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    Home»विशेष»खामोश है झारखंड का ‘आयरन डोम’ संथाल परगना
    विशेष

    खामोश है झारखंड का ‘आयरन डोम’ संथाल परगना

    shivam kumarBy shivam kumarNovember 8, 2024No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    18 विधानसभा सीटों पर बन गया है रोमांचक मुकाबले का सीन
    राज्य की सियासत के केंद्रबिंदु इस इलाके में मुद्दों की कमी नहीं
    हेमंत सोरेन-बाबूलाल मरांडी की क्षमता की हो रही कठिन परीक्षा

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    विधानसभा चुनाव की आपाधापी और तेज सियासी गतिविधियों के बीच झारखंड की सियासत का केंद्रबिंदु और ‘आयरन डोम’, यानी संथाल परगना इन दिनों खामोशी की चादर लपेटे हुए है। हालांकि इस बार संथाल परगना की 18 विधानसभा सीटें कांटे के मुकाबले के लिए तैयार हैं। पाला बदलने और रूठने-मनाने का खेल खत्म होने के बाद अब यह तय हो गया है कि संथाल परगना का इलाका हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की क्षमताओं की कड़ी परीक्षा लेगा। झारखंड की सियासत में संथाल परगना की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है। यह इलाका न केवल विद्रोहों और आंदोलनों का गवाह रहा है, बल्कि यहां की फिजाओं में एक अलग किस्म की सियासी रवायत देखी जाती है। संथाल परगना को वैसे तो झामुमो का गढ़ माना जाता है, लेकिन भाजपा भी यहां उतनी कमजोर नहीं है। चुनावी अखाड़े में शिबू सोरेन भी संथाल परगना से पराजय का स्वाद चख चुके हैं और हेमंत सोरेन समेत झामुमो के लगभग सभी दिग्गज भी। दूसरी तरफ भाजपा के लिए भी यहां की धरती एक समान नहीं रही। कभी पार्टी ने खूब चुनावी फसल काटी, तो कभी उसे सूखे का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में संथाल परगना का परिदृश्य उलझा हुआ नजर आ रहा है। दोनों ही पक्षों ने संथाल फतह के लिए पूरा जोर लगाया है। इन 18 सीटों पर दूसरे चरण में, यानी 20 नवंबर को मतदान होना है। इसलिए अभी यहां प्रचार अभियान का पूरा रंग नहीं चढ़ा है। क्या है संथाल परगना का सियासी महत्व, क्यों इसे झारखंड की सत्ता की चाबी कहा जाता है और क्या है इस बार का चुनावी परिदृश्य, बता रहे हैं बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    आंदोलनों और विद्रोह की धरती संथाल परगना के माहौल में चुनावी रंग घुला हुआ दिखाई तो दे रहा है, लेकिन यहां की हवाओं में सियासी गर्माहट की बजाय अभी सर्द हवाओं की झीनी चादर ही महसूस हो रही है। इसका कारण शायद यही है कि संथाल परगना की 18 विधानसभा सीटों पर दूसरे चरण में, यानी 20 नवंबर को मतदान होगा। इसलिए सियासी खिलाड़ियों ने पहले चरण के चुनाव वाले इलाकों पर अपना ध्यान लगा रखा है।

    झारखंड का संथाल परगना इलाका हमेशा से ही सियासत का केंद्र रहा है और इस बार भी परिस्थितियां बहुत अलग नहीं हैं। सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद-माले का इंडिया ब्लॉक अपने इस अभेद्य दुर्ग को बचाने के लिए पूरी ताकत लगाये हुए है, तो भाजपा भी बहुत पीछे नहीं है। पाला बदलने और रूठने-मनाने का खेल खत्म होने के बाद अब एक-दूसरे पर राजनीतिक हमलों के बीच संथाल परगना अब चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहा है। यह तय है कि इस बार का विधानसभा चुनाव यहां दोनों ही पक्षों और उनके सेनापतियों, हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की
    ताकत का असली इम्तिहान लेगा।

    इस विधानसभा चुनाव में संथाल परगना सेंटर प्वाइंट बन गया है। आदिवासी अस्मिता की पिच पर लोकसभा चुनाव में नुकसान उठाने के बाद विपक्षी भाजपा अब सत्ताधारी झामुमो पर सीता सोरेन और चंपाई सोरेन के अपमान का आरोप लगाते हुए हमलावर है। भाजपा के तमाम नेता बेटी, रोटी और माटी की रक्षा में हेमंत सोरेन सरकार को विफल बताते हुए डेमोग्राफी में बदलाव के लिए इंडिया ब्लॉक की सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।

    जब भी डेमोग्राफी में बदलाव की बात आती है, तो सबसे अधिक चर्चा संथाल परगना की होती है। संथाल परगना की गोड्डा सीट से सांसद निशिकांत दुबे इस मुद्दे को संसद में भी उठा चुके हैं। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में भी घुसपैठियों को झारखंड की सीमा से बाहर निकालने का वादा किया है।

    संथाल परगना क्यों बना मुख्य अखाड़ा
    संथाल परगना में 18 विधानसभा सीटें हैं। यह झामुमो का गढ़ कहा जाता है। झारखंड की सत्ता तय करने में यह इलाका अहम भूमिका निभाता है और यह भी एक वजह है कि हर दल का फोकस संथाल जीतने पर रहता है।

    संथाल का राजनीतिक परिदृश्य
    इस बात में कोई संदेह नहीं कि संथाल परगना झामुमो का अभेद्य किला है। 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 18 में से नौ सीटें जीत कर अपना दबदबा साबित किया था। उसकी सहयोगी कांग्रेस ने चार सीटें जीती थीं, जबकि पोड़ैयाहाट की सीट उसे बाद में मिल गयी थी। भाजपा को केवल चार सीटें मिली थीं। विधानसभा की 18 सीटों में सात अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इन सभी आरक्षित सीटों, यानी दुमका, जामा, शिकारीपाड़ा, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, बोरियो और बरहेट के अलावा दो अनारक्षित सीटों, नाला और मधुपुर पर झामुमो का कब्जा है। उसकी सहयोगी कांग्रेस के पास पांच सीटें- जरमुंडी, पोड़ैयाहाट, महगामा, जामताड़ा और पाकुड़ हैं। भाजपा के पास चार सीटें- देवघर, गोड्डा, सारठ और राजमहल हैं। इन चार में से तीन सामान्य सीटें हैं, जबकि देवघर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संथाल के विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी। इनमें दो आदिवासी क्षेत्र, दुमका और जामा भी थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में संथाल परगना में मिली ऐतिहासिक सफलता ने झामुमो नेतृत्व और खास कर हेमंत सोरेन को अपनी राजनीतिक रणनीति पर दोबारा विचार करने पर मजबूर कर दिया। विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद हेमंत सोरेन ने संथाल की किलेबंदी पर अधिक ध्यान दिया। उन्होंने कैबिनेट में तीन स्थान (खुद को मिला कर चार) के अलावा स्पीकर भी संथाल से बनाया।

    संथाल में आदिवासी अस्मिता बनाम घुसपैठ और भ्रष्टाचार
    जहां तक विधानसभा चुनाव में मुद्दों की बात है, तो इस बार सत्ताधारी गठबंधन का फोकस आदिवासी अस्मिता पर ही है। हेमंत सोरेन जिस तरह भाजपा पर गुजरात-महाराष्ट्र के लोगों को झारखंड में लाने और यहां के आदिवासी, दलित और पिछड़ों को बरगलाने के साथ पैसे के बल पर घर और पार्टी को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं, उससे साफ हो गया है कि यह मुद्दा भी सत्ता पक्ष का प्रमुख हथियार है। हेमंत सोरेन अपनी सरकार की उपलब्धियों को भी जनता के सामने मजबूती से रख रहे हैं। इसके अलावा आरक्षण, सरना धर्म कोड, 1।36 लाख करोड़ का बकाया, स्थानीयता नीति और केंद्रीय योजनाओं में झारखंड के हिस्से में कटौती जैसे झारखंड की जनभावना से जुड़े मुद्दे भी उनके एजेंडे में शामिल हैं। सत्ताधारी महागठबंधन को पता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उसके लिए मुश्किल होगी, तो इसकी काट के लिए वह केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्ष के नेताओं को जेल में बंद करने का मुद्दा उठा रहा है। खासकर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को झारखंडी अस्मिता से जोड़ने का प्रयास भी असरदार होता दिख रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसे लेकर ‘झारखंड झुकेगा नहीं’ का नारा दिया है। इसके अलावा महागठबंधन के पास जल-जंगल-जमीन और स्थानीयता के मुद्दों के साथ स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखने की रणनीति बनाया है। 2019 में सत्ता संभालने के बाद वैश्विक महामारी के दौरान राज्य सरकार द्वार किये गये कार्यों की भी याद हेमंत सोरेन दिला रहे हैं। मंईयां योजना और अबुआ आवास योजना के सहारे वह संथाल की सियासी हवा को थामने की जुगत में हैं।

    संथाल में क्या है भाजपा की रणनीति
    भाजपा की रणनीति संथाल में आदिवासी अस्मिता के झामुमो के दांव को शिबू सोरेन के परिवार की ही सीता सोरेन और सिद्धो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू के जरिये काउंटर करने की है। पार्टी चंपाई को सीएम पद से हटाये जाने को भी आदिवासी अस्मिता से जोड़ जनता के बीच जा रही है। समान नागरिक संहिता को लेकर आदिवासी समाज के विरोध का असर कहीं वोट के रूप में सामने न आये, इसके लिए गृह मंत्री ने पहले ही आदिवासियों को इससे बाहर रखने का ऐलान कर दिया है।

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    shivam kumar

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