भीलवाड़ा, राजस्थान: राजस्थान में मेवाड़ की तरह, भीलवाड़ा में कीमती ग्रेनाइट और लोहा, जस्ता और सीसा जैसे मूल धातुओं का समृद्ध भंडार है। हिंदुस्तान जिंक और जिंदल सॉ जैसे खनन कंपनियों ने इस क्षेत्र में कई सौ करोड़ रुपये का निवेश किया है। फिर भी ज्यादातर सामाजिक आर्थिक संकेतकों पर भीलवाड़ा अविकसित है।
पूरे जिले में पानी की कमी है और पानी है तो प्रदूषित है। सड़कें नहीं हैं या सड़कों पर गड्ढे हैं। बाल विवाह और महिला निरक्षरता की दरें उच्च हैं। कम से कम 1,000 खनन श्रमिक सिलिकोसिस से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी लाइलाज बीमारी है, जो बारीक सीलिसा धूल के कारण होती है।
भारत के अधिकांश खनिज संपन्न क्षेत्रों की स्थिति ऐसी ही है। खनन स्थानीय निवासियों को लाभान्वित करने में नाकामयाब रहा है लेकिन भूमि और नदियों को तबाह कर दिया है और पारंपरिक आजीविका को नष्ट कर दिया है। यह विसंगति है कि प्रधान मंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (पीएमकेकेकेवाई) सभी खनन कार्यों पर कर लगाकर स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए एक राशि बनाकर कुछ हल निकालने का प्रयास करती है।
‘पीएमकेकेकेवाई’ की अवधारणा के साथ सिंद्धात रूप में कई अद्भुत विचार जुड़े हुए हैं, लेकिन व्यवहार में इसका बहुत असर नहीं दिखता। इंडियास्पेंड द्वारा भीलवाड़ा की जांच से पता चलता है कि मौजूदा सरकारी धन के विस्तार के रूप में ‘पीएमकेकेकेवाई फंड’ को संसाधित करते हुए जिला प्रशासन कोई बेहतर नियोजन, लक्ष्यीकरण या तात्कालिकता प्रदर्शित नहीं करता है।
स्थिति ऐसी है कि ग्रामीणों ने ‘पीएमकेकेवाई’ के बारे में भी नहीं सुना। योजना की लघु दृष्टि है। विधानसभा सदस्यों (विधायकों) का धन पर ज्यादा नियंत्रण है। और खनन विभाग में उस कार्य को संभालने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं और अगर हैं तो फिर विशेषज्ञता नहीं है।
भीलवाड़ा ने 7 अक्टूबर, 2017 तक 400 करोड़ रुपये का एक प्रभावशाली संग्रह किया है।
हम बता दें कि जिले के चालू बजट में 23 करोड़ रुपये का स्वास्थ्य बजट है,फिर भी फंड का उपयोग नहीं किया गया है।
‘पीएमकेकेकेवाई’ पर हमारी दो रिपोर्टों की श्रृंखला यह दूसरा भाग है। इन रिपोर्ट में हमने ये जानने की कोशिश की कि ‘पीएमकेकेकेवाई’ फंड्स को संभालने और उपयोग करने का तरीका सही है या नहीं। पहले भाग में हमने बताया है कि भीलवाड़ा और अन्य खनन क्षेत्रों को विकास निधि की जरूरत क्यों है?
ऊपर से नीचे क्रियान्वयन
दिल्ली स्थित ‘इन्वाइरन्मेन्टल रिसर्च ऐड्वकसी ग्रुप फैर सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वाइरन्मेंट’ (सीएसई) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल चंद्र भूषण ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि डीएमएफ़ की सफलता उस हद तक निर्भर करेगी, जिसके लिए वह योजना, निर्णय लेने और कार्यान्वयन को लोकतांत्रिक बनाने में सक्षम है।
सीएसई पूरे भारत में डीएमएफ पर नज़र रख रही है और कुछ जिलों में धन की बेहतर उपयोग करने की योजना तैयार करने में मदद कर रही है।
चंद्र भूषण ने आगे बताया कि ” यह सरकार का पैसा नहीं है . यह लोगों का पैसा है और इसलिए लोगों को यह निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए कि वे इस पैसे को कैसे खर्च करना चाहते हैं।”
इंडियास्पेंड ने कुछ ऐसे ग्रामीणों से संपर्क किया जो ‘पीएमकेकेकेवाई फंड’ के बारे में जानते थे और ऐसा लगा नहीं कि उनसे कि परामर्श किया गया था या निर्णय लेने में किसी भी तरह से वे शामिल रहे थे। नयनगर के गांव में, निवासियों ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी है। गर्मियों में बोरवेल को गहरा खोदना पड़ता है, फिर भी गर्मियों में सूख जाता है।
जब इंडियास्पेंड ने उन्हें फंड के बारे में बताया, तो उन्होंने कहा कि वे एक भूजल पुनर्भरण परियोजना चाहते हैं, संभवतः बनस नदी पर रोकबाँध का निर्माण, जो गांव से 30 किमी दूर होगा।
डीएमएफ ने बोरवेलों और सौर पंपों से जुड़े परियोजनाओं का प्रस्ताव किया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि इससे काम नहीं होगा। मंदी के समय में एक प्रवासी मजदूर के रूप में मुंबई जा कर काम करने वाले प्रभु गुर्जर कहते हैं, ” हाल ही में स्थापित एक हाथ पंप पहले से ही काम नहीं कर रहा है।”
जिला अधिकारियों ने कहा कि बनसों पर ‘रोक-बांध’ संभव नहीं है, लेकिन इस गांव के लिए डीएमएफ के तहत किसी अन्य जल रिचार्ज प्रस्ताव का सुझाव नहीं दिया गया है।
जहांजपुर ब्लॉक के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, गांवों में दूसरी समस्या पानी में अतिरिक्त फ्लोराइड है, जो बच्चों के दांत में दाग पैदा कर सकता है, और जोड़ों में दर्द और हड्डी की विकृति भी कर सकता है।
क्षेत्र के लिए एक ‘रिवर्स ऑसमॉसिस प्लांट’ भी प्रस्तावित किया गया है, लेकिन यह नयनगर के गांव को कवर नहीं करेगा, क्योंकि इसे पाइपयुक्त पानी की आपूर्ति नहीं मिली है, जैसा कि जहाजपुर से कांग्रेस के एक विधायक धीरज गुर्जर ने इंडियास्पेंड को बताया है।
फिर भी फंड के बारे में जागरुकता पैदा करने की कोई योजना नहीं है। सरकारी अधिकारियों और विधायकों ने कहा कि जागरुकता फैलाएंगे क्योंकि जमीन पर परियोजनाएं शुरू हो चुकी हैं, लेकिन उन परियोजनाओं की योजना पूरी तरह से ऊपर-नीचे की जाएगी।
भीलवाड़ा में खनन विभाग के साथ एक वरिष्ठ खनन इंजीनियर और दो डीएमएफ समितियों के सचिव-जनरल, कमलेश्वर बारेगामा ने इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए बताया कि “लोकतंत्र में, लोगों का प्रतिनिधित्व है। मेरी राय में हमने इस चैनल के माध्यम से जमीन के प्रस्ताव प्राप्त किए हैं।
”
नागरिक समाज संगठन असहमत हैं। सीएसई के भूषण कहते हैं, “इस देश में सत्तर साल का लोकतंत्र हमें बताता है कि हमें भागीदारी लोकतंत्र में अधिक विश्वास करना चाहिए न कि चुनावी लोकतंत्र ही।” उन्होंने जोर दिया कि चुनावी लोकतंत्र में जवाबदेही कम हो रही है।
जमीनी स्तर पर अब तक का अनुभव निराशाजनक रहा है। जस्थान स्थित जमीनी स्तर पर आंदोलन के मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के निखिल डे ने इंडियास्पेंड को बताया कि “यहां तक कि कानून के तहत पारदर्शिता के बारे में बात करने के बावजूद, डीएमएफ के बारे में बातें करना मुश्किल है।”
उदाहरण के लिए, खनन विभाग डीएमएफ के माध्यम से विचार करने वाली परियोजनाओं को सार्वजनिक नहीं कर रहा है। पूछने पर विभाग बताया कि केवल स्वीकृत परियोजनाओं की सूची सार्वजनिक कर दी जाएगी।
प्रत्येक जिले के डीएमएफ की एक वेबसाइट होनी चाहिए, जिसमें राशि का विवरण, बैठकों का विवरण, परियोजनाओं के कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति इत्यादि के संबंध में जानकारी होनी चाहिए।