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    Home»Breaking News»‘रोजगार मेला’ साबित होगा मोदी सरकार का बड़ा ट्रंप कार्ड
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    ‘रोजगार मेला’ साबित होगा मोदी सरकार का बड़ा ट्रंप कार्ड

    azad sipahiBy azad sipahiOctober 23, 2022No Comments8 Mins Read
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    • नियुक्ति पत्र बांट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों में उम्मीद जगायी, बेरोजगारी के प्रति वह गंभीर हैं

    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 2014 के बाद यदि किसी मुद्दे ने राजनीतिक रंगत पकड़ी है, तो वह है बेरोजगारी का मुद्दा। सत्ता में आने से पहले भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर जो वादे किये थे, उन पर काम तो हो रहा था, लेकिन जमीन पर दिख नहीं रहा था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनतेरस के दिन ‘रोजगार मेला’ का आयोजन कर साफ कर दिया है कि उनकी नजर इस गंभीर मुद्दे पर है। देश भर में 75 हजार बेरोजगारों को नियुक्ति पत्र सौंप कर मोदी सरकार ने जो शुरूआत की है, उसका राजनीतिक संदेश बहुत दूर तक जायेगा। मोदी सरकार ने 2023 के अंत तक 10 लाख बेरोजगारों को नौकरी देने की घोषणा की है, जिसका सीधा असर छह राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनाव और फिर 2024 के आम चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है। पीएम मोदी ने रोजगार मेला के माध्यम से इस बड़े मुद्दे को हल करने की दिशा में जो कदम उठाया है, उससे विपक्ष का एक मजबूत हथियार नाकाम हो गया है। पिछले कुछ दिनों से, खास कर वैश्विक महामारी से उबरने के बाद से बेरोजगारी के जिस मुद्दे को लेकर विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर था, वह मुद्दा एक झटके में खत्म होता दिख रहा है। इसलिए इस रोजगार मेले को मोदी सरकार का ट्रंप कार्ड भी माना जा सकता है, जिसका असर कुछ दिन के बाद जमीन पर नजर आयेगा। फिलहाल तो नजर उन 75 हजार युवाओं पर ही है, जिन्हें नियुक्ति पत्र मिला है। मोदी सरकार के इस बड़े कदम का परत-दर-परत विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह।

    मोदी सरकार साल 2023 के अंत तक 10 लाख युवाओं को नौकरी देने की बात कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अक्टूबर यानी धनतेरस के दिन ‘रोजगार मेला’ नाम से इसकी शुरूआत की। पहले चरण के तहत उन्होंने 75 हजार युवाओं को सरकारी नौकरी के नियुक्ति पत्र सौंपे। ये भर्तियां यूपीएससी, एसएससी और रेलवे सहित केंद्र सरकार के 38 मंत्रालयों या विभागों में होंगी, यानी इस मेगा प्लान में रेलवे, डिफेंस, बैंकिंग, डाक और इनकम टैक्स जैसे विभाग शामिल हैं। इस योजना का एलान इसी साल जून में प्रधानमंत्री कार्यालय ने किया था। इसमें बताया गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी विभागों और मंत्रालयों में मानव संसाधन की समीक्षा की और इस मिशन के तहत अगले साल के अंत तक 10 लाख लोगों को भर्ती करने का आदेश दिया है। 22 अक्टूबर को जिन विभागों में नौकरियों के लिए चिट्ठी दी गयी, उनमें रेलवे भी शामिल है। रेलवे भारत में सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी देने वाले विभागों में से एक है। रोजगार मेला के दौरान करीब आठ हजार युवाओं को रेलवे में नौकरी का आॅफर लेटर दिया गया। इसमें अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने वाले भी शामिल हैं। इससे पहले रोजगार के मुद्दे पर विपक्ष ने लगातार केंद्र सरकार पर हमला किया है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और राजद नेता तेजस्वी यादव तक मोदी सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर घेरते रहे हैं। यानी मौजूदा समय में बेरोजगारी की समस्या विपक्ष के लिए केंद्र सरकार को घेरने का एक बड़ा मुद्दा रहा है। यह मुद्दा उत्तर से लेकर दक्षिण भारत और पूर्व से लेकर पश्चिम भारत तक विपक्ष को सरकार पर हमले का हथियार देता रहा है।

    सरकारी नौकरी की चाह रखनेवालों में बड़ी तादाद बिहार के युवाओं की होती है। बीते कुछ साल में भारत में सरकारी नौकरी बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव ने तो 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान बिहार में सरकार बनने पर 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा तक किया था। बीते अगस्त महीने में जदयू और राजद गठबंधन की सरकार बनने के बाद तेजस्वी यादव ने कम-से-कम चार-पांच लाख लोगों को नौकरी देने की बात कही थी। रोजगार मेला से एक दिन पहले बिहार में 9469 बेरोजगारों को स्वास्थ्य विभाग में नौकरी दी गयी, जिसका खूब प्रचार किया गया। तेजस्वी ने इस पर कहा कि बिहार ने जो राह दिखायी है, अब पूरे देश को इसी रास्ते पर आना ही होगा।

    बेरोजगारी का रिकॉर्ड उच्च स्तर पर
    नौकरी को लेकर यूपी, बिहार, झारखंड समेत तमाम राज्यों के अपने वादे और दावे रहे हैं। वहीं विपक्षी दलों के शासन वाले हर राज्य सरकार ने बढ़ती बेरोजगारी को लेकर मोदी सरकार पर लगातार आरोप लगाया है। दरअसल साल 2019 में ही भारत में 45 साल की सबसे बड़ी बेरोजगारी के आंकड़े सामने आये थे। उस साल आम चुनावों से पहले इन आंकड़ों के लीक होने पर काफी विवाद हुआ था। बाद में सरकार ने इसके आंकड़े खुद जारी किये और माना कि भारत में बेरोजगारी दर पिछले चार दशक में सबसे ज्यादा हो गयी है। सरकार ने पहले लीक हुई रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज किया था कि बेरोजगारी के आंकड़ों को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है। लेकिन विपक्ष इस खबर के सामने आने के बाद से ही रोजगार के मुद्दे पर केंद्र सरकार की नीतियों पर लगातार सवाल उठाता रहा है।

    सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइइ) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 20 अक्टूबर, 2022 को बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी है। इसमें शहरी बेरोजगारी दर 7.5 फीसदी है, जबकि गांवों के लिए यह आंकड़ा 7.9 फीसदी है। इस साल केंद्र सरकार ने संसद में बताया है कि अप्रैल 2014 से मार्च 2022 के बीच आठ साल में केंद्र सरकार के विभागों में स्थायी नौकरी पाने के लिए करीब 22 करोड़ लोगों ने आवेदन किया था। इस दौरान केंद्र सरकार में महज 7.22 लाख लोगों को स्थायी नौकरी मिली। आसान शब्दों में कहें तो जितने लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया, उसमें से केवल 0.32 प्रतिशत लोगों को नौकरी मिली। इस मुद्दे पर भाजपा सांसद वरुण गांधी केंद्र सरकार पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने सरकार से सवाल किया था कि जब देश में लगभग एक करोड़ स्वीकृत पद खाली हैं, तब इस स्थिति के लिए कौन जिÞम्मेदार है? भारत में बेरोजगारी से बनी स्थिति का यह सिर्फ एक उदाहरण है।

    क्या माहौल बदल सकती है मोदी सरकार
    ऐसे में सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार की तरफ से अगले करीब डेढ़ साल में 10 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा विपक्ष से बेरोजगारी का मुद्दा भी छीन सकता है। सीएमआइइ के जानकार कहते हैं कि सरकार का वादा बहुत बड़ा है। केंद्र सरकार 10 लाख लोगों को नौकरी देने की जो पहल कर रही है वह बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण है। बढ़ती बेरोजगारी को लेकर युवाओं का आक्रोश भी कई बार सड़कों पर दिखा है। बिहार, यूपी, तेलंगाना, राजस्थान और हरियाणा जैसे कई राज्यों में नौकरी की मांग में प्रदर्शन हो चुके हैं। नौकरी की तलाश में युवाओं का आक्रोश सड़कों पर दिखा है। इसका राजनीतिक असर भी पड़ना स्वाभाविक है।

    वैसे यह बात सही है कि भारत में नौकरी की मांग को लेकर ज्यादा आंदोलन नहीं होते। बिहार या यूपी जैसे राज्यों में पिछले दिनों जो हंगामा हुआ, वह नियमों में बदलाव की वजह से था। चाहे रेलवे की एनटीपीसी परीक्षा के नियमों का मामला हो या अग्निवीर स्कीम का, इस दौरान जो हंगामा हुआ, वह नियमों में बदलाव को लेकर हुआ था। बच्चे कुछ समझ कर नौकरी की तैयारी करते हैं, फिर उन्हें पता चलता है कि उन्हें चार साल के लिए नौकरी मिलेगी और इसी बात को लेकर उन्होंने प्रदर्शन किया था। दरअसल देश के कई हिस्सों में केंद्र सरकार की ‘अग्निपथ योजना’ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे। बिहार और मध्यप्रदेश में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसक घटनाएं भी हुई थीं। भारत सरकार इस योजना के तहत अल्पावधि के लिए सेना में 17.5 साल से लेकर 21 साल की उम्र वाले युवाओं की भर्ती करेगी। युवाओं ने सेना में पुराने तरीके से भर्ती की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था। इस योजना को लेकर काफी सियासी गहमागहमी हुई थी। इससे पहले इसी साल की शुरूआत में रेलवे की नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी (एनटीपीसी) परीक्षा में भर्ती प्रक्रिया को लेकर भी काफी हंगामा हुआ था। बाद में रेलवे ने एक कमेटी बना

    कर छात्रों के सुझावों के आधार पर इसमें बदलाव किये थे।
    जाहिर है मोदी सरकार के लिए भी बेरोजगारी की समस्या बहुत बड़ा मुद्दा है। इसलिए केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट में अगले पांच साल में 60 लाख रोजगार पैदा करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में 10 लाख लोगों को नौकरी दे पाना बड़ी उपलब्धि होगी। हालांकि कितने लोगों को किस विभाग में और कैसी नौकरी दी जायेगी, इसका आंकड़ा जारी नहीं किया गया है, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि मोदी सरकार बेरोजगारी के मुद्दे पर अब विपक्षी हमलों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हो गयी है।

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