मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नये साल को नियुक्तियों का साल बनाने की घोषणा कर झारखंड के बेरोजगार युवाओं में उम्मीद की नयी किरण जगा दी है। मुख्यमंत्री की इस घोषणा से साफ हो गया है कि झारखंड अब कोरोना के संकट काल से बाहर निकलने के लिए तैयार है और राज्य सरकार भी कमर कस चुकी है। झारखंड में एक तरफ जहां सरकारी विभागों में रिक्तियों की भरमार है, वहीं राज्य में बेरोजगारी की दर भी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गयी है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि झारखंड सरकार के विभिन्न विभागों में 30 फीसदी के आसपास रिक्तियां हैं, वहीं बेरोजगारी की दर 12 प्रतिशत के करीब पहुंच गयी है। इस विकट परिस्थिति में हेमंत की घोषणा से उम्मीद तो जगी है, लेकिन इस घोषणा को धरातल पर उतारने में कई कठिनाइयां भी पैदा हो सकती हैं। सबसे प्रमुख कठिनाई है स्थानीयता नीति का अभाव और आरक्षण के प्रावधान। विपक्ष यह सवाल उठा रहा है कि बिना स्थानीयता नीति के नियुक्तियां कैसे होंगी। क्या पुरानी नीति के आधार पर ही नियुक्तियां की जायेंगी या फिर नये सिरे से इसे परिभाषित किया जायेगा। इन सवालों की पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की घोषणा और राज्य में जगी उम्मीद पर रोशनी डालती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वर्ष 2021 को नियुक्तियों का साल बनाने की घोषणा की है। इस संदर्भ में उन्होंने अधिकारियों को यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि राज्य सरकार में खाली पड़े पदों को भरने के लिए वे युद्ध स्तर पर काम करें। स्वाभाविक तौर पर उनकी इस घोषणा ने झारखंड के युवाओं में उम्मीद की नयी किरण जगा दी है। हेमंत की इस घोषणा से यह भी साफ हो गया है कि झारखंड कोरोना के संकट काल से बाहर निकलने के लिए पूरी तरह तैयार है। 11 महीने पहले राज्य की सत्ता संभालने वाले हेमंत सोरेन ने राज्य सरकार में खाली पड़े पदों को भरने की बात की है।
दरअसल, इन रिक्तियों का आंकड़ा बेहद चौंकानेवाला है। राज्य सरकार के कार्मिक विभाग के अक्टूबर तक के आंकड़े बताते हैं कि अभी सभी विभागों को मिलाकर स्वीकृत पदों की संख्या दो लाख 68 हजार 832 है। इनमें एक लाख 91 हजार 689 पदों पर ही अधिकारी और कर्मचारी कार्यरत हैं। अर्थात इन विभागों में 77 हजार 143 पद खाली पड़े हैं। कई विभागों ने कार्मिक को पद सृजन का भी प्रस्ताव सौंपा है, लेकिन उनमें मौलिक तथ्यों का अभाव है और इस कारण मामला लंबित है। इनके अलावा हर साल करीब तीन हजार कर्मी रिटायर हो रहे हैं और इसके कारण पद खाली हो रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राजस्व स्रोतों से जुड़े विभागों में कर्मियों का घोर अभाव है। वाणिज्यकर विभाग में 48.11 फीसदी कर्मी कम हैं, वहीं उत्पाद विभाग में 74 फीसदी कर्मियों की कमी है। शिक्षा विभाग में भी अधिकारियों की कमी है। इनमें शिक्षक से लेकर अधिकारी तक के पद शामिल हैं।
जहां तक झारखंड में बेरोजगारी का सवाल है, तो राज्य में अक्टूबर में फिर से बेरोजगारी बढ़ने के रुझान दिखने लगे हैं। महीने भर में इसमें 3.6 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखनेवाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग आॅफ इंडियन इकोनॉमी के ताजा आंकड़े बताते हैं कि सितंबर में झारखंड में बेरोजगारी दर 8.2 फीसदी थी। यह अक्टूबर के अंत में बढ़कर 11.8 फीसदी हो गयी है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की घोषणा के पीछे झारखंड को बेरोजगारी के दंश से मुक्त कराने की उनकी सोच है। राज्य अब कोरोना के संकट काल से बाहर निकल रहा है और अनलॉक प्रक्रिया के बाद खुले उद्योग-धंधों, कारोबार और स्वरोजगार की रफ्तार में थोड़ी कमी आयी है। स्कूल-कॉलेज, संस्थान या लोगों की आवाजाही वाले प्रमुख केंद्रों के पूरी तरह खुलने के बाद ही अर्थव्यवस्था का पहिया तेजी से घूमेगा और रोजगार की राह तैयार करेगा। इसके अलावा दूसरे राज्यों के लिए ट्रेन और बस सेवाओं के शुरू होने के बाद ही कारोबारी गतिविधियां अगली छलांग के लिए गति पायेंगी, क्योंकि इनके बिना मांग और आपूर्ति की शृंखला जोर नहीं पकड़ पा रही है। छंटनी की मार झेल चुके उद्योगों में नये सिरे से रोजगार देने की प्रक्रिया नहीं शुरू हुई है। संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों में गतिविधियां रुकी पड़ी हैं। इनके रफ्तार पकड़ने के बाद स्थिति में सुधार होगा और मुख्यमंत्री ने अपनी घोषणा से यही संकेत दिया है।
लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा को धरातल पर उतारने की राह में कई चुनौतियां भी हैं। इनमें स्थानीयता नीति और आरक्षण का मुद्दा सबसे प्रमुख है। ये दोनों मुद्दे झारखंड के स्थापना काल से ही नयी नियुक्तियों की राह का रोड़ा बने हुए हैं। इन मुद्दों का राजनीतिकरण भी इतना हो गया है कि इन्हें सुलझा पाना आसान नहीं है। जेपीएससी और जेएसएससी से अब तक हुई नियुक्तियों का मामला अदालतों में गया और कई तो रद्द भी हो गयीं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर इस बार होनेवाली नयी नियुक्तियों में स्थानीयता का आधार क्या होगा। क्या पुरानी नीतियों के आधार पर ही नियुक्तियां होंगी या फिर नये सिरे से नीतियां बनायी जायेंगी। एक और मुद्दा सरकारी नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार का भी है। झारखंड में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की कहानियां सामने आ चुकी हैं। इसलिए अब हर सरकारी नियुक्ति को संदेह की नजर से देखा जाता है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले साल 29 दिसंबर को सत्ता संभालने के बाद झारखंड के लिए अपना जो विजन बताया था, उससे एक बात साफ हो गयी थी कि सवा तीन करोड़ लोगों का यह प्रदेश अब नये रास्ते पर आगे बढ़ चुका है। ऐसे में हेमंत की घोषणा से यह उम्मीद भी जगी है कि इस बार सब कुछ ठीक होगा और इस सकारात्मक सोच के पीछे खुद मुख्यमंत्री की कार्यशैली ही है। हेमंत के बारे में कहा जाता है कि वह किसी भी मुद्दे पर अपनी राय खुद संतुष्ट होकर रखते हैं और उसमें किसी अगर-मगर की जरूरत नहीं होती। ऐसे में नयी नियुक्तियों के बारे में उनकी घोषणा के धरातल पर उतरने में किसी को कोई संदेह नहीं है। इसके रास्ते में आनेवाली बाधाओं को वह कैसे दूर करते हैं और झारखंड के बेरोजगार युवाओं के सपने को पंख कैसे लगाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

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