संविधान और आरक्षण में बदलाव वाला कांग्रेस का नैरेटिव हुआ सफाचट
एकजुट हुए हिंदू मतदाता, माना मोदी को कमजोर करना देश को कमजोर करना
लोकसभा में हुई चूक को बदला हरियाणा के मतदाताओं ने, झारखंड और महाराष्ट्र में असर पड़ना तय
सोशल मीडिया पर चुनाव नहीं जीता जाता, बता दिया आरएसएस ने
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
हरियाणा में भाजपा की जीत ने सबसे पहले एग्जिट पोल वालों की क्रेडिबिलिटी को डब्बे में डाल दिया है। जिस हिसाब से हरियाणा में भाजपा को बहुमत मिला है, उसने देश को कई सियासी संदेश दिये हैं। एक तो खटाखट वालों को फटाफट जवाब मिल गया है। दूसरा लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जो नरैेटिव सेट किया था कि भाजपा सत्ता में आयी तो संविधान बदल देगी, आरक्षण घटा देगी, उसे अब करारा जवाब मिल गया है। इस चुनाव में हिंदुओं की एकजुटता भी दिखी। बंटोगे तो कटोगे वाला योगी और मोदी का नारा काम कर गया। वहीं आरएसएस का फील्ड वर्क भी भाजपा को ताकत देने का काम किया। इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि सोशल मीडिया पर चुनाव जीतना और जमीन पर चुनाव जितने में बड़ा फर्क होता है। हरियाणा की जनता द्वारा भाजपा को जनादेश, लोकसभा चुनाव में भाजपा को हुए डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी लगती है। लोकसभा चुनाव में तो जनता ने एक मैसेज दिया था कि भाजपा जमीन पर ही रहे, क्योंकि वह जमीनी पार्टी ही रही है। हुआ भी वही। भाजपा को जनता ने ऐसा जनादेश दिया कि भाजपा ने सरकार तो बना ली, लेकिन कहीं न कहीं उसकी कमान बंधी हुई भी है। लेकिन चुनावी परिणाम आने के कुछ दिन में ही जनता को समझ में आ गया कि उससे गलती हो गयी। जनता फटाफट वालों के बहकावे में आ गयी। हरियाणा की जनता ने इसे साबित भी कर दिया। उसने यह अहसास कर लिया कि अगर मोदी कमजोर होंगे, तो देश भी कमजोर होगा। सो उसकी भरपाई कहीं न कहीं हरियाणा की जीत से पाटने की कोशिश भी दिखाई पड़ती है। क्योंकि जिस हिसाब से हरियाणा में एंटी इंकमबेंसी थी, उससे तो भाजपा को भी यकीन नहीं था कि वह यहां हैट्रिक बना कर इतिहास रचने वाली है। लेकिन यह जनता है। जनता कब क्या करेगी, सिर्फ उसी को पता रहता है। भाजपा के पक्ष का यह माहौल सिर्फ हरियाणा तक सीमित रहता अब नहीं दिखाई पड़ता। इसका असर अब महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों पर भी पड़ सकता है। जनता को अब अहसास हो रहा है कि केंद्र की सरकार मजबूत होनी चाहिए, चाहे किसी की भी हो। हरियाणा की जीत ने जहां पीएम मोदी के करिश्माई नेतृत्व को एक बार फिर स्थापित किया है, वहीं भाजपा की रणनीति को भी अपराजेय साबित कर दिया है। इतना ही नहीं, चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलने का भाजपा का पुराना फार्मूला हरियाणा में भी हिट रहा। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के सियासी संदेश की गूंज झारखंड और महाराष्ट्र में आसन्न चुनावों में भी सुनाई देगी। क्या है हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के कारण और मायने, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भाजपा ने हरियाणा के राजनीतिक इतिहास में नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है। उसने विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जीत हासिल कर सरकार बनाने का जनादेश हासिल कर लिया है। हरियाणा का यह चुनाव न केवल हरियाणा, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है और भाजपा की यह जीत बेमिसाल है। मतगणना के पहले दो घंटे में पिछड़ती नजर आ रही भाजपा ने जिस तूफानी रफ्तार से जीत हासिल की, उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व और पार्टी की अपराजेय चुनावी रणनीति को एक बार फिर स्थापित कर दिया है। इतना ही नहीं, हरियाणा के इस चुनाव परिणाम ने एक बार फिर एग्जिट पोल की विश्वसनीयता को खत्म कर दिया है। युवाओं में बेराजगारी और किसानों-पहलवानों की नाराजगी जैसे मुद्दे को कांग्रेस जोर-शोर से उठा रही थी, तो भाजपा इसका जवाब अपनी सरकार की उपलब्धियों से दे रही थी। सत्ता विरोधी माहौल के बावजूद भाजपा कांग्रेस की बगल से जीत को निकाल कर ले गयी। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे कुश्ती में बगलडूब दांव होता है, जब एक पहलवान सामने वाले पहलवान की बगल और पकड़ से बाहर निकल कर उसे परास्त कर देता है।
लोकसभा चुनाव के उलट है परिणाम
हरियाणा विधानसभा चुनाव का परिणाम इसी साल हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम से पूरी तरह उलट है। संसदीय चुनाव में मतदाताओं ने भाजपा को चेतावनी भरा संदेश दे दिया था कि वह जमीन पर रहे। ऐसा लगता है कि भाजपा ने इस संदेश को पढ़ लिया और हरियाणा में उसने वह गलती नहीं की, जो उसने लोकसभा चुनाव में की थी। इसके अलावा हरियाणा के मतदाताओं को भी यह समझ में आ गया कि देश की मजबूती के लिए केंद्र में मजबूत सरकार जरूरी है और वह मजबूत सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की दे सकती है। इसलिए उन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट नहीं देने की गलती को विधानसभा चुनाव में सुधार लिया है।
मारक रही भाजपा की चुनावी रणनीति
हरियाणा में भाजपा की जीत के पीछे उसकी अपराजेय चुनावी रणनीति का भी बड़ा हाथ रहा। पार्टी ने प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार अभियान तक के लिए ऐसी रणनीति बनायी, जिसमें विरोधी उलझ कर रह गये। हरियाणा में भाजपा ने बहुआयामी रणनीति बनायी। पार्टी ने ऐसी 18 सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जहां पर मुकाबला बहुकोणीय था। वहीं, 39 ऐसी सीटों पर भी भाजपा ने जोर लगाया, जहां उसका कांग्रेस से सीधा मुकाबला था। उधर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी कह चुके थे कि यदि गठबंधन की जरूरत पड़ी, तो सारी व्यवस्थाएं हैं।
मुख्यमंत्री बदलने की रणनीति कामयाब रही
हरियाणा की सियासत में बीते मार्च में तब बड़ा बदलाव देखने को मिला था, जब मनोहर लाल खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद नायब सिंह सैनी को विधायक दल का नेता चुना गया और वे मुख्यमंत्री बने। सैनी के जरिये भाजपा ने पंजाबी और पिछड़ा वोट बैंक पर पकड़ मजबूत कर ली। वहीं, खट्टर को केंद्र में भेज दिया गया। दरअसल भाजपा किसी भी राज्य में अपनी सरकार के लंबे कार्यकाल के खिलाफ उपजे जनाक्रोश या गुस्से को दबाने और सत्ता विरोधी लहर को कम करने के लिए चुनावों से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री को बदलती रही है। भाजपा ने इसका सफल प्रयोग गुजरात में किया था। उसके बाद उत्तराखंड में भी भाजपा इसे आजमा चुकी थी। उसी ट्रिक को भाजपा ने चुनावों से कुछ महीने पहले हरियाणा में भी आजमाया और इस बार भी यह रणनीति सफल रही।
पीएम मोदी ने भी कम रैलियों को किया संबोधित
भाजपा ने इस बार प्रदेश स्तर के नेताओं को चुनाव प्रचार में खुली छूट दी और संभवत: यही वजह रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ चार चुनावी रैलियां हरियाणा में कीं, जबकि इससे पहले 2014 और 2019 में उन्होंने धुआंधार चुनाव प्रचार किया था। ऐसा कर प्रधानमंत्री ने जवानों, पहलवानों और अग्विनीरों के तथाकथित आक्रोश को भी कम करने की सोची-समझी रणनीति पर काम किया और चुनावों के दौरान केंद्र सरकार की कई संस्थाओं ने भर्तियों में अग्निवीरों के लिए कोटे का एलान किया। रही-सही कसर भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र के जरिये पूरी कर दी, जिसमें महिलाओं को कांग्रेस से भी ज्यादा नकद देने का वादा किया गया है।
झारखंड और महाराष्ट्र में पड़ेगा असर
हरियाणा के चुनाव परिणाम ने भाजपा के भीतर नये उत्साह का संचार किया है। अब पार्टी दोगुने उत्साह के साथ झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव मैदान में उतरेगी। झारखंड में पार्टी विपक्ष में है, उसकी पूरी कोशिश होगी कि वह हरियाणा के चुनाव परिणाम की मदद से लोगों के बीच सत्ता विरोधी लहर पैदा करने में कामयाब हो, जबकि महाराष्ट्र में वह इसी परिणाम के सहारे अपनी चुनावी रणनीति को कारगर बनाने की जुगत लगायेगी। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इन दोनों राज्यों में भाजपा को हरियाणा के चुनाव परिणाम से नयी ऊर्जा मिलेगी।