साम्य ढूंढे जाने से मिलते हैं और यदि बेरमो तथा दुमका सीट में महागठबंधन और भाजपा के उम्मीदवारों में साम्य ढूंढे जायें, तो कई समानताएं निकलकर सामने आने लगती हैं। दुमका में झामुमो उम्मीदवार बसंत सोरेन और अनुप सिंह में साम्य ये है कि ये दोनों युवा हैं और पहली बार जनता की अदालत में हैं। वहीं भाजपा उम्मीदवार लुइस मरांडी तथा योगेश्वर महतो बाटुल में साम्य यह है कि ये दोनों अपनी सीटों पर एक या अधिक बार जीत का स्वाद चख चुके हैं। दुमका में लुइस एक बार जीत हासिल कर चुकी हैं और बेरमो में बाटुल 2005 और 2014 में जीत दर्ज कर चुके हैं। इन दोनों में एक साम्य ये भी है कि बीते विधानसभा चुनाव में दोनों को हार का सामना करना पड़ा था। एक और साम्य इन दोनों सीटों पर ये है कि बीते चुनाव में भी मुख्य मुकाबला इन सीटों पर झामुमो बनाम भाजपा और कांग्रेस बनाम भाजपा का था और इस बार भी यही स्थिति है। इन दोनों सीटों पर मतदान तीन नवंबर को होगा और नतीजे दस नवंबर को आयेंगे। दुमका और बेरमो सीट पर नाम वापसी की तिथि समाप्त हो जाने के बाद अब कुल 28 उम्मीदवार चुनाव के मैदान में हैं। इसमें दुमका सीट पर 12 और बेरमो सीट पर 16 उम्मीदवार मैदान में हैं। चुनाव में किसके सिर पर ताज सजेगा और किसके हाथ हार लगेगी, यह तो चुनाव के नतीजे बतायेंगे पर इतना तो साफ नजर आ रहा है कि यह चुनाव युवा बनाम अनुभवी प्रत्याशियों के बीच है। दुमका और बेरमो उपचुनाव में बनते-बिगड़ते समीकरणों पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।

झारखंड की दो सीटों दुमका और बेरमो में बसंत और अनुप विरासत बचाने की जंग लड़ रहे हैं। बसंत के जिम्मे जहां दुमका में अपने बड़े भाई और राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन द्वारा खाली की गयी सीट पर जीत हासिल करने की जिम्मेवारी है, वहीं अनुप को अपने पिता के निधन से खाली हुई सीट पर फिर से जीत हासिल करने की चुनौती है। इन दोनों उम्मीदवारों की खासियत ये है कि ये दोनों ही पहली बार जनता की अदालत में हैं, वहीं इनके मुकाबले में खड़े भाजपा उम्मीदवार डॉ लुइस मरांडी और योगेश्वर महतो बाटुल अनुभवी हैं। बीते विधानसभा चुनाव में डॉ लुइस मरांडी हेमंत सोरेन से हारी थीं, तो योगेश्वर महतो बाटुल राजेंद्र सिंह से हारे थे। बीते चुनाव में हार मिलने के बावजूद भाजपा नेतृत्व ने इन्हीं पर फिर से भरोसा जताया है। बेरमो सीट पर बाटुल पांचवीं बार चुनावी मैदान में हैं। इन दोनों नेताओं पर भाजपा ने फिर से भरोसा इसलिए जताया है, क्योंकि बीते चुनाव में ये दोनों नेता भले ही हार गये होें, पर इन्होंने सम्मानजनक मत हासिल किये थे। भाजपा ने अपनी समीक्षा में पाया था कि बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार की बड़ी वजह आजसू और भाजपा का गठबंधन टूटना था। अब भाजपा इस कमी को पाट चुकी है। ऐसे में ये नेता इन दोनों सीटों पर पार्टी के खेवनहार बन सकते हैं। भाजपा को यह भी उम्मीद है कि यदि बेरमो सीट पर आजसू अपने वोट भाजपा में शिफ्ट कराने में सफल रही, तो उसके लिए जीत की राह आसान हो जायेगी। बीते चुनाव में आजसू उम्मीदवार काशीनाथ सिंह को 16 हजार 546 मत मिले थे। वहीं दुमका सीट पर पार्टी को बाबूलाल समेत अन्य भाजपा नेताओं के करिश्मे का भी भरोसा है।
भाजपा हार को जीत में बदलना चाहती है
दुमका और बेरमो सीट में हो रहे उपचुनाव में जहां भाजपा बीते विधानसभा चुनाव में मिली हार को जीत में बदलना चाहती है और उसके लिए पूरी ताकत झोंक रही है, वहीं महागठबंधन अपनी जीत के सिलसिले को जारी रखने के लिए चुनाव के मैदान में है। दुमका में 1980 के बाद से सिर्फ दो बार ही झामुमो चुनाव में हारा है। दुमका सीट की खासियत ये है कि यह झामुमो की परंपरागत सीट रही है। 2005 और 2014 के चुनाव के परिणामों को छोड़ दें, तो 1980 से इस सीट पर झामुमो का कब्जा रहा है। 2005 में स्टीफन मरांडी ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए झामुमो प्रत्याशी को पराजित किया था, वहीं 2014 में लुइस मरांडी ने यह सीट जीती थी। पर 2019 में हेमंत ने यह सीट फिर से भाजपा से छीन ली थी। बीते चुनाव में भी यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो में था और इस बार भी उपचुनाव में यही सीन बनता दिख रहा है। वहीं बेरमो में दिवंगत राजेंद्र सिंह ने छह दफा चुनाव जीता था। इसलिए दुमका जहां सोरेन परिवार का गढ़ है, तो बेरमो कांग्रेस का। यही कारण है कि दुमका में जहां झामुमो ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है, वहीं बेरमो में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता भी पूरी निष्ठा से जनता के बीच घूम रहे हैं।
झामुमो को माटी की पार्टी होने का भरोसा
दुमका उपचुनाव में मुद्दों की बात करें, तो भाजपा झामुमो में वंशवाद के मुद्दे को उठा रही है। वहीं झामुमो को माटी की पार्टी होने का भरोसा है। बीते दिनों दुमका के मसलिया में झामुमो प्रत्याशी बसंत सोरेन ने कहा कि झामुमो माटी की पार्टी है और मिट्टी को नहीं भूलना है। बहुत लोग आयेंगे और वादे करेंगे, पर मिट्टी को नहीं भूलना है। वहीं भाजपा प्रत्याशी लुइस मरांडी के पक्ष में मसलिया में आयोजित चुनावी सभा में बाबूलाल ने कहा कि झामुमो परिवार की पार्टी है और सोरेन परिवार संथाल परगना को अपनी जागीर समझ बैठा है। चुनाव प्रचार में जहां झामुमो नेता भाजपा प्रत्याशी की संपत्ति में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी को मुद्दा बना रहे हैं, वहीं भाजपा सोरेन परिवार को बोकारो का निवासी बता रही है। जाहिर है कि दोनों दलों के नेता चुनाव में हर दांव आजमा रहे हैं। वहीं बेरमो की बात करें, तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ने यहां अपनी ताकत झोंक रखी है। कांग्रेस को क्षेत्र में सहानुभूति वोटों की उम्मीद है। इसके अलावा दिवंगत राजेंद्र सिंह के काम पर भी पार्टी वोट मांग रही है। वहीं भाजपा की बात करें, तो भाजपा यहां केंद्र सरकार की उपलब्धियों और पूर्व की रघुवर सरकार के कार्यों को गिना रही है।
दुमका में ग्रामीण आबादी अधिक तो बेरमो में शहरी
बेरमो विधानसभा सीट की बात करें, तो यह झारखंड के मध्य क्षेत्र का हिस्सा है। इसकी 36 फीसदी आबादी ग्रामीण तो 64 फीसदी शहरी है। बेरमो सीट पर बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह 88 हजार 945 मत लाकर जीते थे। भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल 63 हजार 773 मत ही ला सके थे। वहीं, दुमका की बात करें तो यह झारखंड के संथाल क्षेत्र का हिस्सा है। इसकी 78 फीसदी आबादी ग्रामीण है और 22 फीसदी आबादी शहरी है। बीते विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन यहां 80 हजार सात मत हासिल कर जीते थे। यहां के अलावा बरहेट सीट पर भी उन्होंने जीत हासिल की थी। वहीं भाजपा की डॉ लुइस मरांडी 67819 मत ही ला सकी थीं।

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