झामुमो के सुर में सुर मिलानेवाले अकील आज बोल रहे आजसू की भाषा
दल का साथ छोड़ते ही बदल गये विधायकों-नेताओं के बोल
वाकया 23 अक्टूबर का है। भाजपा के प्रदेश कार्यालय में आयोजित महामिलन समारोह में कांग्रेस के दो दिग्गज नेता अन्य नेताओं के साथ भाजपा में शामिल हुए। ये नेता थे बरही विधायक और दिग्गज कांग्रेसी नेता मनोज यादव तथा लोहरदगा से कांग्रेस विधायक और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत। अब ये नेता भाजपा के टिकट पर चुनाव के मैदान में कूद चुके हैं। सुखदेव भगत को भाजपा ने लोहरदगा सीट से उम्मीदवार बनाया है, वहीं मनोज यादव बरही की अपनी परंपरागत सीट से ताल ठोक रहे हैं। जिस दिन ये नेता भाजपा में शामिल हुए उनकी भाषा तो उसी दिन बदल गयी थी, पर अब ये घोर भाजपाई बनने को बेताब हैं। खुद में बदलाव लाना इनकी जरुरत तो है ही इनकी राजनीतिक मजबूरी भी है और जनता भी इन बदलावों को सहजता से लेती है वरना लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर अन्नपूर्णा देवी संसद तक पहुंचने में सफल न हुई होती। खैर अब बरही विधानसभा क्षेत्र पर नजर डालते हैं यहां बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच कभी कांग्रेसी रहे मनोज यादव की भाजपा में रहे और अब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे उमाशंकर यादव के बीच टक्कर है। वर्ष 2009 में भाजपा ने उमाशंकर अकेला और कांग्रेस ने मनोज यादव को चुनाव के मैदान में उतारा था। इस चुनाव में अकेला विजयी हुए और मनोज यादव चुनाव हार गये। वर्ष 2014 के चुनाव में भी दोनों दिग्गजों मेें भिडंÞत हुई थी और अब बार विजयश्री ने मनोज यादव का वरण किया। 2019 में दोनों दल बदलकर चुनाव के मैदान में हैं और फैसला जनता को करना है। इसी तरह कोडरमा में भाजपा के टिकट पर नीरा यादव और आजसू के टिकट पर शालिनी गुप्ता आमने-सामने हैं। आजसू से पहले शालिनी भाजपा में थीं और अब वे भाजपा के कमल पर आजसू के केले से वार करने में जुटी हुई हैं। इन दोनों उम्मीदवारों में जहां नीरा यादव के समक्ष अपनी सियासी जमीन बचाने की चुनौती है वहीं शालिनी गुप्ता इस सीट से जीत हासिल करने की महत्वाकांक्षा लिए चुनाव के मैदान में हैं। दिलचस्प ये है कि दल बदलने के साथ ही शालिनी गुप्ता के बोल भी बदल गये हैं।
सुखदेव से मुकाबले में दमखम लगा रहे डॉ रामेश्वर
वहीं, लोहरदगा सीट इस चुनाव में झारखंड की हॉट मानी जानेवाली सीटों में से एक हैं। यहां मामला त्रिकोणीय संघर्ष का है। इस त्रिकोण में जहां एक तरफ भाजपा प्रत्याशी के रुप में कांग्रेस से आये सुखदेव भगत हैं वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव। सुखदेव भगत को हराने का भूत डॉ रामेश्वर उरांव पर इस कदर सवार है कि वे लोहरदगा में कैंप करके बैठ गये हैं, इस काम में उन्हें धीरज साहू का साथ मिल रहा है। वहीं आजसू की नीरू शांति भगत अपने पति कमल किशोर भगत के दमखम के सहारे अपनी चुनावी नैया पार करने में जुटी हुई हैं। इस सीट पर बदले-बदले से कोई उम्मीदवार नजर आते हैं तो वह सुखदेव भगत हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद उनके लिए खुद को भाजपाई साबित करने की चुनौती है और इस लिहाज से भाषा से लिबास और व्यक्तित्व से कर्म तक उन्हें अपने आपको बदलकर दिखाना है।
इस सीट से वह सीटिंग विधायक रहे हैं, लिहाजा क्षेत्र की जनता का मूड वह अच्छी तरह जानते हैं, पर चुनाव में जनता-जनार्दन का मूड कब फिर जाये, इसका पता लगाने में राजनीति के धुर पंडितों को भी पसीना आ जाता है। तब भी ग्राउंड रिपोर्ट का अंदाजा लगाकर वे समीकरणों को अपने पक्ष में करने में जुटे हुए हैं। हालांकि तीनों उम्मीदवार यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके सामने फाइट टफ है और इसके लिए उन्हें पूरा पसीना बहाना होगा। विधानसभा चुनाव में नये रोल में खुद को साबित करने में प्रदीप बलमुचू भी पूरी जोर-आजमाइश कर रहे हैं। कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए आजसू पार्टी की ओर रुख किया और आजसू पार्टी ने उन्हें लपक लिया। कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष को भेजे गये पत्र में उन्होंने लिखा कि तीस साल तक विभिन्न पदों पर रहकर मैंने कांग्रेस की समर्पित भाव से सेवा की। पर बीते दो साल से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि पार्टी में निष्ठावान कार्यकर्ताओं की जरूरत नहीं है। हद यह है कि शीर्ष स्तर का कोई भी नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुनने के लिए तैयार नहीं है। अगर किसी ने सुन भी लिया तो उनकी तकलीफें दूर करने की कोशिश नहीं की जाती। ऐसे में वह भारी मन से पार्टी छोड़ रहे हैं। पर असल, में डॉ प्रदीप बलमुचू की चिंता पार्टी के कार्यकर्ता नहीं उनकी अपनी घाटशिला सीट थी।
इस सीट से पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था और आजसू उन्हें टिकट देने को तैयार थी इसलिए उन्हें आजसू में अपना भविष्य नजर आया और उन्होंने 14 नवंबर को आजसू पार्टी ज्वाइन कर ली। कांग्रेस ने उन्हें जमशेदपुर पूर्वी में मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ मैदान मेें उतारने का प्रस्ताव दिया था पर डॉ प्रदीप को मुख्यमंत्री के खिलाफ उतरना महंगा सौदा लगा इसलिए वे कांग्रेस छोड़कर आजसू में चले आये।
बाबूलाल-सुदेश अपनी बात कर रहे हैं
झारखंड विधानसभा चुनाव में बदले-बदले से झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो भी नजर आ रहे हैं। बाबूलाल मरांडी तो मोरहाबादी के संगम गार्डेन में आयोजित एक कार्यक्रम में यह साफ कर चुके हैं कि झाविमो कार्यकर्ताओं को भाजपा के अखाड़े में खेलने से बचना चाहिए। इसकी जगह उन्हें अपना खुद का अखाड़ा तैयार कर खेलना चाहिए। भाजपा के विरोध की जगह बाबूलाल चुनाव में अपनी बात कह रहे हैं और अपनी प्राथमिकताएं गिना रहे हैं। वे जनता को यह भी याद दिला रहे हैं कि उन्होंने अपने 28 महीने के कार्यकाल में झारखंड को विकास की पटरी पर लाने की कोशिश की थी। वे मैट्रिक पास स्टूडेंट को लैपटॉप देने का वादा कर रहे हैं। वहीं आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो भाजपा के गठबंधन टूटने के ऐलान के बाद भी भाजपा के विरोध में कोई बात न करके अपनी बात कर रहे हैं। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा है कि भाजपा चाहे तो सिल्ली में उम्मीदवार दे सकती है, पर भाजपा ने इस सीट पर सुदेश के खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिया है वहीं आजसू ने भी रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी सीट से उम्मीदवार नहीं उतारा है। वैसे भी इस चुनाव में आजसू और झाविमो सुप्रीमो नपी-तुली भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी वाणी में कहीं न कहीं शालीनता नजर आ रही है। दोनों अपनी राह चल रहे हैं और अपने लोगों को झारखंड हित में कार्यक्रम चलाने की बात कह रहे हैं।
टिकट कटने से खफा राधाकृष्ण अब आजसू के
पलामू प्रमंडल की छतरपुर सीट पर बदले मिजाज और बदली भूमिका में भाजपा से आजसू में गये राधाकृष्ण किशोर भी हैं। मई में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर भाजपा प्रत्याशी को जितवाया था, पर अब वे भाजपा की उम्मीदवार पुष्पा देवी के खिलाफ खड़े हैं। पहले उनकी पार्टी भाजपा थी तो उसके पक्ष में बोलते थे, पर अब आजसू है, तो उसकी भाषा बोल रहे हैं। इनका भी मुख्य मुद्दा अपनी सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखना है और इसके लिए पार्टी बदलना उन्हें जरुरी लगा। हालांकि किसी एक पार्टी के साथ रहनेवाले जीव राधाकृष्ण किशोर नहीं हैं। वे छतरपुर से तीन बार कांग्रेस, एक बार जदयू और एक बार भाजपा से विधायक रह चुके हैं। आजसू में शामिल होने के बाद भाजपा पर सवाल दागते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा को सार्वजनिक रूप से यह बताना चाहिए कि उनसे कहां कमी रह गयी। हमारा टिकट क्यों काटा। दरअसल भाजपा ने झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए अपनी जो पहली सूची जारी की उसमें राधाकृष्ण किशोर का टिकट काटकर सांसद रह चुके मनोज भुर्इंया की पत्नी पुष्पा देवी को उम्मीदवार बनाया। इसके बाद राधाकृष्ण किशोर बागी हो गये और 12 नवंबर को आजसू का दामन थाम लिया। इस कड़ी में सबसे दिलचस्प परिवर्तन पाकुड़ में झारखंड मुक्ति मोर्चा के झंडाबरदार रहे अकील अख्तर में आया है। महागठबंधन में पाकुड़ सीट कांग्रेस के खाते में जाने के बाद अकील अख्तर ने झामुमो का दामन छोड़कर आजसू का दामन थाम लिया। आजसू ज्वाइन करने के बाद अकील ने कहा कि ऐसी राजनीति करुंगा जिससे जनता की सेवा कर सकूं। सुदेश महतो ने मुझे कुर्सी पर बैठाया है। कुर्सी लेने के बाद जो भी धोखा देता है उसे लानत है। उसका कभी भला नहीं हो सकता। सुदेश महतो ने मुझे जो सम्मान दिया है उसका पूरा फर्ज मैं निभाऊंगा। अकील अख्तर पाकुड़ सीट से वर्ष 2009 में झामुमो के टिकट पर चुनाव जीते थे। 2014 के विधानसभा चुनाव में भी वे उम्मीदवार रहे थे और आलमगीर आलम के हाथों उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। अब उन्हें उम्मीद है कि आजसू के टिकट पर चुनाव में उनकी नैया जनता पार लगा देगी।