सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं की संलिप्तता वाले आपराधिक मामलों की सुनवाई और उनके निबटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन के निर्देश दिए हैं। दोषी करार दिए गए नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किए जाने की मांग वाली जन हित याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की बेंच ने दागियों की सुनवाई के मामले केन्द्र सरकार से भी एक योजना पेश करने का निर्देश दिया है और छह सप्ताह में जानकारी देने को कहा है। इस मामले में अब 13 दिसंबर को सुनवाई होगी। सांसदों तथा विधायकों की संलिप्तता वाले 1581 आपराधिक मामले हैं। 2014 के चुनावों के दौरान नेताओं ने नामांकन पत्र के साथ उनके खिलाफ लंबित इन आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी। केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल आत्माराम नाडकर्णी ने अदालत में कहा कि केन्द्र विशेष अदालतों को गठित करके जल्द सुनवाई के पक्ष में है। देश के दागी नेताओं को लेकर सालों से बहस हो रही है, लेकिन हालात में सुधार जरा भी देखने को नहीं मिल रहा है। अभी भी संसद और विधानसभाओं में दागियों की भरमार है। आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक 4852 सांसदों और विधायकों में से 1581 के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। 543 लोकसभा सांसदों में से 184 यानी 34 फीसदी के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं 231 राज्यसभा सांसदों में से 44 यानी 19 फीसदी पर भी कई तरह के मामले दर्ज हैं। यहां तक कि 4078 विधायकों में से 1353 के खिलाफ विभिन्न आपराधिक मामले दर्ज हैं।
हमारे लोकतंत्र में ऐसी स्थिति चिंतित करने वाली है। राजनीतिक दलों को लोकतंत्र और इसकी प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी ने वादा किया था कि तमाम दागी नेता जेल में होंगे। मोदी सत्ता में आ गए लेकिन दागियों का कुछ नहीं हुआ। संसद और विधानसभाओं में आज भी बैठे हैं और प्रभावशाली बने हुए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट को लोकतंत्र की चिंता हुई है। अपनी सुधारात्मक भावनाओं के तहत अदालत ने दागियों के मामले में पहले भी निर्देश दिए थे, मगर उसका कोई असर देखने को नहीं मिला तो अदालत को विशेष अदालतों का निर्देश केन्द्र को देना पड़ा। दरअसल, आपराधिक मामले 20-20 साल से चल रहे हैं। इसके मद्देनजर अदालत की सख्ती जरूरी बन गई थी। अदालत ने चुनाव आयोग को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि दागियों के मामले उसने भी ढीला रुख अपना रखा है और उसका नजरिया स्वतंत्र नहीं है। राजनीति में धनबल और बाहुल का प्रभुत्व है।
अदालत में चुनाव आयोग ने आपराधिक संलिप्तता में चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक का पक्ष लिया। सुनवाई के दौरान सरकार ने अदालत को बताया कि दोषी ठहराए गए नेताओं को आजीवन अयोग्य घोषित करने संबंधी चुनाव आयोग और विधि आयोग की सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है। पता नहीं सरकार कब तक विचार करती रहेगी जबकि भारतीय राजनीति में लंबे समय से अपराधियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। कई मामलों में राजनेताओं को सजा भी मिली, लेकिन होता यही है कि वे ऊंची अदालत में अपील करके स्थगनादेश प्राप्त कर, फिर चुनाव मैदान में उतर जाते हैं। इसी साल जुलाई में जब सुप्रीम कोर्ट में सजायाफ्ता मुजरिमों को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने के मामले में सुनवाई चल रही थी तब केन्द्र ने इसका विरोध किया था। अब जबकि अदालत ने सख्त रूख अपनाया है तो किसी न किसी सार्थक पहल की उम्मीद जगी है।