झारखंड की दो विधानसभा सीटों, दुमका और बेरमो में तीन नवंबर को मतदान होगा। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में यह पहला उप चुनाव हो रहा है। लिहाजा इसे लेकर राजनीतिक पार्टियां बेहद गंभीर हैं और पूरे दम-खम के साथ वे इस चुनावी मुकाबले में उतरने के लिए तैयार हो रही हैं। मुकाबले की तस्वीर भी लगभग साफ हो चुकी है। इसके अनुसार दुमका में जहां मुकाबला झामुमो और भाजपा के बीच होगा, वहीं बेरमो सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होगी, क्योंकि आजसू ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए बेरमो से अपनी दावेदारी वापस ले ली है। उप चुनाव की अधिसूचना भी जारी होनेवाली है, लेकिन दोनों राष्ट्रीय पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस ने अभी तक उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं की है। कांग्रेस के भीतर बेरमो सीट से दिवंगत राजेंद्र सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी कुमार जयमंगल सिंह उर्फ अनुप सिंह निस्संदेह सबसे बड़े हकदार और दावेदार हैं, बावजूद कांग्रेस ने अभी तक बेरमो में प्रत्याशी के नाम का पत्ता नहीं खोला है, वहीं भाजपा भी अभी तक प्रत्याशी के नाम को लेकर मंथन ही कर रही है। भाजपा के भीतर दोनों सीटों के लिए एक से अधिक दावेदार जोर लगा रहे हैं। इसके विपरीत झामुमो ने दुमका सीट से बसंत सोरेन को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी है और बसंत सोरेन मैदान में उतर भी चुके हैं। कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों के चयन में इतना समय लगना इस बात का साफ संकेत है कि दोनों ही दलों में आत्मविश्वास की कमी है। दोनों के पास कई दावेदार हैं। दोनों राष्ट्रीय दलों द्वारा प्रत्याशी चयन में हो रही देरी के कारणों की समीक्षा करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
झारखंड की दुमका और बेरमो विधानसभा सीटों पर तीन नवंबर को चुनाव होगा। चुनाव आयोग द्वारा जारी कार्यक्रम के अनुसार इसकी अधिसूचना तीन अक्टूबर को जारी होगी, लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने अब तक अपने उम्मीदवारों के नामों का एलान नहीं किया है। दोनों राष्ट्रीय दलों द्वारा प्रत्याशी चयन में हो रही देरी के राजनीतिक मतलब निकाले जाने लगे हैं। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में यह पहला उप चुनाव हो रहा है। इसलिए सभी दल इसमें जीत हासिल करने के लिए पूरा जोर लगायेंगे, यह तय है। दुमका और बेरमो में सीधा मुकाबला ही होगा, यह भी तय हो चुका है। हेमंत सोरेन के इस्तीफे के कारण खाली हुई दुमका सीट पर उनके छोटे भाई और झामुमो नेता बसंत सोरेन का सीधा मुकाबला भाजपा से होगा, जबकि बेरमो के अखाड़े में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर होगी। पहले बेरमो में आजसू के उतरने के कयास लगाये जा रहे थे, लेकिन सुदेश महतो ने चुनाव लड़ने की अपेक्षा गठबंधन धर्म को तरजीह दी है और उन्होंने वहां से अपनी दावेदारी वापस ले ली है। इसलिए चुनावी मुकाबले की तस्वीर साफ हो गयी है। राजेंद्र सिंह के वारिस के रूप में अनुप सिंह सामने हैं, बावजूद इसके कांग्रेस को बेरमो से उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा करने में पसीने छूट रहे हैं, तो भाजपा के लिए दोनों सीटों के लिए एक से अधिक दावेदारों के सामने आने के कारण प्रत्याशी तय करना मुश्किल हो रहा है। अंदरखाने की खबर के मुताबिक बेरमो और दुमका में भाजपा का आत्मविश्वास डगमगा रहा है। बाबूलाल मरांडी और दीपक प्रकाश दोनों की अग्निपरीक्षा होनेवाली है। यही कारण है कि यहां मंथन का दौर जारी है।
बात कांग्रेस से शुरू करते हैं। पार्टी को दिसंबर में हुए चुनाव में बेरमो सीट पर जीत हासिल हुई थी। उसके दिग्गज श्रमिक नेता राजेंद्र सिंह वहां से भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को हरा कर विधायक चुने गये थे। राजेंद्र सिंह की जीत का अंतर 25 हजार से अधिक वोटों का था। राजेंद्र सिंह को 89 हजार के आसपास वोट मिले थे, जबकि बाटुल को 63 हजार के करीब। बाद में राजेंद्र सिंह का बीमारी के कारण निधन हो गया। कोयला क्षेत्र की सीट होने के कारण बेरमो में श्रमिक मतदाताओं का दबदबा है, लेकिन जातीय समीकरणों के कारण यहां से भाजपा भी जीतती रही है। पिछले चुनाव में झामुमो से गठबंधन के कारण कांग्रेस की राह आसान हो गयी थी, जबकि आजसू और झाविमो ने अलग-अलग प्रत्याशी उतारा था। हालांकि इन दोनों उम्मीदवारों ने भाजपा को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाया था, लेकिन मतदाताओं के सामने दुविधा जरूर पैदा कर दी थी। इस बार राजेंद्र सिंह के बड़े पुत्र कुमार जयमंगल सिंह उर्फ अनुप सिंह कांग्रेस के सबसे मजबूत दावेदार हैं। स्थानीय स्तर पर भी उन्हें लगभग सभी कांग्रेसियों का समर्थन हासिल है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेता उनकी उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। इसलिए उनके नाम की घोषणा में देरी हो रही है।
उधर भाजपा के भीतर दुमका और बेरमो से टिकट हासिल करने के लिए कई दावेदार जोर-आजमाइश कर रहे हैं। दुमका से प्रो लुइस मरांडी सशक्त दावेदार हैं, लेकिन संघ के स्थानीय नेताओं को उनके नाम पर आपत्ति है। भाजपा ने पहले विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को दुमका से उतारने का मन बनाया था, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। इसके बाद पार्टी ने अंजुला मुर्मू के नाम पर विचार किया। अंजुला पिछले विधानसभा चुनाव में झाविमो की प्रत्याशी थीं। भाजपा नेतृत्व लुइस मरांडी के नाम पर विचार तो करना चाहती है, लेकिन पिछले चुनाव के दौरान संघ के साथ उनके संबंधों को लेकर सशंकित भी है। पिछले चुनाव में लुइस मरांडी को 68 हजार से कुछ कम मत मिले थे और वह 13 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार गयी थीं। उनकी हार के पीछे संघ की नाराजगी भी एक कारण था, जिसका जिक्र उन्होंने बाद में किया भी था। बेरमो सीट से योगेश्वर महतो बाटुल भाजपा के सशक्त दावेदार तो हैं, लेकिन सूत्रों का मानना है कि वहां से किसी दूसरे प्रत्याशी के नाम पर भी मंथन चल रहा है। गिरिडीह के पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय का कार्यक्षेत्र भी बेरमो रहा है। भाजपा उनके नाम पर विचार भी कर रही है, लेकिन अंदरखाने की खबर है कि रवींद्र पांडेय अपनी जगह अपने बेटे को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, जिसके नाम पर भाजपा में सहमति नहीं हो पा रही है। बेरमो में पार्टी की नजर जातीय समीकरण पर भी है, क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उसने सवर्णों के टिकट काटे थे। इसलिए चर्चा यह भी है कि इस बार भाजपा सवर्णों की उस शिकायत को दूर कर सकती है। यदि ऐसा होता है, तो बेरमो से कोई नया चेहरा भी उतर सकता है। इधर बेरमो से कुल 11 दावेदारों के सामने आने के बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने अधिकतम चार या पांच का नाम भेजने को कहा है। इसलिए पार्टी पसोपेश में है।
कुल मिला कर दुमका और बेरमो में उम्मीदवार चुनने में कांग्रेस और भाजपा की परेशानी को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि दोनों राष्ट्रीय पार्टियां अपने अंदर आत्मविश्वास की कमी महसूस कर रही हैं, यही कारण है कि अभी उम्मीदवार के नाम पर मंथन ही चल रहा है। दूसरी तरफ मैदान मारने के लिए दुमका में झामुमो के उम्मीदवार बसंत सोरेन मैदान में उतर चुके हैं। झामुमो की पूरी टीम वहां काम करने लगी है। शिबू सोरेन के पुराने सिपहसालार भी मैदान में उतर चुके हैं।