प्रणव प्रियदर्शी : मन तो अपना खीझा हुआ है बीजेपी और उसकी सरकार पर। आपका भी खीझा होगा। सबका खीझा हुआ है। सिर्फ उन लोगों को छोड़ कर जिन लोगों ने यह मान रखा है कि वे अपने मन को मोदी सरकार के चरणों से इधर-उधर कहीं भटकने नहीं देंगे, कि मन में किसी प्रकार का कोई सवाल या संदेह नहीं उठने देंगे, कि आंख-कान बंद कर मोदी सरकार की तारीफ का मंत्र जपते रहेंगे। माना जा सकता है कि अपने होशो-हवास में कायम सभी लोग व्यथित हैं। जिन्होंने अपने लिए छुट्टे पैसों का बंदोबस्त कर लिया है वे भी बाकी तमाम लोगों की चिंता और परेशानी देखकर परेशान हैं। उस पर खून जलाने वाली बात यह है कि बीजेपी के खासमखास नेताओं से लेकर छुटभैये कार्यकतार्ओं तक, यहां तक कि सोशल मीडिया पर सक्रिय भाड़े के टट्टू भी बार-बार यह कहते हैं कि मोदी सरकार के इस फैसले से सिर्फ वही परेशान हैं जिन्होंने घर में करोड़ों का काला धन जमा कर रखा है।
इन घनचक्करों को यह भी नहीं दिखता कि अब तक इस फैसले से एक भी करोड़पति को हार्ट अटैक आने की खबर नहीं है। सारी खबरें गरीबों, बेचारों के मरने की है जिनसे अपने खून-पसीने की कमाई डूबने का ख्याल भी बर्दाश्त नहीं हुआ। बहरहाल, इस सरकार को इसके हाल पर छोड़ दिया जाये। इसे इसका काम खुद ही ले डूबेगा। हमारे लिए तो वक्त एक बार फिर यह सोचने का है कि हमारे पास विकल्प कैसा है। अब यही देखिए कि सतलुज-यमुना लिंक नहर के पानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आया सभी पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को लुभाने में जुट गयीं। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल गरजने बरसने लगे कि हम खून बहा देंगे, लेकिन एक बूंद पानी नहीं देंगे हरियाणा को। कांग्रेस की कमान संभाल रहे कैप्टन अमरेंदर सिंह ने तो कांग्रेस विधायकों से इस्तीफा ही दिलवा दिया इस फैसले के खिलाफ। नयी-नयी जनमी और खुद को वोट बैंक पॉलिटिक्स की कट्टर दुश्मन बताने वाली आम आदमी पार्टी के तेवर भी ऐसे ही हैं और यह फैसला क्या है।
यही कि हर राज्य का जितना हिस्सा है पानी का, वह मिलना चाहिए। जब पंजाब में चुनाव हों तो सब पंजाब के हित में बोलने लगें और जब हरियाणा में चुनाव हों तो हरियाणा के हित में। ऐसे चलेगा देश का कारोबार? कहीं तो हमें औचित्य के तर्क को मानना पड़ेगा। हमारे जो राजनीतिक दल इतना भी संयम नहीं बरत सकते, वोट के लालच पर इतना भी कंट्रोल नहीं रख सकते वे बाद में भीड़ की भावनाओं को नियंत्रित कैसे कर सकते हैं? उसे सच्चाई समझने और दूसरों का हक न मारने के लिए राजी कैसे कर सकते हैं? तो क्या हल यही है कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के लोग अपने-अपने गांव में तलवारें निकाले घूमते रहें?
जो राजनीति इतना नैतिक साहस नहीं दिखा सकती कि लोगों को कड़वा सच बता सके, सिर्फ भावनाओं को भड़काना और हां में हां मिलाना जानती है, उससे आगे क्या उम्मीद की जा सकती है? तो बीजेपी से परेशान मित्रो, दम धरो। आपके पास कोई ऐसा विकल्प नहीं जिससे बेहतरी की उम्मीद हो। लिहाजा, अगर सोचना ही है तो ठंडे दिमाग से ऐसा विकल्प तैयार करने के तरीके सोचो जो सचमुच विकल्प कहलाने लायक हो।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।