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    Home»राज्य»शारदीय नवरात्र के पहले दिन बाबा विश्वनाथ की नगरी मातृशक्ति आराधना में लीन
    राज्य

    शारदीय नवरात्र के पहले दिन बाबा विश्वनाथ की नगरी मातृशक्ति आराधना में लीन

    shivam kumarBy shivam kumarOctober 3, 2024No Comments3 Mins Read
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    -माता शैलपुत्री के दरबार में बारिश के बीच पहुंचे श्रद्धालु, भोर से ही दरबार में गूंज रहा सांचे दरबार का जयकारा

    वाराणसी। शारदीय नवरात्र के पहले दिन गुरुवार को काशीपुराधिपति की नगरी में लोग मातृशक्ति आराधना में लीन हैं। परम्परानुसार श्रद्धालुओं ने अलईपुर स्थित आदिशक्ति मां शैलपुत्री के दरबार में बारिश के बीच हाजिरी लगाई। माता रानी का दर्शन पूजन कर लोग आह्लादित दिखे। दरबार में लोग रात तीन बजे के बाद तेज बारिश के बीच भीगते हुए दर्शन पूजन के लिए पहुंचने लगे। बैरिकेडिंग में लगी कतार में खड़े श्रद्धालु माता रानी के प्रति श्रद्धा का भाव दिखाते रहे। कड़ी सुरक्षा के बीच बैरिकेडिग में कतारबद्ध श्रद्धालु अपनी बारी का इन्तजार मां का गगनभेदी जयकारा लगाकर करते रहे। महिलाएं दरबार में संतति वृद्धि, श्री समृद्धि, अखण्ड सौभाग्य की कामना माता रानी से करती रही। मंदिर में आईं महिला श्रद्धालुओं के चलते आसपास मेले जैसा दृश्य नजर आ रहा था। मंदिर के पास पूजा साम्रगी, नारियल, चुनरी, अड़हुल की अस्थायी दुकानों पर महिलाओं की भीड़ पूजन सामग्री खरीदने के लिए जुटी थी।

    गौरतलब हो कि शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री के दर्शन की मान्यता है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था। पर्वतराज हिमालय शक्ति-दृढ़ता-आधार व स्थिरता का प्रतीक हैं। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। माना जाता है कि मां दुर्गा ने देवासुर संग्राम में प्रथम दिन शैलपुत्री का रूप धारण कर असुरों का संहार किया था। भगवती का वाहन वृषभ, दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुईं थीं। तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार वह अपने पिता के यज्ञ में गईं तो वहां अपने पति भगवान शंकर के अपमान को सह न सकीं। उन्होंने वहीं अपने शरीर को योगाग्नि में भस्म कर दिया। अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से पूजनीय व वंदनीय हुईं। इस जन्म में ही मां शैलपुत्री महादेव की ही अर्धांगिनी बनीं। आदि शक्ति शैलपुत्री अनन्त शक्तियों की स्वामिनी हैं। योगी और श्रेष्ठ साधक नवरात्र के पहले दिन माता के इस स्वरूप की उपासना करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना प्रारम्भ होती है।

    घरों में या देवी सर्व भूतेषु ,ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी की गूंज

    शारदीय नवरात्र के पहले दिन नौ दिन तक आदि शक्ति के भक्ति और आराधना का संकल्प लेकर (अभिजीत मुहूर्त) में घरों में कलश स्थापना किया गया। घरों और देवी मंदिरों में अलसुबह से ही दुर्गा चालीसा स्तुति, सप्तशती, चण्डी पाठ, आरती के मंत्र फिजाओं में गूंजने लगे। सूर्य की पहली उजास किरणों के लालिमा में देवी के जयकारा और घंट घड़ियाल बजने, चंहुओर धूप अगरबत्ती, हवन से निकलने वाले धुएं से पूरा माहौल आध्यात्मिक हो गया। नवरात्र के पहले दिन दुर्गाकुण्ड स्थित भगवती कुष्माण्डा, महालक्ष्मी मंदिर लक्ष्मीकुण्ड लक्सा, रामनगर स्थित दुर्गामंदिर सहित सभी प्रमुख और छोटे बड़े मंदिरों में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु जुटे रहे। लोगों ने दरबार में नारियल, चुनरी मां को अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना की।

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