शीतऋतु के आगमन के साथ ही खाद्य पदार्थों खासकर सब्जियों-फलों की कीमतों में नरमी आ जाती है। लेकिन प्याज के साथ उलटा दिख रहा है। नई फसल की आवक के बावजूद प्याज की कीमत आसमान छू रही है। अमूमन पच्चीस-तीस रुपए प्रतिकिलो बिकने वाला प्याज दिल्ली में पचहत्तर-अस्सी रुपए पर पहुंच गया है। अलबत्ता दूसरे महानगरों और शहरों में हालत इतनी खराब नहीं है, पर असामान्य बढ़ोतरी हर जगह दिखती है। प्याज का दाम जैसे ही राजनीतिक मुद््दा बनने लगता है, सरकार के माथे पर परेशानी की लकीरें दिखने लगती हैं। वरना उसे सुध नहीं रहती कि आम ग्राहकों पर क्या बीत रही है। सवाल है कि प्याज की कीमत में हैरतनाक उछाल आने की वजह क्या है। महीना भर पहले खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा था कि प्याज की महंगाई के पीछे प्रमुख कारण जमाखोरी है। अगर यही कारण था, तो कोई कार्रवाई उन्होंने क्यों नहीं की? अब उन्होंने फरमाया है कि प्याज की कीमत नियंत्रित करना किसी के बस में नहीं है। ऐसे में क्या उम्मीद की जाए! क्या सचमुच प्याज की महंगाई किसी आपदा की देन है जिसे नियति मान कर चुप रहा जाए?एशिया में प्याज की सबसे बड़ी मंडी लासलगांव (महाराष्ट्र) में पिछले साल प्याज की कीमत सात या साढ़े सात रुपए प्रतिकिलो थी, इस बार वहां दाम तीस से पैंतीस रुपए है। बताया जा रहा है, और सरकार ने भी कहा है, कि इस बार प्याज का रकबा घटा है, जिससे पैदावार कम हुई, और इसी का असर कीमतों पर दिख रहा है। लेकिन कोई चार गुना अंतर के पीछे सिर्फ यही कारण है, या कालाबाजारी और जमाखोरी भी है? फिर, सवाल यह भी है कि रकबा क्यों घटा? याद रहे, प्याज की पिछली फसल के बाद किसानों का क्या अनुभव रहा था? उपज का वाजिब दाम मिलना तो दूर, लागत भी न निकल पाने के कारण अनेक जगहों से सड़कों पर प्याज फेंके जाने की खबरें आई थीं। यही टमाटर के साथ भी हुआ था। जहां किसानों का ऐसा कटु अनुभव हो, वहां अगर रकबा घट जाए, तो आश्चर्य की बात नहीं है। इस बार कीमत में उछाल है, पर क्या इसका फायदा किसानों को मिल पा रहा है? फायदा किनकी जेब में जा रहा है? आपूर्ति सुधारने के लिए सरकार ने दो हजार करोड़ टन प्याज आयात करने का फैसला किया है। इससे बाजार में आपूर्ति भले सुधर जाएगी, पर प्याज उगाने वाले किसानों का कोई भला नहीं होगा।रकबा घटने से महंगाई बढ़ने का सीधा सबक यही है कि कुछ भी ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे कृषिकार्य के किसान के जज्बे और मेहनत पर पानी पड़े। प्याज की कीमत का हवाला देते हुए दिल्ली सरकार ने केंद्र के सामने महंगाई से निपटने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष का प्रस्ताव रखा है। अच्छी बात है। पर इसका वायदा तो खुद केंद्र यानी भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों में मतदाताओं से किया था। इस वायदे को पूरा करना तो दूर, मोदी सरकार ने इस दिशा में एक कदम भी नहीं बढ़ाया। यही किसानों के साथ हुआ। मोदी ने वायदा किया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनी, तो यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसानों को उनकी उपज का लागत से डेढ़ गुना दाम मिले। लेकिन अपने इस वायदे को वे अब याद नहीं करना चाहते। एक तरफ किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, और दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को भी राहत नहीं है। फिर, चढ़ी हुई कीमतों से कौन चांदी काट रहा है!