झारखंड की उप राजधानी दुमका और कोयला क्षेत्र की प्रमुख सीट बेरमो में हो रहे उप चुनाव में अब चार दिन बाकी रह गये हैं। इसलिए इन दोनों क्षेत्रों में चुनाव प्रचार अभियान चरम पर पहुंच गया है। इन दोनों सीटों पर प्रचार का शोर एक नवंबर की शाम को थमेगा, लेकिन अभी चल रहे प्रचार ने साबित कर दिया है कि झारखंड की राजनीति के लिए इन दोनों सीटों की क्या अहमियत है। सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से दुमका में झामुमो के बसंत सोरेन और बेरमो में कांग्रेस के कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह के समर्थन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत इन दोनों पार्टियों के राज्य स्तरीय दिग्गज पसीना बहा रहे हैं, वहीं भाजपा की ओर से दुमका में लुइस मरांडी और बेरमो में योगेश्वर महतो बाटुल की जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी जा रही है। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में पहली बार सत्ता पक्ष और विपक्ष चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं। हालांकि 19 जून को हुए राज्यसभा चुनाव में इनका आमना-सामना हो चुका है, लेकिन राज्यसभा के चुनाव और इस चुनाव में बहुत अंतर है।  इस चुनाव में जहां राज्य सरकार के 10 महीने का कामकाज का टेस्ट होगा, वहीं भाजपा के रणनीतिक कौशल का इम्तिहान भी लिया जायेगा। इन दोनों सीटों के चुनाव परिणाम झारखंड की राजनीति की दिशा तय करेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। दुमका और बेरमो उप चुनाव पर आजाद सिपाही ब्यूरो का विश्लेषण।

खनिज संपदा से भरपूर झारखंड का हर चुनाव बेहद रोमांचक और कांटे की टक्कर वाला होता है। अपने दो दशक के इतिहास में झारखंड ने जितने भी चुनाव देखे हैं, वे सभी रोमांचक रहे। मुकाबला कभी भी एकतरफा नहीं रहा। राज्य में पहली बार 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी एक गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ। फिर 2019 में भी जनता से स्पष्ट जनादेश सुनाया। जहां तक उप चुनावों का सवाल है,  तो ये और भी रोमांचक हुए हैं। इस बार तीन नवंबर को दुमका और बेरमो में जो उप चुनाव हो रहा है, वह तो बेहद रोमांचक दौर में पहुंच गया है। इस कांटे के मुकाबले में कौन बाजी मारेगा, इस बारे में अभी कुछ कहना पूरी तरह असंभव है।

इन दोनों सीटों के लिए चल रहे प्रचार अभिययान को देख कर यही लगता है कि झारखंड की राजनीति में दुमका और बेरमो की जीत कई अध्याय लिख देगी। झारखंड की राजनीति के तमाम नामचीन चेहरे इन दोनों सीटों पर लगातार पसीना बहा रहे हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से प्रचार की कमान जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संभाल रखी है, वहीं भाजपा की कमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास के हाथों में है। यह उप चुनाव इसलिए भी खास है, क्योंकि पहली बार भाजपा विपक्ष में रहते हुए चुनाव मैदान में उतरी है। इस लिहाज से देखा जाये, तो भाजपा के सामने अपनी स्वीकार्यता को स्थापित करने की बड़ी चुनौती है।

दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में हासिल जीत के बाद हेमंत सोरेन के लिए यह चुनाव बड़ी चुनौती है। पिछली बार वह खुद दुमका से जीते थे और इस बार उनके छोटे भाई बसंत सोरेन मैदान में हैं। हेमंत ने पूरे प्रचार की कमान संभाल रखी है और पिछले चार दिन से दुमका-बेरमो में लगातार पसीना बहा रहे हैं। अपने भाषणों में वह जहां अपने सरकार के कामकाज का ब्योरा दे रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार और झारखंड की पूर्ववर्ती सरकार पर जम कर निशाना भी साध रहे हैं। उनके साथ झामुमो और कांग्रेस के नेता भी कंधे से कंधा मिला कर प्रचार कर रहे हैं। हेमंत सोरेन ने के लिए उप चुनाव जीतना कितना जरूरी है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन भी दुमका में कैंप कर रहे हैं। यह उप चुनाव हेमंत सोरेन के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव की परीक्षा तो लेगा ही, साथ ही हेमंत सरकार के अब तक के कामकाज पर जनता की राय भी व्यक्त करेगा।

दूसरी तरफ भाजपा की ओर से बेहद आक्रामक तरीके से प्रचार अभियान चलाया जा रहा है। सोशल मीडिया से लेकर निजी जनसंपर्क तक के दौरान जहां राज्य सरकार के खिलाफ चुन-चुन कर हमले किये जा रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार द्वारा कोरोना काल में लागू नीतियों का बखान भी किया जा रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और करीब 15 साल बाद पार्टी में लौटे बाबूलाल मरांडी के लिए दुमका और बेरमो सीट संजीवनी साबित होनेवाला है।

इन दोनों सीटों पर अब तक हुए चुनाव प्रचार अभियान से एक बात साफ हो गयी है कि इस उप चुनाव में कोई मुद्दा नहीं रह गया है। शुरुआत में भाजपा की ओर से एजेंडा तय करने की कोशिश जरूर की गयी, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के सधे और नपे-तुले जवाब ने इसे विफल कर दिया। झामुमो और कांग्रेस की ओर से भाजपा पर जो प्रहार किये जा रहे हैं, उनका असर वोट में बदलेगा या नहीं, अभी कहना मुश्किल है।  एक और बात जो इस प्रचार अभियान में निकल कर सामने आयी है, वह यह है कि जुबानी जंग में भाषायी मर्यादा पर ध्यान नहीं दिया गया, जो माहौल को कड़वा बनाता रहा है। जहां तक राष्ट्रीय नेताओं के प्रचार का सवाल है, तो उप चुनाव के लिए कोई राष्ट्रीय नेता प्रचार करने नहीं आया। इस लिहाज से दुमका और बेरमो प्रदेश स्तरीय नेताओं की नेतृत्व क्षमता की भी परीक्षा लेगा।

कुल मिला कर दुमका और बेरमो का रण झारखंड के राजनीतिक रणबांकुरों की जम कर परीक्षा ले रहा है। इस मुकाबले का परिणाम 10 नवंबर को सामने आयेगा, लेकिन एक बात साफ है कि इन दोनों सीटों का चुनाव परिणाम झारखंड की राजनीति की दिशा-दशा तय करनेवाला है। सरकार की सेहत या संख्या बल के लिहाज से भले ही इस परिणाम का कोई असर नहीं पड़े, लेकिन इसका दूरगामी राजनीतिक परिणाम तो निकलेगा ही।  फिलहाल तो तीन नवंबर का इंतजार है, जब दुमका और बेरमो के मतदाता अपना विधायक चुनने के लिए कोरोना काल में मतदान करेंगे।

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