कुर्मी वोटरों को मिला नया ठिकाना, कैसे वापस हासिल करेगी आजसू
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद भी नहीं चेती आजसू
झारखंड की राजनीति में एक ऐसा भी दौर था, जब आजसू की धमक पूरे झारखंड में थी। आजसू की भूमिका किंग मेकर के रूप में होने लगी थी। पार्टी का जनाधार लगातार बढ़ता जा रहा था। एक दौर तो ऐसा भी आया कि झारखंड की राजनीति में लगभग 15 प्रतिशत हिस्सेदारी रखनेवाले कुर्मी मतदाता आजसू में अपना भविष्य तलाश रहे थे, लेकिन समय का थपेड़ा ऐसा आया कि आजसू के समक्ष पहाड़ जैसी चुनौती उत्पन्न हो गयी। वह अपनी चमक खोती चली गयी। वह खुद को मौजूदा राजनीति के हिसाब से अपने को ढाल नहीं पायी। एक ऐसा भी दौर था, जब आजसू अपनी उग्र राजनीति के लिए जानी जाती थी। लेकिन समय के साथ आजसू की प्रमुखताएं बदलती चली गयीं। कभी पांच-पांच सीट पर काबिज रही आजसू, आज एक सीट पर सिमट कर रह गयी। इसके कई कारण भी हैं। एक आजसू की समय-समय पर बदलती हुई नीति और उसकी महत्वाकांक्षाएं। दूसरा पार्टी में कोई भी विजनरी नयापन नहीं होना। तीसरा खुद की जमीन के बारे में जानकारी न होना। तो चौथा खुद को कुर्मी मतदाताओं का मसीहा समझ लेना। लेकिन हाल के दिनों में आजसू को सबसे बड़ा नुकसान किसी ने पहुंचाया, वह है महज दो माह पहले रजिस्टर्ड हुई जयराम महतो की पार्टी, झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम)। इसने एक झटके में 38 साल के आजसू की साख और उसकी चमक को अपना ग्रास बना लिया। झारखंड की आबादी का कुल 15 प्रतिशत हिस्सेदारी रखनेवाले कुर्मी मतदाताओं के लिए जेएलकेएम नया विकल्प बन कर उभरा है। बीते लोकसभा चुनाव में ही निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले जयराम महतो के संगठन ने आजसू के समक्ष पहाड़ जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी थी। जयराम महतो ने विधानसभा चुनाव में राज्य की 81 में से 71 सीटों पर प्रत्याशी दिये। हालांकि इस चुनाव में 71 में वह खुद की एक सीट ही जीत सके। लेकिन इन्होंने भाजपा और आजसू को पूरा नुकसान पहुंचाया। विधानसभा चुनाव में झामुमो गठबंधन को 56 सीटों पर जीत मिली। इनमें 24 विधानसभा क्षेत्रों में एनडीए के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। उन सभी 24 सीटों पर जेएलकेएम के प्रत्याशियों ने तीसरा स्थान पाया है, जबकि दो सीटों पर जेएलकेएम के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। एक पर जीत दर्ज की। इसका निष्कर्ष यही है कि एनडीए ने जीती 24 सीट और जयराम की पार्टी ने 24 सीटों पर तीसरा स्थान हासिल किया। जयराम ने न सिर्फ आजसू की ही लुटिया डुबोयी, बल्कि भाजपा को भी चारों खाने चित्त कर दिया। कुछ जगहों पर जयराम ने इंडी गठबंधन को भी नुकसान पहुंचाया, लेकिन मंईयां सम्मान योजना के चलते महिलाओं ने इंडी गठबंधन को पूरा आशीर्वाद देकर संभाल लिया और उसे सिर्फ डुमरी सीट पर नुकसान हुआ। वहां झारखंड के टाइगर जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को खुद जयराम ने चुनाव में हरा दिया और पहली ही बार के चुनाव में वह विधानसभा की देहरी लांघ दी।
जयराम ने सात सीटों पर आजसू के केले का छिलका उतार दिया
आजसू को विधानसभा चुनाव में दस सीटें, एनडीए गठबंधन में मिली थीं। जयराम महतो की जेएलकेएम ने उस दस में से सात सीटों पर आजसू के केले का छिलका उतार दिया। यानी आजसू की जमीन में पूरी तरह सेंधमारी कर ली। जैसे-तैसे एनडीए में प्रमुख सहयोगी दल की भूमिका निभाने वाली आजसू पार्टी का झारखंड विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ होने से बच गया। मांडू से निर्मल महतो ने मात्र 231 मतों से जीत दर्ज कर, पार्टी की इज्जत बचा ली। हाल के वर्षों में यह पहला मौका होगा, जब झारखंड विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी का महज एक ही विधायक होगा। अब आजसू को मंथन करना पड़ेगा, उसकी हालत का जिम्मेदार कौन है। आखिर क्यों समय पर आजसू खुद को संभाल नहीं पायी। आखिर क्यों आजसू अपने प्रतिद्वंद्वियों को हलके में ले रही थी। आखिर क्यों आजसू अपने मतदाताओं से दूर होती चली गयी।
दूसरे दलों में जाते जीत रहे प्रत्याशी
इस चुनाव में यह भी साबित हुआ कि जो प्रत्याशी आजसू में सालों से परफॉर्म नहीं कर पा रहा था, दूसरे दल में जाते ही उन्होंने बेहतरीन रिजल्ट दिया। यानी आजसू को यह सोचना होगा कि उससे कहां गलती हो रही है। आखिर उसकी नीतियों में कहां गड़बड़ी हो रही है, जिससे उसकी साख लगातार गिरती जा रही है और दूसरी तरफ वही प्रत्याशी दूसरे दलों में जाते ही जीत रहे हैं। यहां तक की रोशनलाल चौधरी, जो लगातार तीन विधानसभा चुनाव से आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे और हार का रिकॉर्ड बना रहे थे, भाजपा में जाते ही 31 हजार से अधिक वोटों से जीत जाते हैं। उमाकांत रजक को ही ले लीजिए, वह भी दो बार से आजसू में हार का रिकॉर्ड बना रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने दल बदला और झामुमो में शामिल हुए, वह 33 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज करते हैं। उन्होंने भाजपा के नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी को धूल चटा दी। वहीं सिमरिया में मनोज चंद्रा को आजसू ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया था। वही मनोज चंद्रा ने झामुमो के टिकट पर जब चुनाव लड़ा, तो एक लाख सात हजार से अधिक वोट लाते हैं, भले वह भाजपा प्रत्याशी से 4 हजार वोटों से पिछड़ जाते हैं, लेकिन उन्होंने भी दिखा दिया कि उनकी क्षमता क्या है।
सुदेश महतो को उसी सुदेश को सामने लाना होगा, जिसके बल पर वह पहली बार विधायक बने थे
जयराम महतो की पार्टी जेएलकेएम ने आजसू के कोटे में आयी 10 में से सात सीटों पर गहरी चोट पहुंचायी। सिल्ली, रामगढ़, गोमिया, ईचागढ़, मांडू, डुमरी, जुगसलाई। यह अलग बात है कि मांडू सीट जैसे-तैसे 231 वोट से आजसू ने जीत लिया, लेकिन सांस तो वहां भी फूली ही हुई थी।
सिल्ली को ही ले लें। झामुमो के अमित महतो को 73 हजार 169 वोट हासिल हुए और उन्होंने चुनाव जीत लिया। वहीं सुदेश महतो को 49 हजार 302 वोट मिले, यानी 23 हजार 867 वोटों से वह पिछड़ गये और जेएलकेएम प्रत्याशी देवेंद्र नाथ महतो 41 हजार 725 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। यानी 41725 वोट का सीधा डेंट किस पर अधिक पड़ा यह समझा जा सकता है। वही सुदेश महतो ने 2019 में जेएमएम प्रत्याशी और अमित महतो की पत्नी सीमा देवी को 20 हजार से अधिक मतों से हराया था। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की हार आजसू की सेहत के लिए सही नहीं है। सुदेश महतो को सोचना होगा कि कहां उनसे चूक हुई। वैसे सबको पता है कि आजसू ने जयराम महतो को बहुत हलके में लिया था। लेकिन जयराम खुद को साबित करते हुए सुदेश के सामने एक चुनौती की तरह खड़े हो चुके हैं। जयराम में वही अग्रेशन है, जो एक वक्त सुदेश महतो में हुआ करता था। सुदेश महतो को गहरा मंथन कर खुद के भीतर झांकने का प्रयास करना होगा और उसी सुदेश को सामने लाना होगा, जिसके बल पर वह पहली बार विधायक बने थे। उन्होेंने उस समय कांग्रेस के प्रभावशाली मंत्री और झारखंड की राजनीति में खास पहचान रखनेवाले केशव महतो कमलेश को हराया था।
लोकसभा में मिली सीख से भी चेते नहीं चौधरी
रामगढ़ सीट को ही ले लिया जाये। जेएलकेएम ने वहां भी बुरी तरह आजसू को नुकसान पहुंचाया है। रामगढ़ की जंग में कांग्रेस प्रत्याशी ममता देवी को 89 हजार 818 वोट मिले, वहीं चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी और आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी को 83 हजार 28 वोट मिले। यानी 6 हजार 790 वोटों से वह हार गयीं। वहीं जेएलकेएम प्रत्याशी पाणेश्वर कुमार 70 हजार वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। समझा जा सकता है कि आजसू कहां पिछड़ गयी। यहां भी चंद्रप्रकाश चौधरी जयराम को कम आंकने की भूल कर बैठे। लोकसभा में मिली सीख से भी चेते नहीं चौधरी।
पलट गयी गोमियां की कहानी
गोमिया की बात करते हैं। गोमिया में जेएमएम प्रत्याशी योगेंद्र प्रसाद ने 95 हजार 170 वोट लाकर जीत दर्ज की। जेएलकेएम प्रत्याशी पूजा कुमारी को 59 हजार 77 वोट हासिल हुए। वह दूसरे स्थान पर रहीं। वहीं आजसू के लंबोदर महतो को 54 हजार 508 वोट मिले। यहां भी जयराम की पार्टी ने आजसू को करारी चोट पहुंचायी है। लंबोदर महतो को 2019 में 71 हजार 859 वोट मिले थे और वह विधायक बने थे। भाजपा ने इस सीट पर प्रत्याशी भी दिया था, जिसे करीब 18 हजार वोट मिले थे। 2019 में माधवलाल सिंह भी निर्दलीय चुनाव लड़े थे, जो 2014 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ दूसरे नंबर पर थे। लेकिन फिर भी लंबोदर महतो ने जीत हासिल की थी। लेकिन अब गोमिया की कहानी पूरी तरह बदल गयी है। यहां भी आजसू को गहरे चिंतन की आवश्यकता है।
ईचागढ़ के अरमानों पर चल गयी कैंची
अब ईचागढ़ की ओर रुख करते हैं। ईचागढ़ सीट पर जेएमएम प्रत्याशी सबिता महतो को 77 हजार 552 वोट मिले और उन्होंने चुनाव जीत लिया। वहीं आजसू के हरेलाल महतो 51 हजार 29 वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे। तीसरे स्थान पर जेएलकेएम के तरुण महतो को 41 हजार 138 वोट मिला। भाजपा से बागी हुए अरविंद सिंह उर्फ मलखान सिंह को भी 20 हजार से अधिक वोट मिले। यही अरविंद सिंह 2019 में निर्दलीय चुनाव लड़े थे। उस वक्त भी वह चौथे स्थान पर रहे। इन्होंने ही उस वक्त भाजपा और आजसू का खेल भी बिगाड़ा था। 2019 में भाजपा और आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इस सीट पर आजसू दूसरे स्थान पर रही थी और भाजपा तीसरे नंबर पर। इस चुनाव में भाजपा और आजसू दोनों को 38-38 हजार से अधिक वोट मिले थे। लेकिन यही वोट भाजपा 2024 में आजसू में शिफ्ट नहीं करा पायी और रही सही कसर जयराम की पार्टी ने निकाल दी।
डुमरी में जयराम ने आजसू का पहले से ही प्रबंध कर रखा था
डुमरी की बात करें तो यहां खुद जेएलकेएम के सुप्रीमो जयराम महतो खुद चुनावी मैदान में थे। उन्होंने 94 हजार 496 वोट लाकर जेएलकेएम की जीत का खाता खोल दिया। उन्होंने झामुमो प्रत्याशी बेबी देवी को 10 हजार वोटों से हरा दिया। वहीं आजसू तीसरे नंबर पर रही। उसे मात्र 35 हजार 890 वोट ही मिले। यहां तो जयराम ने आजसू का पहले से ही प्रबंध कर रखा था। वह पहले ही रेस से बाहर थी।
जुगसलाई की बात करें तो झामुमो के मंगल कालिंदी 1 लाख 21 हजार 290 वोट लाकर पहले स्थान पर रहे। आजसू के प्रत्याशी रामचंद्र सहिस 77 हजार 845 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रहे। तीसरे स्थान पर जेएलकेएम प्रत्याशी बिनोद स्वांसी को 36 हजार 998 वोट मिले। यहां भी जयराम महतो की पार्ट ने आजसू को नुकसान पहुंचाया। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा भी अपना वोट आजसू को ट्रांसफर नहीं कारा पायी।
जैसे-तैसे जीती मांडू
वहीं मांडू की बात करें तो जैसे-तैसे आजसू ने यहां से जीत दर्ज की। आजसू के निर्मल महतो को कुल 90 हजार 871 वोट मिले। दूसरे स्थान पर कांग्रेस के जेपी पटेल रहे और तीसरे स्थान पर जेएलकेएम के बिहारी कुमार को 71 हजार 276 वोट हासिल हुए। यहां भी जयराम की पार्टी ने करारी टक्कर दी। 2019 में जेपी पटेल ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता था। वहीं आजसू को 47 हजार 793 वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर जेएमएम रहा था, उसे 44 हजार 768 वोट हासिल हुए थे। यानी मांडू सीट की जीत में भाजपा की भी बड़ी भूमिका रही।
तमाड़ में दिखी आजसू की उदासीनता
तमाड़ विधानसभा सीट पर एनडीए की तरफ से राजा पीटर चुनाव लड़ रहे थे। एनडीए को उम्मीद थी कि आजसू यहां कुर्मी मतदाताओं का वोट राजा पीटर के खाते में ट्रांसफर करा देगी, लेकिन लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में आजसू कुर्मी मतदाताओं का वोट एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर नहीं करा पायी। सच बात यह थी कि आजसू ने तमाड़ में यह प्रयास ही नहीं किया था कि उसका वोट एनडीए प्रत्याशी को मिले। अब समय आ गया है, जब आजसू को अपनी भूमिका के बारे में सोचना ही होगा।
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