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    झारखंड में राजनीति और जेल, जैसे चोली-दामन का मेल

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskNovember 9, 2019Updated:November 9, 2019No Comments10 Mins Read
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    • झारखंड में राजनीतिक पुरुषों का जेल से गहरा नाता
    • कुछ के राजनीतिक करियर को काली कोठरी ने दी चमक
    • कुछ ऐसे भी, जिन्होंने जेल यात्रा के बाद देखा राजनीतिक अवसान

    जिनकी जेलयात्राएं गौरव गाथा बन गयीं
    वर्ष 1977। मार्क्सवादी समन्वय समिति के जुझारू नेता कॉमरेड एके राय इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन की वजह से करीब दो वर्षों से जेल में थे। इस बीच देश में आम चुनाव का एलान हुआ। एके राय ने जेल से ही धनबाद लोकसभा क्षेत्र का चुनाव लड़ा। धनबाद की जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बिठा कर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचा दिया। इसके पहले 1966 में भी बिहार बंद आंदोलन में भाग लेने पर उन्हें जेल जाना पड़ा था। एक साल बाद ही 1967 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कॉमरेड रॉय ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की थी। कॉमरेड रॉय कई दफा सांसद-विधायक रहे। जन आंदोलनों की वजह से उन्हें कई बार जेलयात्राएं करनी पड़ीं। बताने की जरूरत नहीं कि हर जेलयात्रा के बाद कॉमरेड रॉय के संघर्ष की चमक और प्रखर हुई। बेशक ये ऐसी जेलयात्राएं थीं, जिन्हें लोकतांत्रिक संघर्ष के इतिहास में सुनहरे पन्नों में शुमार किया जाना चाहिए। एके रॉय अब इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं, लेकिन राजनीति और काली कोठरी में लंबा वक्त गुजार कर वह ताजिंदगी जिस तरह बेदाग रहे, उसकी चर्चा हमेशा होगी। रॉय दा की तरह शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो सरीखे दर्जनों ऐसे नेता रहे, जिन्होंने जनांदोलनों के दौरान जेलयात्राएं कीं और राजनीति में रहते हुए इन्हें जनता का बेशुमार प्यार हासिल हुआ। हालांकि झामुमो के सुप्रीमो शिबू सोरेन को बाद के कालखंड में जिन घोटालों के आरोप में जेल जाना पड़ा, उससे उनके दामन पर दाग भी लगे। जेलयात्राओं के बाद उन्हें जनता ने कई बार चुनावी युद्ध में विजेता बनाया, तो दो-तीन बार हार का भी सामना करना पड़ा।

    जब जेल से निकले यदुनाथ को संसद पहुंचाया हजारीबाग ने
    वह 1989 का साल था। हजारीबाग में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। भड़काऊ भाषण देने के आरोप में बजरंग दल के नेता यदुनाथ पांडेय को सरकार ने गुंडा एक्ट में जेल में डाल दिया था। उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ हजारीबाग शहर तीन दिनों तक अभूतपूर्व बंद रहा था। इसके बाद इसी साल देश में आम चुनाव हुए। यदुनाथ पांडेय जेल से निकल कर बाहर आये थे। उनकी लोकप्रियता उफान पर थी। भाजपा ने उन्हें हजारीबाग से उम्मीदवार बनाया और वे भारी मतों से जीतकर संसद जा पहुंचे। हालांकि इसके दो साल बाद ही 1991 में हुए चुनाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। एक जेल यात्रा ने उन्हें संसद तक जरूर पहुंचाया, लेकिन इसके बाद उनके राजनीतिक करियर को जैसे ग्रहण लग गया।

    मधु सिंह, संतु बाबू, अनिल चौरसिया की कहानी
    1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव में पांकी विधानसभा क्षेत्र से मधु सिंह ने जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा और विजयी भी रहे। वह दूसरी बार भी इस क्षेत्र से चुनाव जीते और अलग झारखंड बनने पर राज्य में बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा की सरकारों में मंत्री भी रहे। इसके पूर्व एक विधानसभा चुनाव में पांकी क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतरे कांग्रेस नेता संकटेश्वर सिंह उर्फ संतू बाबू को चुनाव के दौरान ही एक मामले में गिरफ्तार होकर जेल जाना पड़ा था। जेल में ही रहते हुए उन्होंने इस चुनाव में फतह हासिल की। 2004 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान डाल्टनगंज से बतौर स्वतंत्र प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे अनिल चौरसिया को एक मामले में चुनाव के दौरान ही जेल जाना पड़ा। वह चुनाव जीत तो नहीं पाये, लेकिन उन्होंने इंदर सिंह नामधारी को बेहद कड़ी टक्कर दी। नामधारी इस चुनाव में मात्र ढाई हजार मतों के फासले से विधानसभा पहुंच पाये। पिछले विधानसभा चुनाव में अनिल चौरसिया के पुत्र आलोक चौरसिया ने डाल्टनगंज से चुनाव जीता।

    जेल से बैठा की जीत ने सबको चौंकाया था
    2009 में देश में हुए आम चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सासाराम जेल में बंद नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा को अपना प्रत्याशी बनाया तो लोग चौंक गये थे। बैठा ने जेल में ही रहते हुए यह चुनाव जीता, तो इसकी चर्चा पूरे देश में हुई। बैठा पर करीब पांच दर्जन मामले थे, लेकिन जनता की अदालत ने उन्हें जिस तरह समर्थन दिया, उसके बाद झारखंड में नक्सली पृष्ठभूमि वाले कई लोगों ने राजनीति और चुनाव के मैदान में कदम रखा। 2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने खूंटी से मसीह चरण पूर्ति और तोरपा से पौलुस सुरीन को प्रत्याशी बनाया। ये दोनों ही नक्सली हिंसा के आरोपों में उस दौरान जेल में बंद थे। मसीह को पराजय हाथ लगी, जबकि पौलुस सुरीन झारखंड में कामेश्वर बैठा के बाद दूसरे उदाहरण बने, जिन्होंने जेल में रहते हुए ही चुनावी युद्ध फतह किया। झामुमो ने नक्सली हिंसा के आरोपों में जेल में बंद रह चुके युगल पाल को भी इसी चुनाव में विश्रामपुर से लड़ाया था। वह दूसरे स्थान पर रहे और उन्हें तकरीबन 16 हजार वोट मिले थे। उधर राजद ने नक्सली संगठन से जुडेÞ रहे और जेल जा चुके केश्वर यादव उर्फ रंजन यादव को पांकी से टिकट थमाया था। रंजन को तकरीबन साढ़े आठ हजार वोट मिल पाये थे। इसके बाद भी वह दो बार चतरा से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन जनता ने रंजन को माननीय की श्रेणी में नहीं पहुंचने दिया। 2009 में सिमरिया से आजसू के उम्मीदवार के तौर पर पूर्व माओवादी कुलदीप गंझू को उतारा गया। जेल यात्राएं कर चुके कुलदीप को भी हार का मुंह देखना पड़ा।

    जेल से निकले राजा पीटर ने जब गुरुजी को हराया
    2009 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री थे, लेकिन वह झारखंड विधानसभा के सदस्य नहीं थे। नियमों के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने के छह माह के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी था। इसी बीच तमाड़ के विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद वहां उपचुनाव की नौबत आयी। इस चुनाव में शिबू सोरेन को गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर नामक ऐसे प्रत्याशी के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, जो विभिन्न मामलों में कई बार जेल जाने और जेल से निकलने के बाद सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हुआ था। यही राजा पीटर एक बार फिर जेल में हैं। उन्होंने जेल से ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। एनआइए के कोर्ट ने इसकी मंजूरी भी दे दी है। तमाड़ क्षेत्र से ही पूर्व नक्सली कमांडर कुंदन पाहन भी चुनाव लड़ने का ख्वाहिशमंद है। उसने भी कोर्ट से इजाजत मांगी है। मंजूरी मिली तो कुंदन जेल से ही चुनावी लड़ाई लड़ेगा। जाहिर है, ऐसे में तमाड़ सीट एक अजीबोगरीब चुनावी संघर्ष का गवाह बनेगी।

    जेलयात्रा से ढुल्लू को भी मिली थी ताकत
    बाघमारा क्षेत्र से 2009 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर जीते ढुल्लू महतो का भी जेल से नाता रहा है। विधायक रहते हुए ही आपराधिक मामले में उन्हें 11 महीने तक जेल में रहना पड़ा। जेल प्रवास ने ढुल्लू को राजनीतिक तौर पर और मजबूती दी। जेल से जब वह रिहा हुए तो धनबाद में उनके स्वागत में अभूतपूर्व भीड़ उमड़ी थी। इसके बाद 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी जलेश्वर महतो को 20 हजार मतों के फासले से हराया।

    अकेला, प्रदीप, बंधु, भानु पर रहेगी नजर
    पोड़ैयाहाट से झारखंड विकास मोर्चा के विधायक प्रदीप यादव को कुछ महीने पहले एक महिला से छेड़खानी के आरोप में जेल जाना पड़ा। हाईकोर्ट से बेल मिलने के बाद वह एक बार फिर इसी क्षेत्र से झाविमो के प्रत्याशी होंगे। जेलयात्रा के बाद प्रदीप की क्षेत्र में लोकप्रियता घटी है या पहले की तरह बरकरार है, इसका फैसला इस चुनाव में होना है। बरही क्षेत्र के पूर्व भाजपा विधायक उमाशंकर अकेला को एक कार्यकर्ता की हत्या के खिलाफ आंदोलन के चलते जेल जाना पड़ा। आठ दिन पहले वह बेल पर छूटे हैं। इस जेल यात्रा के बाद उनका जिस तरह स्वागत हुआ और जिस तरह कोडरमा से लेकर चौपारण तक भीड़ उमड़ी, उससे यह तो तय है कि वह इस चुनावी मुकाबले में एक अहम धुरी होंगे। जीत-हार से ही फैसला हो पायेगा कि जेल यात्रा ने उन्हें संजीवनी दी या नहीं। उधर पूर्व विधायक बंधु तिर्की राष्ट्रीय खेल घोटाले में जेल में हैं। उन्होंने बेल की अर्जी जरूर लगायी है, लेकिन यह मंजूर ना भी हो तो उनका मांडर क्षेत्र से चुनाव लड़ना तय है। बंधु पिछला चुनाव हार गये थे। भवनाथपुर के विधायक भानु प्रताप शाही दवा घोटाले में जेल गये थे। फिलहाल बेल पर हैं और एक बार फिर विधानसभा में पहुंचने के लिए पूरी ऊर्जा झोंक रहे हैं।

    एनोस और कमल अपनों के लिए लगायेंगे जोर
    लोहरदगा के पूर्व आजसू विधायक कमल किशोर भगत मारपीट और जानलेवा हमले के आरोप में सजा काटकर जेल से रिहा हुए हैं। लोहरदगा से उनकी पत्नी नीरू शांति भगत चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। यह चुनाव भले उनकी पत्नी लड़ेंगी, लेकिन इम्तिहान तो यह सीधे-सीधे कमल किशोर भगत की है। यह देखना दिचलस्प होगा कि जेल से निकलने के बाद वह पत्नी को चेहरा बनाकर अपनी ही खोयी सीट हासिल कर पाते हैं या नहीं। उधर बेल पर रिहा हुए सजायाफ्ता पूर्व मंत्री एनोस एक्का अपनी पुत्री आयरीन एक्का को कोलेबिरा सीट से झारखंड पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर उतारने की तैयारी में हैं। एनोस के जेल जाने के बाद इसी सीट पर हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी मेनन एक्का को पराजय झेलनी पड़ी थी। एनोस इस बार पुत्री को आगे कर यह सीट किसी हाल में हासिल करने के लिए पूरी ऊर्जा झोंकेंगे।

    संजीव सिंह जेल में, पत्नी होंगी मैदान में
    झरिया के भाजपा विधायक संजीव सिंह अपने चचेरे भाई नीरज सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। उनके बदले इस बार उनकी पत्नी रागिनी सिंह का झरिया सीट से चुनाव मैदान में उतरना तय है। वह भाजपा से टिकट की दावेदार हैं। वह टिकट न मिलने की सूरत में भी चुनाव लड़ेंगी। संजीव जेल में रहते हुए अपनी पत्नी को विधानसभा का सफर करवाने में सफल हो पाते हैं नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा।
    उधर कांग्रेस के पूर्व विधायक योगेंद्र साव भी जेल की हवा खा रहे हैं। लेकिन परोक्ष रूप से वह बड़कागांव सीट पर अपनी बेटी अंबा प्रसाद को राजनीतिक सफलता दिलाने के लिए दमखम लगा रहे हैं। अभी अंबा प्रसाद का कांग्रेस से टिकट तय नहीं है, लेकिन संभावना है कि वही प्रत्याशी होंगी। ऐसे में देखना यह है कि योगेंद्र साव की पकड़ जनता में कैसी है।

    जेल से लालू चलेंगे सियासी चाल
    राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद जेल में चारा घोटाले की सजा भोग रहे हैं। स्वास्थ्य कारणों से वह ज्यूडिशियल कस्टडी में रिम्स में इलाज करवा रहे हैं। यह पहली बार होगा, जब झारखंड में पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान लालू झारखंड में होंगे। सियासी दांव-पेंच के खिलाड़ी लालू ने झारखंड में झामुमो, राजद और कांग्रेस के गठबंधन में अहम रोल निभाया है। जेल में रहते हुए लालू जी अपने सियासी तिकड़म से झारखंड के चुनाव में क्या गुल खिलाते हैं, यह 23 दिसंबर को पता चलेगा।

    मधु कोड़ा और राय के करियर पर ग्रहण
    ऐसा नहीं है कि काली कोठरी ने तमाम राजनीति पुरुषों के करियर को चमक दी है। कुछ ऐसे नेता भी हैं, जिनके राजनीतिक करियर पर जेल यात्राओं के बाद ग्रहण लग गया है। ऐसे नेताओं में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और पूर्व मंत्री हरिनारायण राय के नाम शुमार हैं।

    like the combination of Choli-Daman Politics and jails in Jharkhand
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