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    Home»Jharkhand Top News»छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है मेडिकल कॉलेजों का विवाद
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    छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है मेडिकल कॉलेजों का विवाद

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskOctober 24, 2020No Comments5 Mins Read
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    झारखंड के तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन पर नेशनल मेडिकल काउंसिल ने एक सत्र के लिए रोक लगा दी है। एनएमसी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में आश्वासन दिये जाने के बावजूद राज्य सरकार ने पलामू, हजारीबाग और दुमका मेडिकल कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था नहीं की और न ही फैकल्टी की कमी को दूर करने के लिए कदम उठाया। एनएमसी की दलील कहीं से भी गलत नहीं है, लेकिन उसे इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि इस साल के सात महीने तो कोरोना महामारी के कारण लगाये गये लॉकडाउन ने लील लिये हैं। इस अवधि के लिए जीवन के हर क्षेत्र में रियायत दी गयी है, तो फिर इन तीन मेडिकल कॉलेजों को इतनी रियायत क्यों नहीं दी जा सकती। झारखंड ही नहीं, पूरे देश में कोरोना काल के दौरान सामान्य गतिविधियों की क्या स्थिति थी, यह किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में लकीर का फकीर बन कर नियमों को कठोरता से लागू कराने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। झारखंड तो वैसे भी पिछड़ा और गरीब राज्य है, जिसे अतिरिक्त मदद की जरूरत है। इस तरह के विवाद इसलिए भी गैर-जरूरी लगते हैं, क्योंकि झारखंड पहले से ही मेडिकल शिक्षा के मोर्चे पर दूसरे राज्यों से काफी पीछे है। इसलिए झारखंड को थोड़ी रियायत और मोहलत की जरूरत है। मेडिकल कॉलेजों के मुद्दे पर छिड़े विवाद पर आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

    जर्मनी के चर्चित समाज वैज्ञानिक एलियस हंटनबर्ग ने अपने एक लेख में कहा है कि यदि किसी संस्था या समाज को आगे बढ़ने से रोकना हो, तो उसे विवादों में लपेट दो। यदि विवादों का कवर कमजोर पड़ने लगे, तो उसे अपने विश्वास और तर्कों की कसौटी पर चढ़ा दो। दुनिया का कोई भी समाज इन दोनों बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने की हिमाकत नहीं कर सकता है। हंटनबर्ग का यह कथन झारखंड के संदर्भ में आज एकदम सटीक साबित हो रहा है। राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों के मुद्दे पर पैदा हुआ नया विवाद इसका जीता-जागता उदाहरण बनता जा रहा है।
    देश में मेडिकल की पढ़ाई को नियंत्रित करनेवाली संस्था नेशनल मेडिकल काउंसिल ने झारखंड के हजारीबाग, पलामू और दुमका के मेडिकल कॉलेजों में इस सत्र में नामांकन लिये जाने पर रोक लगा दी है। काउंसिल का कहना है कि इन मेडिकल कॉलेजों में न्यूनतम इंफ्रास्ट्रक्चर और फैकल्टी की कमी है। इस मुद्दे को लेकर पैदा हुआ विवाद इतना गहरा गया है कि इसमें खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कूदना पड़ा। उन्होंने इसे झारखंड को परेशान करने और यहां के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ की साजिश बताया है।
    यह सच है कि इन मेडिकल कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर की घोर कमी है। तीनों मेडिकल कॉलेजों के अपने भवन भी पूरे नहीं हुए हैं। आवश्यक उपकरण भी नहीं जुटाये जा सके हैं। फैकल्टी की कमी भी है। पिछले साल जब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला गया था और झारखंड सरकार ने एक साल के भीतर इन कमियों को पूरा करने का भरोसा दिया था, तब काउंसिल ने नामांकन की सशर्त अनुमति दी थी। अब काउंसिल का कहना है कि निर्धारित अवधि में झारखंड सरकार ने अपने आश्वासन को पूरा नहीं किया है। इसलिए नये सत्र में नामांकन पर रोक लगायी गयी है। काउंसिल की दलील कहीं से गलत नहीं है, लेकिन उसे किसी फैसले पर पहुंचने से पहले कोरोना महामारी और लॉकडाउन को भी ध्यान में रखना चाहिए। इस साल के सात महीने तो कोरोना और लॉकडाउन की वजह से पूरी तरह बर्बाद हो गये। इस दौरान पूरे देश में शायद ही कोई बड़ा काम हुआ। ऐसा नहीं है कि झारखंड सरकार ने इन तीन मेडिकल कॉलेजों के बारे में सुप्रीम कोर्ट में दिये आश्वासन पर कदम नहीं बढ़ाया, लेकिन यह कदम कोरोना और लॉकडाउन के कारण थम गये। इसलिए इसमें देरी हुई। काउंसिल को इस आपात परिस्थिति को ध्यान में रखना चाहिए था। जब मेडिकल कॉलेजों में नामांकन के लिए आयोजित की जानेवाली प्रतियोगिता परीक्षा देर से आयोजित की जा सकती है, तो फिर कॉलेजों को नामांकन के लिए तैयार करने में भी तो देरी सहज स्वाभाविक है।
    यह मुद्दा अब केंद्र के साथ झारखंड सरकार के टकराव का एक विषय बन गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर जो सवाल उठाया है, वह कहीं से गलत नहीं लगता। उन्होंने कहा है कि झारखंड सरकार इन तीन मेडिकल कॉलेजों का 95 फीसदी काम पूरा करा चुकी है, तब इसमें नामांकन पर रोक लगा दी गयी, जबकि देवघर एम्स की अभी केवल बुनियाद ही पड़ी है और काउंसिल ने इसे मान्यता प्रदान कर दी है। हेमंत की यह आपत्ति वाजिब ही नहीं, झारखंड के प्रति केंद्र के रवैये को भी साबित करता है।
    झारखंड वैसे भी मेडिकल की पढ़ाई के क्षेत्र में काफी पिछड़ा है। राज्य में केवल तीन मेडिकल कॉलेज हैं, जहां एमबीबीएस की कुल तीन सौ सीटें हैं। झारखंड से प्रतिभा पलायन का यह एक बड़ा कारण है। इसी तरह झारखंड में केवल एक सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज है।
    एक आइआइटी और एक एनआइटी को जोड़ दिया जाये, तो यह संख्या तीन होती है। सवा तीन करोड़ की आवादी वाले दूसरे राज्यों से इसकी तुलना करें, तो झारखंड तकनीकी शिक्षा के मामले में अतिरिक्त प्रोत्साहन और रियायत का हकदार बन जाता है। यह भी सच बात है कि यदि देश को आगे ले जाना है, तो इसके सभी प्रदेशों को समान रूप से आगे बढ़ना होगा। राजनीतिक वैमन्यसता या संस्थागत अहं के लिए ऐसा कोई कदम उठाना अक्सर महंगा पड़ता है। यह बात नेशनल मेडिकल काउंसिल को ध्यान में रखना चाहिए।
    बहरहाल, झारखंड सरकार ने इन तीन मेडिकल कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी जरूरतों को एक महीने में पूरा करने का फैसला किया है। साथ ही फैकल्टी की नियुक्ति भी तेजी से करने की बात कही है। तो अब इस परिस्थिति में काउंसिल को झारखंड सरकार को इतनी मोहलत देने पर विचार करना ही चाहिए, ताकि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े झारखंड के बच्चों को दूसरे राज्यों में जाने की जहमत नहीं उठानी पड़े।
    यह मोहलत देने से किसी का अहित नहीं होगा, बल्कि काउंसिल के लिए एक उपलब्धि ही कही जायेगी।

    Medical colleges dispute with the future of students
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