हिमाचल प्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं जहां का सूरते हाल अपनी कहानी खुद बयां करता है. कई सीटें किसी नेता के लिए खास है तो कुछ पार्टियों के लिए विशेष महत्व रखती हैं. कुछ यही हाल है हिमाचल प्रदेश की दून विधानसभा सीट का, जिसे कांग्रेस का ‘पुश्तैनी’ गढ़ कहा जाता है.
अब तक यहां हुए 11 विधानसभा चुनाव में सात बार कांग्रेस का कब्जा रहा. लेकिन बीजेपी इस सीट पर सेंध लगाने के लिए जी-जान से जुटी है.
कांग्रेस का अभेद्य किला
यहां 1967 में पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार लेख राम ने जीता था लेकिन उनकी मदद से कांग्रेस ने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा इस कदर जमाया कि राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता उस नींव को हिलाने में कामयाब नहीं हो पाया.
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दून विधानसभा में हुए अब तक कुल 11 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है. साथ ही पिछले पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चार बार 1993, 1998, 2003 और 2012 में जीत हासिल कर बीजेपी को इस क्षेत्र से दूर ही रखा है.
चौधरी बिरादरी का दबदबा
दून विधानसभा क्षेत्र में चौधरी बिरादरी का दबदबा बताया जाता है. बीजेपी के पास कोई बड़ा नाम न होने के कारण बीजेपी इस सीट पर जीत के लिए तरसती दिखाई दे रही है. बीजेपी के पास चौधरी बिरादरी का मजबूत जनाधार वाला नेता न होना पार्टी के लिए सिरदर्द बना हुआ है. हालांकि 2007 में बीजेपी की विनोद कुमारी इसका अपवाद रही हैं.
दून विधानसभा क्षेत्र के आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र का प्यार और साथ दोनों ही कांग्रेस को बड़े पैमाने पर मिला है. 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतने वाले चौधरी लज्जा राम ने 1993 में कांग्रेस का हाथ थामा और अगले तीन चुनाव में लगातार कांग्रेस की झोली में ये सीट आती गई.
2007 में बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाली विनोद कुमारी ने दो चुनाव में मिली हार का बदला चुकाते हुए लज्जा राम को करीब 3 हजार वोटों से हराया. लेकिन जनता ने 2012 के चुनाव में फिर से कांग्रेस नेता और लज्जा राम के बेटे राम कुमार को चुना और जीत दिलाई.
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कांग्रेस कैंडिडेट पर विरासत बचाने की जिम्मेदारी
राम कुमार ने दून विधानसभा चुनाव 2017 के लिए दोबारा नामांकन दाखिल किया है. विरासत में मिली राजनीति राम कुमार के लिए एक संजीवनी है. राम कुमार को एक विवादास्पद नेता के रूप में जाना जाता है. इस चुनाव में राम पर अपने पिता की विरासत को आगे ले जाने का दबाव होगा.
दून विधानसभा में जहां एक तरफ कांग्रेस कैंडिडेट पर अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का भार है तो वहीं बीजेपी कैंडिडेट अपनी जड़ें तलाशने की कोशिश कर रही है.
बीजेपी ने इस बार परमजीत सिंह पर दांव आजमाया है. 52 वर्षीय परमजीत सिंह ने पिछला चुनाव कांग्रेस पार्टी से टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय लड़ा था. चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रहे थे. एक जाति विशेष का दबदबा होने के कारण इस सीट से सिर्फ एक ही निर्दलीय उम्मीदवार इंद्र सिंह ठाकुर मैदान में है.