रांची: मुनिश्री शीतल सागर जी ने कहा कि अज्ञानी नहीं, ज्ञानी की संगत करो। अज्ञानी के साथ रहने से अज्ञानता मिलेगी, लेकिन ज्ञानी का संग करोगे तो जीवन ज्ञान के प्रकाशपुंज से खिल उठेगा। दिगंबर संत बालकृष्णा स्कूल प्रांगण में चल रहे सिद्धचक्रम महामंडल विधान सह विश्वशांति महायज्ञ के तीसरे दिन बुधवार को उपस्थित अनुयायियों को अपना आशीर्वचन प्रदान कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि अनुभव करते होंगे कि यदि आपका बच्चा गलत संगति में फंस जाता है तो उसकी उन्नति रुक जाती है।

ऐसे में आप बच्चे को समझा-बुझा कर उसे बुरी संगति से दूर करने का प्रयास करते हैं। ध्यान रखना बच्चे तो बच्चे हैं, महापुरुष भी यदि दुर्जनों की संगति में फंस जायें तो उन्हें पथ भ्रष्ट होने में देर नहीं लगती। शीतलसागर जी ने कहा कि वर्तमान समय में पैसे वाले अज्ञानी होने के बाद भी पूजे जाते हैं और निर्धन होने के कारण विद्धान नकारे जाते हैं। यही विडंबना है कि आज लोग प्रोफेसर तो बनना चाहते हैं, पर शास्त्री या आचार्य बनना पसंद नहीं करते। स्थिति को समझना होगा। महाराजजी ने कहा कि आत्महत्या सबसे बड़ा पाप है। इससे न तो दु:खों से छुटकारा मिलता है और न ही मुक्ति मिलती है। यदि तुम संसार के भ्रमण से थक गये हो तो संयम ग्रहण करो। अणुव्रती बनो तभी चतुर्गति की यात्रा समाप्त होगी।

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