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    Home»Jharkhand Top News»झारखंड की कोयला खदानों को बनाया चारागाह
    Jharkhand Top News

    झारखंड की कोयला खदानों को बनाया चारागाह

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 17, 2020No Comments5 Mins Read
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    झारखंड पर प्रकृति ने अपने सौंदर्य का खजाना जम कर बरसाया है। घने जंगल, खूबसूरत वादियां, जलप्रपात, वन्य प्राणी, खनिज संपदाओं से भरपूर और संस्कृति के धनी इस राज्य में बहुत कुछ है। यही इसकी थाती और धरोहर भी रही है। इन सबको झारखंड के जनजीवन के साथ जोड़ कर देखा जाता है। इन्हीं वन संपदा पर कुछ माफियाओं की कुदृष्टि लग गयी। इसमें अधिकारियों का भी खूब साथ मिला और झारखंडी जनजीवन की परवाह किये बगैर कमाई का खतरनाक खेल चलता रहा। कहते हैं-गाय का भी दूध निकालने से पहले उसे खिलाया-पिलाया जाता है। पुचकारा जाता है। इसके बाद दुहा जाता है, लेकिन झारखंड की कोयला खदानों को लेकर तो स्थिति ठीक उलट है। इसे तो बस सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी मान लिया गया। नतीजा हुआ कि अंडा का वेट नहीं करके माफियाओं ने पेट फाड़कर सोना निकालने की जुगत भिड़ा ली। आलम यह है कि इन क्षेत्रों में लोग इसका दंश झेल रहे हैं। पानी का लेबल नीचे जा रहा है। प्रदूषण ऐसा कि दम घूंटने लगता है। यह सब अधिकारियों के नक्कारेपन को भी दर्शाता है। जब सुप्रीम कोर्ट को यह खतरनाक लग रहा है, तो अधिकारियों को इसका एहसास क्यों नहीं होता है। इसके लिए बजाप्ता वन विभाग, प्रदूषण बोर्ड, खनन विभाग काम कर रहा है। अब इसकी गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खनन और नीलामी पर रोक लगा दी है। इसके बाद से अधिकारियों के नक्कारेपन को लेकर बहस छिड़ने लगी है। पेश है आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव की रिपोर्ट।

     

    झारखंड का नाम आते ही जल, जंगल, जमीन, खदान और प्राकृतिक सौंदर्य का बोध जेहन में होने लगता है, लेकिन जब झारखंड का नाम कोल माफियाओं के सामने आता है, तो उनके लिए यह दोहन का स्थान बन जाता है। उन्हें नहीं मतलब है झारखंड के जनजीवन से। उन्हें नहीं मतलब दूषित हो रही आबोहवा से। उन्हें तो बस मतलब है कि कैसे और कैसे अधिक से अधिक इस सोने के अंड़े देनेवाली मुर्गी से अंडा निकाल लिया जाये, चाहे उसका सीना छलनी करना पड़े या पेट। कोल माफिया जितना ज्यादा अवैध कारोबार करते हैं, उतना ही ज्यादा नुकसान सरकार को होता है। हर माह करोड़ों के राजस्व की क्षति होती है। हालांकि इसमें अफसरों की जेबें भी खूब गर्म होती हैं। इसी कारण वे इस खतरनाक खेल को जानते हुए भी चुप रहे हैं। झारखंडी जनमानस के हितों की रक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बिना अनुमति झारखंड में खुदाई नहीं होगी। घने जंगल और संवेदनशील क्षेत्रों में खनन पर पूरी तरह से रोक रहेगी। बता दें कि केंद्र सरकार के कोल ब्लॉक नीलामी के फैसले के खिलाफ झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी थी। इधर, सीएम हेमंत सोरेन के तेवर भी इस मामले में सख्त हैं। उन्होंने खान विभाग की समीक्षा के दौरान स्पष्ट रूप से अफसरों को चेताया है कि किसी हाल में अवैध खनन नहीं होना चाहिए। इसके लिए अफसरों की जिम्मेवारी तय की जाये।
    क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
    सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने केंद्र से कहा कि झारखंड में व्यावसायिक खनन के लिए कोयला खदानों की इ-नीलामी के बाद शीर्ष अदालत की अनुमति के बगैर खुदाई नहीं होगी। न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं होने की स्थिति में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। पीठ ने कहा कि हमारी अनुमति के बगैर झारखंड में खनन के लिए खुदाई शुरू नहीं की जायेगी। पीठ झारखंड में व्यावसायिक खनन के लिए कोयला खदानों की इ-नीलामी के मुद्दे पर राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा है कि इस मामले में जनवरी में सुनवाई की जायेगी। झारखंड सरकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरिमन ने कहा कि चूंकि यह मामला जनवरी में सूचीबद्ध है, इसलिए कोई स्वतंत्र प्राधिकारी संबंधित स्थलों का निरीक्षण कर सकते हैं। इधर, सुप्रीम कोर्ट ने देश के घने जंगल और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में खनन की अनुमति के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि खनन कार्य के दौरान घास पूरी तरह से खत्म हो जाती है और उसने आठ जनवरी को सरकार को निर्देश दिया था कि खदानों के पट्टाधारकों पर यह शर्त लगायी जाये कि खदान में खनन काम बंद होने के बाद उन्हें खदान वाले क्षेत्र में फिर से घास लगानी होगी।
    सुप्रीम कोर्ट गयी थी राज्य सरकार
    झारखंड सरकार कोयला खदानों की नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंची थी। कोयला खदान की नीलामी में केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत थी, क्योंकि झारखंड में खनन का विषय हमेशा से ज्वलंत रहा है। इतने वर्षों बाद नयी प्रक्रिया अपनायी गयी है और इस प्रक्रिया से प्रतीत होता है कि हम फिर उस पुरानी व्यवस्था में जायेंगे, जिससे बाहर निकले थे। मौजूदा व्यवस्था से यहां रह रहे लोगों को खनन कार्य में अब भी अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है।
    अवैध खनन रोकें अफसर: हेमंत सोरेन
    इधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में अवैध खनन रोकने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री ने अफसरों को दो टूक कहा कि राज्य के विभिन्न जिलों में हो रहे अवैध खनन पर रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाये जायें। अवैध खनन सहित सभी अवैध माइनिंग पर प्रभावी रूप से अंकुश लगाने की दिशा में कार्य करें। खान-भूतत्व विभाग, परिवहन विभाग और वन पर्यावरण विभाग आपसी समन्वय स्थापित कर अवैध खनन के विरूद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करें।
    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निश्चित रूप से अवैध खनन माफियाओं का हौसला पस्त होगा और अवैध खनन में माफियाओं का साथ दे रहे अफसरों पर भी नकेल कसेगी। कारण अपनी जेबें भरने के लिए अफसर राज्य का कुछ भी अहित करने को तैयार हो जाते थे। झारखंड गठन के बाद खनन विभाग के गलत कारनामों की चर्चा खूब होती रही है और इसके कई अफसरों पर नकेल भी कसी गयी है।

    Jharkhand's coal mines made pasture
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