विधानसभा चुनाव नजदीक आने और टिकट बंटवारे का समय आते ही भाजपा में दूसरे दलों से पाला बदलकर आये नेताओं की धड़कनें तेज हो गयी हैं। हाल यह है कि कोई भी ताल ठोककर यह कहने की स्थिति में नहीं है कि टिकट उसे ही मिलेगा। यह स्थिति इसलिए बनी है, क्योंकि एक तरफ जहां चुनाव से पहले दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल कराने के बाद भाजपा जंबो जेट पार्टी बन चुकी है, वहीं दो-तीन सर्वे की रिपोर्ट भी पार्टी के कई नेताओं के लिए परेशानी का कारण बन चुकी है। परेशानी इसलिए, क्योंकि इन सर्वे में भाजपा के कई विधायकों और मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड निगेटिव है। यदि बेहतर चुनाव परिणाम हासिल करने के लिए भाजपा अपने कुछ विधायकों और मंत्रियों का टिकट काट दे, तो इसमें भी किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पार्टी नेताओं की धड़कनें इसलिए भी तेज हैं, क्योंकि झारखंड विधानसभा की लगभग हर सीट पर भाजपा के पास बेहतर विकल्पों की फेहरिस्त है और पार्टी सभी संभावित विकल्पों को टिकट दिये जाने पर होनेवाले संभावित नफा-नुकसान पर विचार कर रही है।
बाहर से आये नेता ज्यादा परेशान
भाजपा में वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले और अभी हाल में 23 अक्टूबर को पाला बदलकर महामिलन समारोह में शामिल हुए नेता ज्यादा टेंशन में हैं, क्योंकि वे श्योर नहीं कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। फिर चाहे वह सुखदेव भगत हों या मनोज यादव या फिर पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व पार्टी के साथ आये रामचंद्र चंद्रवंशी या सत्येंद्र तिवारी। यही स्थिति शशि भूषण मेहता, रणधीर सिंह की है। हालांकि इन नेताओं के साथ अच्छी बात ये है कि ये सभी धाकड़ नेता हैं और इनका दमखम जगजाहिर है। बहरागोड़ा में कुणाल षाडंगी जितने पॉपुलर हैं, उससे कम बरही में मनोज यादव भी नहीं है। मनोज यादव की जनता के बीच पकड़ जगजाहिर है और भानु तो क्षेत्र में अपना एक फिक्स वोट बैंक साथ लेकर चलनेवाले नेता माने जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी की भी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है और डाल्टनगंज विधायक आलोक चौरसिया के साथ तो जातीय वोटरों का एक बड़ा कुनबा जुड़ा हुआ है।
सीएम की अगुवाई में होगा फैसला
भाजपा में यह संभवत: पहला मौका है, जब टिकट पर फैसला पूरी तरह झारखंड की टीम के हाथ में है। मुख्यमंत्री रघुवर दास की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय कमिटी ही टिकटों के बंटवारे पर अंतिम मुहर लगायेगी और जो नेता यह सोचते हैं कि उनकी दिल्ली परिक्रमा से उनकी टिकट की आस पूरी हो जायेगी, वे मुगालते में हैं। भाजपा के प्रदेश महामंत्री दीपक प्रकाश साफ कर चुके हैं कि प्रदेश चुनाव समिति ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ, मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह को प्रत्याशियों के संबंध में अंतिम निर्णय लेने के लिए अधिकृत कर दिया है। हालांकि पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन में कार्यकर्ताओं की चाहत का पूरा-पूरा ध्यान रखने का भी दावा किया है।
आसान नहीं टिकट का बंटवारा
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में टिकटों का बंटवारा करना आसान नहीं होगा। इसलिए इसके दो सेंटर हैं। पहला दिल्ली दरबार और दूसरा झारखंड मेंं मुख्यमंत्री रघुवर दास की अगुवाई में बनी समिति। यह व्यवस्था असल में क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए बनी है। यह स्वाभाविक है कि हर चुनाव में जो भी सत्ताधारी दल होता है, उसके प्रति नेताओं का आकर्षण रहता है। बीते लोकसभा चुनाव से पहले भी जिन नेताओं ने पार्टी ज्वाइन की, चाहे वह अन्नपूर्णा देवी हों या गिरिनाथ सिंह या फिर जनार्दन पासवान। सबको टिकट नहीं मिला। केवल अन्नपूर्णा देवी भाग्यशाली रहीं, क्योंकि वे न सिर्फ लोकसभा चुनाव का टिकट पाने में सफल रहीं, बल्कि
चुनाव जीतकर सांसद भी बन गयीं।
भाजपा में दूसरे दलों से आये नेता पार्टी की नीतियों और सिद्धांतों से प्रभावित होकर नहीं आये हैं। इनमें से अधिकांश का एजेंडा टिकट हासिल कर विधायक बनने का है। यदि दूसरे दलों से आये सारे बड़े नेताओं को भाजपा टिकट दे देती है, तो इससे पार्टी का लंबे समय से झंडा ढो रहे नेता आहत होंगे और यदि इन्हें टिकट नहीं मिलेगा, तो ये पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में आसरा तलाश करने के साथ टिकट पाने की कोशिश करेंगे। इस तरह दोनों ही स्थितियों में भाजपा में टिकट बंटवारे के बाद कुछ परेशानी होनी तय है और पार्टी को भी इसका अंदाजा है। यही वजह है कि क्राइसिस मैनेजमेंट का वैकल्पिक सिस्टम भी पार्टी ने विकसित कर लिया है।
जंबो जेट पार्टी बन चुकी है भाजपा
झारखंड में विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा एक जंबो पार्टी बन चुकी है। इस जंबो जेट में नेताओं की भीड़ सवार है और इसे संभालना और उड़ने लायक बनाये रखना भी पार्टी के लिए चुनौती है। इन परिस्थितियों के साथ भाजपा में टिकट को लेकर अफवाहें भी तैर रही हैं। हद तो यह है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के नाम पर भी अफवाह उड़ रही है कि वे जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव न लड़कर किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ेंगे। जबकि उन्हीं की अगुवाई में बनी तीन सदस्यीय समिति के हाथ में टिकट बंटवारे का सारा दारोमदार है। महाराष्टÑ और हरियाणा में विधानसभा चुनाव के नतीजे और बिहार में हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद पार्टी अपना हर कदम फूंक- फूंक कर रख रही है। भाजपा ने चुनाव में 65 प्लस सीटें जीतने का जो लक्ष्य रखा है, वह भी उसे अपना हर कदम सोच-समझकर उठाने को विवश कर रहा है। झारखंड में चुनाव से पूर्व कांग्रेस, झामुमो और राजद का तालमेल हो गया है, जबकि झाविमो ने सभी 81 सीटों पर अकेले ही लड़ने का फैसला कर लिया है। पार्टी में अंदरूनी समस्याओं से जूझते हुए भाजपा को इनका मुकाबला करना होगा और यह स्थिति आसान नहीं है। इन परिस्थितियों में भाजपा का विधानसभा चुनाव का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो समय बतायेगा, पर यह तो लगभग तय है कि भाजपा के लिए टिकट बंटवारे की डगर बहुत आसान नहीं है और पार्टी को हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा।