तोक्यो: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज अपने जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ विभिन्न विषयों पर विस्तार से चर्चा की जिसका मकसद दोनों देशों के द्विपक्षीय सामरिक संबंधों को गति प्रदान करना है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कुछ चित्रों के साथ ट्वीट करके कहा, ‘‘विशेष सामरिक और वैश्विक गठजोड़ की मजबूती की समीक्षा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने शिष्टमंडल स्तर की वार्ता का नेतृत्व किया।’’ वार्ता से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जापानी प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर कांतेई में गार्ड आफ आनर दिया गया। स्वरूप ने इस अवसर से जुड़े कुछ अन्य चित्रों के साथ ट्वीट किया, “समय की कसौटी पर परखी दोस्ती को ऐसे समारोह मजबूती प्रदान करते हैं.. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कांतेई में औपचारिक अगवानी की गई।’’ गुरुवार को जापान पहुंचने पर मोदी ने ट्वीट करके कहा था, वे सार्थक चर्चा को लेकर आशान्वित है जो भारत और जापान के बीच आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करेगा।
शिखर स्तर की वार्ता के बाद दोनों नेता सुरक्षा, कारोबार, निवेश, कौशल विकास और आधारभूत संरचना जैसे व्यापक क्षेत्रों में संबंधों को गति प्रदान करने के रास्तों पर चर्चा करेंगे। शिखर स्तर की वार्ता के बाद दोनों पक्षों के बीच 12 समझौतो पर हस्ताक्षर किये जायेंगे। इनमें कौशल विकास, सांस्कृतिक आदान प्रदान और आधारभूत संरचना जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इस दौरान असैन्य परमाणु करार पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद भी की जा रही है। पिछले महीने दिसंबर में आबे की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच इस बारे में व्यापक सहमति बनी थी लेकिन अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये जा सके थे क्योंकि कुछ तकनीकी एवं कानूनी मुद्दे सामने आ गए थे।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पिछले सप्ताह कहा था कि दोनों देशों ने करार के मसौदे से जुड़े कानूनी एवं तकनीकी पहलुओं समेत आंतरिक प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया है। यह पूछे जाने पर कि क्या मोदी की यात्रा के दौरान करार पर हस्ताक्षर किये जायेंगे, स्वरूप ने कहा था कि, “मैं बातचीत के परिणामों के बारे में पहले से कुछ आकलन नहीं कर सकता।’’ भारत और जापान के बीच परमाणु करार के विषय पर बातचीत कई वर्षों से जारी है लेकिन इसके बारे में प्रगति रूकी हुई थी क्योंकि फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में 2011 में दुर्घटना के बाद जापान में राजनीतिक प्रतिरोध की स्थिति थी।