दुमका से लौटकर अजय शर्मा
रांची (आजाद सिपाही)। हेमंत सोरेन भले ही झारखंड के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन वह आज भी बरहेट में एक सामान्य युवा हैं। साहेबगंज के बरहेट विधानसभा क्षेत्र से वह विधायक हैं। बरहेट के लोगों को वह सहज उपलब्ध हैं। उन्हें न तो सुरक्षा की परवाह होती है और न ही, उनके साथ मुख्यमंत्री वाला तामझाम होता है। वहां के लोग उन्हें या तो भाई मानते हैं या फिर बेटा। बरहरवा में एक गांव है पितरा। वहीं, सीएम का एक छोटा सा घर है। बीते सोमवार की रात सीएम इसी गांव में थे। आजाद सिपाही की टीम भी वहीं थी। लग नहीं रहा था कि यह घर सीएम का है। भीड़ में घिरा युवक राज्य का मुख्यमंत्री है। घर के अंदर दरी बिछी थी। इसमें आसपास के गांव के युवक बैठे थे। सीएम उनसे क्रमवार मिले। उस समय वहां कोई सुरक्षाकर्मी नहीं था। हर व्यक्ति आराम से आ रहा था और अपनी समस्या रख रहा था। घर के बाहर भी कोई तड़क भड़क नहीं थी। सभी लोग आराम से घर के अंदर जा रहे थे। सीएम से मिल रहे थे। अपनी बात बता रहे थे।
मुख्यमंत्री से मिल कर निकलनेवालों के चेहरे पर गजब की रौनक थी। आत्म संतोष से लबरेज लोग कहते थे कि इस बार झारखंड को सरल सीएम मिला है, जो गरीबों का दर्द समझता है। कोई अगर संथाली में बात करता था, तो सीएम उसे उसी भाषा में जवाब देते थे। पहली बार दिखा कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री से मिलनेवाले लोगों की मेटल डिटेक्टर से जांच नहीं की गयी और न ही पुलिसवालों का धक्का खाना पड़ा। एक तरह से पुलिसवालों को किनारे कर दिया गया था। उन्हें आराम करने की सलाह दी गयी थी। सोमवार की रात करीब नौ बजे सीएम घर के अंदर चले गये। वहां भी कोई तड़क-भड़क नहीं थी। यह संवाददाता भी उनके साथ अंदर गया। घर ऐसा लग रहा था जैसे किसी मामूली व्यक्ति का हो।
बरहेट में हेमंत सीएम नहीं रहे। बरहेट के एक-एक व्यक्ति के दिल में सीएम के लिए जगह है। हर कोई मानता है कि यह मुख्यमंत्री इस इलाके के लोगों के लिए जरूर कुछ करेंगे। उसी दिन शाम में घर के सामने ही एक कार्यक्रम भी हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। हेमंत सोरेन रांची से ही सड़क मार्ग से पहुंचे थे। अमूमन देखा जा रहा है कि जब वह निजी यात्रा पर होते हैं, तो हेलीकॉप्टर का उपयोग नहीं करते। इस मामले में उन्होंने अन्य नेताओं के सामने उदाहरण पेश किया है। नेतरहाट भी गये, तो सड़क मार्ग से। इस बार शनिवार को दुमका गये, सड़क मार्ग से। रविवार को तारापीठ गये सड़क मार्ग से और बरहेट भी गये सड़क मार्ग से। साथ भारी लाव लश्कर भी नहीं था। कभी कभी तो पुलिसवाले सीएम के सरल व्यवहार से परेशान हो जाते हैं। वे भीड़ में चले जाते हैं। कई लोगों की बातों को कान लगाकर सुनते हैं। दुमका और बरहेट में भी यही दिखा। दरअसल, वहां लोगों के सामने हेमंत सोरेन भी उन्हीं का होकर रहना चाहते हैं। उन्हीं की भाषा बोलते हैं। वहीं की परंपरा का निर्वहन करते हैं। वहीं का जीवन जीते हैं।
बरहेट के लोगों के दिलों में बेटा या भाई के रूप में बस गये हैं हेमंत
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