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    Home»Jharkhand Top News»दुमका के रण में होगा बसंत के कौशल का असली टेस्ट
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    दुमका के रण में होगा बसंत के कौशल का असली टेस्ट

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskOctober 14, 2020No Comments5 Mins Read
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    झारखंड की उप राजधानी दुमका विधानसभा सीट पर तीन नवंबर को होनेवाले उप चुनाव के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में बसंत सोरेन ने नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। इसके साथ ही वह अपने पिता शिबू सोरेन और बड़े भाई हेमंत सोरेन की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए जनता की अदालत में उतर चुके हैं। बसंत सोरेन के लिए प्रत्यक्ष चुनाव का यह पहला अनुभव है, हालांकि इससे पहले वह राज्यसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। दुमका को झामुमो का मजबूत गढ़ माना जाता है। शिबू सोरेन ने इस इलाके को अपने खून-पसीने से सींचा है और उनके बाद हेमंत सोरेन ने यहां के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया। पिता और भाई के राजनीतिक सहचर के रूप में काम कर चुके बसंत सोरेन के लिए दुमका कोई नया इलाका नहीं है, लेकिन वहां की असली राजनीतिक तपिश को महसूस करने का यह उनका पहला अवसर है। पिछले तीन महीने से बसंत सोरेन ने जिस तरह दुमका के गांवों-गलियों की खाक छानी है, उससे पता चलता है कि शिबू-हेमंत सोरेन की कार्यशैली को वह पूरी तरह अंगीकार कर चुके हैं। इतने दिनों में बसंत सोरेन को पता चल गया होगा कि जन प्रतिनिधि के रूप में जनता की आकांक्षाओं का बोझ ढोकर चलना उतना आसान भी नहीं है। बसंत को यही साबित करना है कि वह केवल शिबू सोरेन के पुत्र ही नहीं, बल्कि दुमका की माटी के लाल हैं। दुमका के रण में बसंत सोरेन के उतरने के संभावित असर का आकलन करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    पिछले साल दिसंबर में विधानसभा चुनाव का परिणाम घोषित होने के बाद जब यह तय हो गया कि दो सीटों से जीते हेमंत सोरेन एक सीट खाली करेंगे, तब किसी ने उनके छोटे भाई बसंत सोरेन से पूछा था कि क्या वह खाली होनेवाली सीट से चुनाव लड़ेंगे। उस समय बसंत सोरेन ने हंस कर इस सवाल को टाल दिया था, लेकिन इतना जरूर कहा था कि पार्टी उन्हें जो जिम्मेदारी देगी, उसे वह हर कीमत पर पूरा करेंगे। करीब 10 महीने बाद बसंत सोरेन दुमका से झामुमो प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं, क्योंकि हेमंत सोरेन ने यह सीट छोड़ दी है और यहां उप चुनाव हो रहा है। बसंत सोरेन झारखंड के उस राजनीतिक परिवार के सदस्य हैं, जिसके मुखिया शिबू सोरेन आज भी पूरे राज्य में दिशोम गुरु के नाम से जाने जाते हैं। इसी परिवार के हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
    बसंत सोरेन को नजदीक से जाननेवाले लोग बताते हैं कि वह बेहद बेबाक इंसान हैं। अपनी बात वह तार्किक तरीके से रखते हैं और गलतियों से सीखने की कोशिश करते हैं। झारखंड छात्र मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में उनकी कार्यशैली इसलिए कभी किसी विवाद में नहीं रही। बसंत सोरेन ने राजनीति का ककहरा अपने पिता से सीखा। उन्हें यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होता कि उनकी पहचान उनके पिता और भाई से भी होती है। बसंत कहते हैं, आज जो भी हूं, बाबा और भैया की बदौलत हूं। इनसे अलग मेरा कोई अस्तित्व कैसे हो सकता है।
    अपने सबसे बड़े भाई दुर्गा सोरेन के असामयिक निधन और हेमंत सोरेन के राजनीतिक उत्थान से पहले तक बसंत सोरेन की पहचान अपने पिता और भाई के सहयोगी के रूप में ही रही। लेकिन बाद में वह भी सक्रिय राजनीति में कूद पड़े। वह सोरेन परिवार के छठे सदस्य हैं, जो चुनाव मैदान में उतरे हैं। पिता शिबू सोरेन, मां रूपी सोरेन, दो भाइयों और भाभी सीता सोरेन पहले भी जनता की अदालत में उतर चुके हैं। जहां तक दुमका का सवाल है, तो बसंत सोरेन के लिए यह क्षेत्र अनजाना नहीं है। पहले पिता और फिर भाई के राजनीतिक सहयोगी के रूप में उन्होंने इस इलाके को काफी नजदीक से जाना है। वैसे भी दुमका को झामुमो का गढ़ माना जाता है और यहां सोरेन परिवार की स्वीकार्यता जमीनी स्तर तक है। दुमका के गांवों में आज भी शिबू सोरेन को लोग अपने जीवन का हिस्सा मानते हैं। दुमका का हर परिवार शिबू सोरेन को अपना मुखिया मानता है। यही कारण है कि हेमंत जब सीएम बने थे, तब केवल आशीर्वाद देने के लिए दुमका के कई बुजुर्ग रांची तक पहुंचे थे। महिलाएं अपनी मुट्ठी में पांच-दस रुपये लेकर आयी थीं, जो वे अपने बेटे को बतौर उपहार देना चाहती थीं। यह महज राजनीतिक समर्थन नहीं था, बल्कि सोरेन परिवार के साथ दुमका के लोगों के भावनात्मक लगाव का परिचायक था।
    बसंत सोरेन को इसी विरासत-परंपरा को सहेजने और आगे ले जाना है। पिछले तीन महीने से दुमका के गांवों-गलियों की खाक छान रहे बसंत सोरेन ने अभी से ही जता दिया है कि वह इस चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने अपने अंदाज से यह भी साबित किया है कि वह अपने पिता या भाई से अलग नहीं हैं, बल्कि दुमका की मिट्टी का कर्ज चुकाने के लिए वह कभी पीछे नहीं हटेंगे।
    इस सबके बावजूद बसंत सोरेन के सामने बड़ी चुनौती उस जन आकांक्षा का बोझ ढोने की होगी, जिसे दुमका के लोग अब तक शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन से जोड़ कर देख रहे थे। इस बोझ को ढोना एक जन प्रतिनिधि के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि उसे समाज के सभी वर्गों का समान रूप से ध्यान रखना होता है। नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद बसंत सोरेन ने दुमका के विकास को अपनी प्राथमिकता बताते हुए साफ कर दिया है कि वह इस अग्नि परीक्षा का सामना करने के लिए तैयार हैं। बहरहाल, जनता की अदालत में उतरने का उनका पहला अनुभव उन्हें कितना संवेदनशील और जनोन्मुख बनाता है, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि वह इस चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर देंगे। उनके पास अपने पिता और भाई की विरासत की पूंजी है और दुमका की जनता के साथ पांच दशक का भावनात्मक रिश्ते का अतिरिक्त बल है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बसंत सोरेन इस परीक्षा में कितने सफल होते हैं।

    Spring will be the real test of skill in Dumka's battle
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