ रंगदारी, गवाहों को धमकाने, गोली चलाने, दबंगई दिखाने और अपनी ही पार्टी की नेत्री के यौन शोषण का आरोप है। बुधवार को ही उन्हें पुलिस हिरासत से एक अभियुक्त को जबरन छुड़ाने के मामले में अपराधी करार देते हुए सजा सुनायी गयी है। खुद को बाघमारा इलाके का टाइगर कहनेवाले ढुल्लू की गिरिडीह-धनबाद में किसी भी भाजपा नेता से नहीं बनती है। वे वहां सबको ठेंगे पर रखते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन सांसद रवींद्र पांडेय के साथ उनका विवाद काफी चर्चित हो चुका है। खुद ढुल्लू का मानना है कि इलाके में पार्टी का अस्तित्व उनकी बदौलत है, न कि वह पार्टी की बदौलत हैं। ऐसे नेता को भाजपा अब तक कैसे झेल रही है, यह सवाल लोगों की जुबान पर है।
संजीव सिंह से परेशानी
भाजपा को झरिया के सीटिंग विधायक संजीव सिंह से परेशानी यह है कि वह हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। अब तक भाजपा ऐसे किसी भी नेता से खुद को दूर रखती आयी है, जिस पर गंभीर आपराधिक मामले हों। संजीव सिंह को पिछली बार उनकी मां के स्थान पर पार्टी ने टिकट दिया था। लेकिन इस बार वह क्या करेगी, इसको लेकर मंथन चल रहा है। हालांकि संजीव सिंह ने अब तक पार्टी को कोई चुनौती नहीं दी है और हमेशा उसका साथ दिया है, फिर भी उन्हें टिकट देकर भाजपा बदनामी मोल नहीं लेना चाहेगी।
क्या है विकल्प
इन दोनों सीटिंग विधायकों का टिकट काटने का मतलब बाघमारा और झरिया में भाजपा की स्थिति कमजोर होना तय है। 65 प्लस के लक्ष्य को लेकर चुनाव मैदान में उतरी भाजपा का नेतृत्व किसी भी कीमत पर इन दोनों सीटों को गंवाना नहीं चाहेगा। तब उसके सामने विकल्प क्या हो सकता है, यह बड़ा सवाल है। फिलहाल तो भाजपा के सामने इनकी बात मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है, लेकिन चर्चा यही है कि भाजपा इन दोनों सीटों पर लोकसभा चुनाव वाला फॉर्मूला अपना सकती है।
लोकसभा चुनाव में पांच बार के सांसद रवींद्र पांडेय से छुटकारा पाने के लिए भाजपा ने गिरिडीह सीट आजसू को दे दी थी। इसी तरह विधानसभा चुनाव में बाघमारा और झरिया सीट पर भाजपा के समक्ष किसी दल के साथ समझौता करना भी विकल्प हो सकता है। हालांकि ऐसे किसी विकल्प की संभावना फिलहाल नहीं दिखती। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन दोंनों दाग को कैसे धोती है।