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    Home»विशेष»जेएनयू : यह पढ़ने-पढ़ाने की जगह है या विवादों का अड्डा
    विशेष

    जेएनयू : यह पढ़ने-पढ़ाने की जगह है या विवादों का अड्डा

    azad sipahiBy azad sipahiDecember 6, 2022No Comments8 Mins Read
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    • राजनीति का अखाड़ा बना : एक बार फिर नये विवाद में फंसा है देश का नंबर-1 विश्वविद्यालय

    देश का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय माना जानेवाला जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, यानी जेएनयू एक बार फिर विवादों में फंस गया है। यह पहली बार नहीं है कि जेएनयू विवादों में आया है। इससे पहले भी वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाने वाला यह विश्वविद्यालय कई बार आतंकियों के समर्थन और जातिवादी नफरत फैलाने के कारण विवादों में रहा है। इस बार का विवाद जेएनयू के कैंपस की कई दीवारों पर ब्राह्मण-बनिया विरोधी नारे लिखने के बाद शुरू हुआ। इसके बाद कैंपस में तोड़-फोड़ की गयी और दीवारों पर ‘ब्राह्मण कैंपस छोड़ो’, ‘ब्राह्मण भारत छोड़ो’ और ‘ब्राह्मण-बनिया, हम बदला लेंगे’ जैसे नारे लिखे हुए दिखे। छात्रों ने दावा किया कि स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज बिल्डिंग की दीवारों पर इन दोनों समुदायों के खिलाफ नारे लिखे गये और दीवारों पर भी तोड़फोड़ की गयी। जेएनयू कैंपस में इससे पहले भी कई बार अभाविप और वामपंथियों के बीच विवाद होता रहा है। कई बार तो उनके बीच झड़पें भी होती रही हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह पढ़ने-पढ़ाने का स्थान है या विवादों का अड्डा। जिस शिक्षा के मंदिर में शिक्षा की अलख जगाने देश के कोने-कोने से विद्यार्थी आते हैं, वहां आखिर इतने विवाद क्यों होते रहते हैं। आखिर इस प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान को कुत्सित राजनीति का अखाड़ा क्यों बना दिया गया है। अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि आम लोग अपने बच्चों को जेएनयू में पढ़ने के लिए भेजने से कतराने लगे हैं। क्या है जेएनयू का विवाद और इस विवाद से जुड़े पहलुओं का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में शुमार दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक बार फिर विवादों के घेरे में है। इस विवि की दीवारों पर ब्राह्मण और बनिया समुदाय को निशाना बनाते हुए कुछ आपत्तिजनक नारे लिखे हुए पाये गये हैं। जेएनयू के स्कूल आॅफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज की दीवारों पर ‘ब्राह्मणों भारत छोड़ो’, ‘ब्राह्मणों-बनियों, वीआर कमिंग फॉर यू’, और ‘वी विल अवेंज’ जैसे जाति-विरोधी नारे लिखे गये। स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज में ‘देयर विल बी ब्लड’, और ‘ब्राह्मिंस लीव द कैंपस’ जैसे नारे लिखे गये हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इन जातिवादी नारों के खिलाफ विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्रवाई का आदेश दिया है और डीन, स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज, ग्रीवांस कमेटी को जल्द से जल्द कुलपति को एक रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।
    पूरी दुनिया जानती है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की गिनती देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में होती है। हालांकि पिछले कुछ सालों में यह प्रतिष्ठित संस्थान कई विवादों के चलते भी सुर्खियों में छाया रहा है। विश्वविद्यालय परिसर को वामपंथी राजनीति का गढ़ माना जाता है। इस विश्वविद्यालय में हाल के दिनों में कई विवाद हुए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख विवाद इस प्रकार हैं-

    भाजपा नेता नूपुर शर्मा के मामले में विरोध-प्रदर्शन
    जून 2022 में जब भाजपा की पूर्व नेता नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हिंसा हुई, तो हिंसा के मास्टरमाइंड जावेद अहमद के घर को स्थानीय प्रशासन द्वारा गिरा दिया गया। जावेद अहमद की बेटी आफरीन फातिमा जेएनयू की पूर्व छात्र रह चुकी थी। अत: जुलाई 2022 में जेएनयू में इस कार्रवाई के विरोध में जबरदस्त नारेबाजी की गयी। छात्र संघ, जेएनयूएसयू के सदस्यों ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ ‘स्टॉप टारगेटिंग मुस्लिम्स’, ‘स्टॉप बुलडोजर राज’ जैसे कई नारे लगाये। यह मामला सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुआ।

    रामनवमी को लेकर कैंपस में झगड़े
    इसी साल 10 अप्रैल को रामनवमी के अवसर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ और वामपंथी छात्र संगठनों के बीच परिसर में झड़प हो गयी। दरअसल, यह विवाद अभाविप द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में रामनवमी के अवसर पर मेस में मांसाहारी भोजन नहीं बनाने की मांग को लेकर हुआ। अभाविप ने एनएसयूआइ और वामपंथी छात्रों पर आरोप लगाया कि उन्हें रामनवमी पर पूजा करने से रोका जा रहा है। एक अभाविप कार्यकर्ता ने कहा कि वामपंथी छात्रों और एनएसयूआइ के कार्यकर्ताओं ने परिसर में पूजा के दौरान हंगामा किया। उन्हें रामनवमी के अवसर पर कार्यक्रमों से समस्या है। इस झड़प में लगभग छह लोग घायल हो गये। यह मामला भी सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा में बना रहा।

    दिल्ली दंगों से जुड़ा कनेक्शन
    14 सितंबर, 2020 को जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को दिल्ली दंगों को भड़काने के चलते गिरफ्तार किया गया था। दरअसल फरवरी 2020 में पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हो गयी, जिसके कारण 53 लोगों की मौत हुई थी। दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में बताया है कि इन दंगों से पहले ताहिर हुसैन ने उमर खालिद और ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ के खालिद सैफी से शाहीन बाग में सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान मुलाकात की थी और उमर ने उन्हें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के समय दंगों के लिए तैयार रहने के लिए कहा था। उमर खालिद पर गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
    20 जनवरी, 2020 को आॅल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और अन्य संगठनों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ विरोध मार्च निकाला। विरोध प्रदर्शन के दौरान जेएनयू का पूर्व छात्र उमर खालिद भी मौजूद था और वहां इस सीएए अधिनियम के खिलाफ नारे लगाये गये। ये विरोध प्रदर्शन कई दिनों तक कैंपस में चले, जिसके चलते पढ़ाई भी प्रभावित हुई। इन विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी कई तस्वीरें उन दिनों सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हुई थीं।

    अभिनेत्री दीपिका पादुकोण पहुंची थीं जेएनयू, मचा हंगामा
    7 जनवरी 2020 को सीएए-एनआरसी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण जेएनयू परिसर में 5 जनवरी को हुई हिंसा के विरोध में छात्रों के साथ शामिल हुईं। बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को छात्रों के साथ उस समय खड़े देखा गया, जब प्रदर्शनकारी आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे। हालांकि, अभिनेत्री ने न तो कोई बयान जारी किया और न ही छात्रों को संबोधित किया। दीपिका के जेएनयू जाने पर सोशल मीडिया में हर तरह की प्रतिक्रिया दिखाई दी। दीपिका के अलावा डायरेक्टर अनुराग कश्यप और सिंगर विशाल ददलानी भी जेएनयू के उन प्रदर्शनों में शामिल हुए थे।

    कैंपस में हिंसा
    5 जनवरी, 2020 को जेएनयू के कई हॉस्टलों में वामपंथी संगठनों से जुड़े छात्र-छात्राओं ने भारी उत्पात मचाते हुए हिंसा की और कई छात्रों पर हमला किया। इसके बाद उनके विरोधी पक्ष के छात्रों ने भी हिंसा की। जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) की अध्यक्ष आइशी घोष स्वयं हिंसा में भाग लेते हुए वीडियो में देखी गयी। हालांकि बाद में दोनों गुटों ने दावा किया कि बाहरी छात्रों ने जेएनयू में घुस कर हिंसा की थी। इस पूरे मामले में अभाविप, एनएसयूआइ और वामपंथी संगठन एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे। उस समय कई वीडियो वायरल हुए थे, जिनमें छात्रों के एक समूह को अपने चेहरे को ढंके हुए देखा जा सकता था। वहीं कुछ छात्र-छात्राओं द्वारा हिंसा में घायल होने के दावों के वीडियो देखकर सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें झूठा कह दिया।

    स्वामी विवेकानंद की मूर्ति को निशाना बनाया
    जेएनयू परिसर में स्वामी विवेकानंद की एक प्रतिमा का अनावरण जनवरी, 2020 में होना था। मगर उससे पहले 14 नवंबर 2019 को उसे अज्ञात लोगों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। प्रतिमा के आगे बने चबूतरे पर भाजपा को निशाना बनाते हुए आपत्तिजनक शब्द लिखे गये। स्वामी विवेकानंद की ये प्रतिमा विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ब्लॉक में स्थित थी।
    शुल्क बढ़ाने पर जबरदस्त हंगामा
    12 नवंबर, 2019 को विश्वविद्यालय में शुल्क वृद्धि को लेकर वामपंथी छात्र संगठनों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। हंगामा और उत्पात इतना मचा कि परिसर में पुलिस को तैनात करना पड़ा। कई मौकों पर पुलिस और छात्रों के बीच भी तनातनी के मामले सामने आये। इन छात्र संगठनों ने ‘हमें चाहिए आजादी कर्फ्यू से, ड्रेस कोड से’ जैसे नारों के साथ कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन किये।

    आतंकी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट का समर्थन
    9 फरवरी, 2016 को जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठनों ने 2001 में संसद पर हुए हमले के दोषी अफजल गुरु और आतंकवादी मकबूल भट्ट को मिले मृत्युदंड के खिलाफ परिसर में विरोध प्रदर्शन किया। गौरतलब है कि कुछ छात्रों द्वारा प्रदर्शन के दौरान भारत विरोधी नारे भी लगाये गये। परिसर में इस प्रकार के कार्यक्रमों को रोकने को लेकर अभाविप ने जेएनयू प्रशासन से मांग की। इसी बीच इन छात्र संगठनों में आपसी झड़प हो गयी। घटना के चार दिन बाद जेएनयूएसयू के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया और उमर खालिद सहित कई अन्य छात्रों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

    जेएनयू में इन ताजा विवादों के बीच यह समझ में नहीं आता है कि आखिर शिक्षा के इस पवित्र मंदिर को गंदी राजनीति का अखाड़ा क्यों और कैसे बना दिया गया है। जिस विश्वविद्यालय की डिग्री का दुनिया भर में डंका बजता है, उसके परिसर में इस तरह के विवादों से आखिर क्या संदेश निकलता है। इसलिए अब समय आ गया है कि गंदी राजनीति के इस अखाड़े को शिक्षा के मंदिर में बदला जाना चाहिए और इसके लिए हरसंभव कदम उठाये जाने चाहिए।

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