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    Home»Jharkhand Top News»संकल्प और समर्पण के पर्याय थे मसाला किंग
    Jharkhand Top News

    संकल्प और समर्पण के पर्याय थे मसाला किंग

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 4, 2020No Comments3 Mins Read
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    मसाला किंग के नाम से मशहूर एमडीएच के मालिक ‘महाशय’ धर्मपाल गुलाटी का जीवन संकल्प और लक्ष्य के प्रति समर्पण की मिसाल है। मसाला किंग के नाम से मशहूर इस शख्स ने अपनी संकल्प शक्ति की बदौलत एक छोटी सी दूकान से मसालों का कारोबार शुरू कर एक बड़ा ब्रांड खड़ा कर दिया।

    ‘महाशय’ धर्मपाल गुलाटी पाकिस्तान के सियालकोट में 27 मार्च 1923 को पैदा हुए। उनके पिता की परचून की दूकान थी। पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा बैरिस्टर बने, लेकिन बेटे के मन में कुछ और था। पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था। इसलिए उन्होंने पांचवीं क्लास के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया।
    1937 में पिता का हाथ बंटाते हुए उन्होंने एक छोटा सा व्यापार शुरू किया। इसमें नुकसान हुआ, तो उन्होंने साबुन का कारोबार किया। फिर कुछ दिन नौकरी भी की। नौकरी में मन नहीं लगा, तो कपड़ा, चावल आदि का भी कारोबार किया। कोई भी कारोबार लंबे समय तक नहीं चला, तो ‘महाशय’ एक बार फिर मसालों के पारिवारिक कारोबार में लौट आये। उन्होंने अपनी दूकान का नाम ‘महाशियां दी हट्टी’ रखा, जो दरअसल 1919 में खुली उनके पिता की दूकान का नाम था। दूकान चल निकली और ‘महाशय’ को लोग ‘देगी मिर्च वाले’ के नाम से जानने लगे।
    1947 में विभाजन के समय ‘महाशय’ भारत लौट आये और 27 सितंबर 1947 को वह दिल्ली पहुंचे। उन दिनों उनकी जेब में महज डेढ़ हजार रुपये ही थे। उन्होंने साढ़े छह सौ रुपये का तांगा खरीदा। वह नयी दिल्ली स्टेशन और कुतुब रोड और उसके आसपास तांगा चलाने लगे। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि तांगा चलाते समय भी उनके मन में मसालों का कारोबार शुरू करने के बारे में विचार आते थे और तब वह घोड़े को खूब मारते थे। तांगा रुकने पर वह घोड़े से लिपट कर खूब रोते थे।
    कुछ ही दिन के बाद उन्होंने तांगा चलाना छोड़ दिया और लकड़ी के छोटे खोके खरीद कर मसाले का कारोबार शुरू किया। कारोबार थोड़ा जमा, तो उन्होंने करोल बाग के अजमल खां रोड पर ‘महाशियां दी हट्टी आॅफ सियालकोट (देगी मिर्च वाले)’ के नाम से दुकान खोल ली। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आज महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) देश में मसालों का बड़ा ब्रांड है। यह मसालों के निर्माता, वितरक और निर्यातक है।
    ‘महाशय’ गुलाटी आइआइएफएल हुरुन इंडिया रिच 2020 की सूची में शामिल भारत के सबसे बुजुर्ग अमीर शख्स थे। कभी कुल जमा पूंजी 15 सौ रुपये वाले हट्टी की दौलत आज 54 सौ करोड़ रुपये तक पहुंच गयी है। व्यापार और उद्योग में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए पिछले साल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मभूषण से नवाजा। आज देश और दुबई में एमडीएच मसाले की 18 फैक्ट्रियां हैं। यूरोमॉनिटर के अनुसार, धर्मपाल गुलाटी एफएमसीजी सेक्टर के सबसे ज्यादा कमाई वाले सीइओ थे। गुलाटी अपनी सैलरी का करीब 90 फीसदी हिस्सा दान कर देते थे। वे 20 स्कूल और एक अस्पताल भी चला रहे थे।

    Masala King was synonymous with resolve and dedication
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