…दुमका और बेरमो में तीन नवंबर को होनेवाले विधानसभा उप चुनाव के लिए प्रचार अभियान चरम पर पहुंच गया है। दोनों सीटों पर सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। दोनों ही सीटों पर चुनाव प्रचार के दौरान बयानों के तीर खूब चल रहे हैं। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इस अभियान के दौरान अब झामुमो और कांग्रेस ने भाजपा पर राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगा कर चुनावी माहौल के तापमान को बेहद गरम कर दिया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव ने तो कहा है कि दुमका-बेरमो में भाजपा की हार तय है, लेकिन वह राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में जुट गयी है। उन्होंने भाजपा पर सत्ता लोलुपता का आरोप भी मढ़ दिया है। झामुमो की ओर से भी ऐसे ही आरोप लगाये गये हैं। इन आरोपों के बाद भाजपा डिफेंसिव मोड में दिख रही है, लेकिन इन शब्द वाणों के बीच एक बात के ठोस संकेत मिलने लगे हैं कि उप चुनाव के बाद झारखंड में नया सियासी समीकरण आकार ले सकता है। वैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कह चुके हैं कि इन उप चुनावों के परिणाम से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़नेवाला है, लेकिन राजनीति तो संभावनाओं का दूसरा नाम है। दुमका-बेरमो के चुनाव प्रचार अभियान की पृष्ठभूमि में झारखंड की सियासी तसवीर उकेरती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
दुमका और बेरमो में मतदान के लिए अब एक सप्ताह का समय बच गया है और इस कारण यहां प्रचार अभियान चरम पर पहुंच गया है। कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में पहले बड़ी सभाएं करने पर रोक थी, लेकिन अब इसकी अनुमति मिलने के बाद झामुमो-कांग्रेस और भाजपा की ओर से ताबड़तोड़ सभाएं की जा रही हैं। दुमका में झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन डेरा डाल चुके हैं। पिछले तीन दिन में हेमंत सोरेन ने करीब दर्जन भर सभाएं की हैं।
उधर बेरमो में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव तथा हेमंत सरकार के अन्य तीन मंत्री और विधायक पार्टी प्रत्याशी कुमार जयमंगल सिंह के पक्ष में पूरी ताकत झोंके हुए हैं। दोनों सीटों पर भाजपा नेता भी खूब पसीना बहा रहे हैं। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास, प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी लगातार वहां कैंप किये हुए हैं।
कोरोना काल में हो रहे इस उप चुनाव में बहुत सी चीजें पहली बार हो रही हैं। चुनाव प्रचार का तौर-तरीका भी बहुत हद तक बदला हुआ है। बदले तरीके से चुनाव प्रचार में सबसे अंतिम कतार के मतदाताओं से संपर्क-संवाद बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
इन दोनों क्षेत्रों में चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान अब आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरू हो गया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव ने आरोप लगाया है कि दुमका-बेरमो के बहाने भाजपा राज्य सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने भाजपा पर येन-केन-प्रकारेण सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश का आरोप लगाते हुए गोवा, कर्नाटक और मध्यप्रदेश का उदाहरण दिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हालांकि कह रहे हैं कि इन दो सीटों के चुनाव परिणाम से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन वह केंद्र की भाजपा सरकार पर झारखंड को परेशान करने का आरोप लगातार लगा रहे हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से इस तरह के आरोप लगाये जाने के बाद भाजपा डिफेंसिव मोड में नजर आने लगी है। वैसे भी प्रचार के शुरुआती दौर में, जब कोरोना संक्रमण के कारण चुनावी सभाओं की अनुमति नहीं थी और व्यक्तिगत संपर्क का जोर था, भाजपा पिछड़ती हुई दिख रही थी।
वैसे प्रत्यक्ष तौर पर देखा जाये, तो दुमका और बेरमो का परिणाम राज्य सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं डालेगा, लेकिन कोई भी चुनावी जीत या हार राजनीतिक दलों के मनोबल को जरूर बढ़ा या घटा देता है। सत्तारूढ़ गठबंधन यदि दोनों सीटें जीत लेता है, तो उसकी ताकत बढ़ेगी और भाजपा के मनोबल को गहरा धक्का लगेगा, इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन एक बात तय है कि इस उप चुनाव का परिणाम झारखंड की राजनीति में नये समीकरणों की संभावना जरूर पैदा करेगा। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा, लेकिन दोनों ही पक्षों को इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए।
दुमका में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के प्रचार अभियान में उतरने से झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन को निश्चित रूप से लाभ हुआ है। दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी प्रो लुइस मरांडी पार्टी में बड़े आदिवासी चेहरे का घोर अभाव महसूस कर रही हैं। भाजपा में बाबूलाल मरांडी के अलावा कोई ऐसा नेता नहीं है, जो स्थानीय लोगों को अपने साथ जोड़ सके।
पार्टी के सांसद सुनील सोरेन अज्ञात कारणों से प्रचार अभियान से अलग हैं। इलाके के दूसरे सांसद डॉ निशिकांत दुबे दुमका में बहुत अधिक प्रभावी नहीं हो सकते। नेता की कमी की बड़ी कीमत भाजपा को दुमका में चुकानी पड़ रही है।
बेरमो में भी लगभग यही स्थिति है। कोयला क्षेत्र की सीट होने के कारण यहां श्रमिक आंदोलन से जुड़े नेताओं का अधिक प्रभाव रहा है। कांग्रेस के पास ऐसे कई नेता हैं, जो श्रमिक आंदोलनों से निकल कर आये हैं। इसके साथ झामुमो के स्थानीय कार्यकर्ता भी कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में पूरी ताकत झोंके हुए हैं। दूसरी तरफ भाजपा के पास ऐसा कोई बड़ा नेता अब तक बेरमो के मैदान में नहीं उतरा है। आजसू के कार्यकर्ता भाजपा के पक्ष में खूब पसीना बहा रहे हैं, लेकिन उनकी पहुंच सीमित इलाकों में होने के कारण वे चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकेंगे, इसमें थोड़ा संदेह जरूर है।
दुमका और बेरमो के परिणाम 10 नवंबर को आयेंगे और उसी दिन तय होगा कि झारखंड की राजनीति पर इसका कितना असर होगा, लेकिन अभी इतना तो कहा ही जा सकता है कि इन दोनों सीटों से चुने जानेवाले विधायक राज्य की राजनीति को नयी दिशा देंगे। इसलिए इन दोनों सीटों पर होनेवाले चुनाव की ओर पूरे राज्य की ही नहीं, बल्कि पूरे सियासी हलके की नजरें टिकी हुई हैं।