• उस वक्त कश्मीर में गिरिजा टिक्कू को जिंदा आरा मशीन से काटा गया था, अब झारखंड में रिबिका पहाड़िया को इलेक्ट्रिक कटर मशीन से काटा गया

झारखंड और खासकर संथाल परगना में एक साजिश के तहत आदिवासी लड़कियों को टारगेट किया जा रहा है। ये बातें आजाद सिपाही ने अनगिनत बार कहने की कोशिश की है। कई बार हमने इस विषय को उठाया है, लेकिन उक्त विशेष रपट महज तारीफ पाकर रह गयी। बहुत अच्छा लिखा है आपने, कह कर लोग अपनी भावनाओं को विराम दे देते हैं। कुछ इन रपटों को हिंदू-मुस्लिम बना देते हैं। धर्म आधारित बताने लगते हैं। कोई-कोई धमकाने भी लगता है, लेकिन इससे हमें फर्क नहीं पड़ता। अगर कोई मुस्लिम युवक शाहरुख हुसैन दुमका की बेटी अंकिता कुमारी को पेट्रोल छिड़क कर जिंदा जला मार देता है, तो क्यों न लिखूं। अगर कोई अरमान अंसारी दुमका की नाबालिग आदिवासी बच्ची का रेप कर, उसकी हत्या कर देता है और उसकी लाश को पेड़ पर लटका देता है, तो क्यों न लिखूं। अगर कोई मुस्लिम युवक दिलदार अंसारी आदिवासी पहाड़िया लड़की रिबिका पहाड़िया को इलेक्ट्रिक कटर मशीन से काट कर, उसके शरीर के 50 टुकड़े कर देता है, तो क्यों न लिखूं। चुप्पी साध कर क्या झारखंड को 1990 का कश्मीर बनते देखा जाये। याद है न आपको, जहां गिरिजा टिक्कू का आतंकियों ने न केवल अपहरण किया, बल्कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार भी किया। दरिंदों का मन जब इससे भी नहीं भरा, तो आरा मशीन के बीच में रख कर जिंदा गिरिजा को काट दिया। और ऐसा कोई हैवान ही कर सकता है। मेरी नजर में कोई भारतीय मुसलमान या झारखंडी मुसलमान हैवान नहीं हो सकता। 1990 में कश्मीर में भी इस हैवानियत को पाकिस्तान परस्तों ने अंजाम दिया था। वही हैवानियत अब झारखंड और खासकर संथाल परगना में शुरू हो गयी है। दूसरी जगहों की तरह झारखंड में भी हत्याएं होती हैं। पति ने पत्नी की हत्या कर दी, ये खबरें आती रही हैं, लेकिन उन हत्याओं में हैवानियत से ज्यादा क्षणिक गुस्सा या अत्यधिक नशा सेवन का प्रभाव पाया जाता रहा है। लेकिन संथाल परगना की ये कू्रर हत्याएं कुछ अलग ही इशारा कर रही हैं। दिल कहता है, ऐसी निर्मम हत्या कोई झारखंडी नहीं कर सकता। न ही कोई भारतीय। इस तरह की हत्याएं पाकिस्तानी या बांग्लादेशी मानसिकता के लोग ही कर सकते हैं। एक साजिश के तहत झारखंड में इन हत्याओं को अंजाम दिया जा रहा है। खासकर संथाल परगना, जिसमें गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़ और साहिबगंज प्रमुख रूप से शामिल हैं। यहां पर बढ़ते बांग्लादेशी घुसपैठियों का जिक्र कई बार किया जा चुका है। यहां के मुस्लिम युवक आदिवासी लड़कियों को चिह्नित कर उन्हें अपने प्यार के जाल में फांस कर शादी कर रहे हैं। शादी करने के बाद उनकी जमीन और घर हड़प रहे हैं। इतना ही नहीं अगर शादी से पहले या बाद में लड़कियों को उनकी सच्चाई का पता चल जाता है, तो वे उनकी हत्या तक कर देते हैं। यहां तक कि शादी के बाद लड़कियों को कहा जाता है कि अपना धर्म बदल लो, विरोध करने पर उनकी हत्या कर दी जा रही है। रिबिका हत्याकांड में भी यही हुआ। यह मामला लव जिहाद और धर्मांतरण के एंगल से जोड़ कर क्यों न देखा जाये। आखिर इन बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण क्यों दिया जा रहा है। क्यों नहीं इनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। 1994 में ही केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर साहिबगंज जिले में 17 हजार से अधिक बांग्लादेशियों की पहचान हुई थी। इन बांग्लादेशियों के नाम मतदाता सूची से हटाये गये थे, मगर इन्हें वापस नहीं भेजा जा सका था। एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या करीब 15 लाख है। इनके पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और अन्य आइडी भी मिल जायेंगे। पूर्व की सरकार ने एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी थी। उसमें झारखंड में तेजी से बदल रहे डेमोग्राफी बदलाव का जिक्र था। कैसे बिहार और बंगाल के रास्ते बांग्लादेशी झारखंड आ रहे और यहां की संस्कृति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं, ये सारी बातें उस रिपोर्ट में कही गयी थीं। दरअसल संथाल परगना का पूरा इलाका पिछले कुछ दिनों से अवैध बांग्लादेशियों की शरण स्थली बन गया है। यहां इन बांग्लादेशियों ने स्थानीय लड़कियों से शादी कर करीब 10 हजार एकड़ जमीन भी खरीद ली है। यह पूरा रैकेट बेहद संगठित तरीके से चल रहा है और झारखंड के लिए यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बन सकती है। इनमे विलुप्त होती पहाड़िया जनजाति को एक साजिश के तहत टारगेट किया जा रहा है। चूंकि इनकी आबादी पहाड़ों पर वास करती है। इनके पास जमीन भी अधिक मात्रा में होती हैं, जिसे गुप्त तरीके से शादी कर हासिल कर लिया जा रहा है। पहाड़िया लड़कियों से शादी के बाद उन्हें चुनाव भी लड़वाया जा रहा है। इसी बहाने इन युवकों का दखल सत्ता में भी हो रहा है। इनका पूरा एक रैकेट है, जो लगातार सक्रिय है। रिबिका पहाड़िया हत्याकांड की पृष्ठभूमि में इस पूरे रैकेट के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

एक तरफ जहां विलुप्त होती आदिम जनजाति को झारखंड सरकार सहेज कर रखने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर आदिम जनजाति से आनेवाली रिबिका पहाड़िया को झारखंड के साहिबगंज में 50 टुकड़ों में काट दिया जाता है। रिबिका साहिबगंज के डोडा पहाड़ की रहनेवाली थी। महज चंद दिनों पहले ही रिबिका का लव मैरेज मुस्लिम युवक दिलदार अंसारी से हुआ था। रिबिका बहुत सारे सपने लेकर आयी थी, लेकिन शादी के तुरंत बाद दिलदार अंसारी की असलियत उसके सामने आ गयी। पता चला, दिलदार की ये दूसरी शादी है। इसे लेकर दिलदार के घर में रोजाना झगड़े होते थे। रिबिका और दिलदार के परिवार वालों को यह शादी मंजूर नहीं थी। इसका अंजाम यह हुआ कि रिबिका के पति ने अपने परिवार के सभी सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ मिल कर शुक्रवार की देर रात धारदार हथियार से उसकी हत्या कर दी। साक्ष्य छुपाने के लिए शव को इलेक्ट्रिक कटर मशीन से 50 टुकड़े किये गये। कुछ टुकड़े घर में छिपा दिये गये और अन्य टुकड़े मोहल्ले के आसपास सुनसान जगहों पर फेंक दिये गये, जिसे कुत्ते नोंच-नोंच कर खा रहे थे। जब लोगों ने कुत्तों को इंसान का मांस खाते देखा तो इसकी सूचना पुलिस को दी। इसके बाद मामले का खुलासा हुआ। अब तक पुलिस को 18 टुकड़े मिले हैं। सिर समेत दूसरे अंगों की तलाश पुलिस अभी कर रही है। अभी कुछ महीने पहले इसी संथाल परगना के दुमका में अंकिता सिंह को मुसलिम युवक शाहरुख ने केवल इसलिए पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी थी, क्योंकि अंकिता उससे बात करने से इनकार कर रही थी। ये दोनों वारदातें बताती हैं कि झारखंड में हत्या के लिए कितने क्रूर तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बात सच है कि झारखंड की संस्कृति में इतनी क्रूरता के लिए कोई जगह नहीं है और कोई झारखंडी इतना नृशंस नहीं हो सकता। तो फिर सवाल यह उठता है कि दिलदार और शाहरुख के भीतर इतनी क्रूरता कहां से आयी। अपराध विज्ञान के बड़े से बड़े जानकार भी इस सवाल का जवाब आसानी से नहीं दे सकते हैं, क्योंकि वास्तव में दिलदार और शाहरुख झारखंडी हैं ही नहीं। उनके मन में इतनी नफरत और क्रूरता उनके पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों ने भरी है, जो बांग्लादेश से यहां केवल बसने के लिए आया है। ऐसा नहीं है कि झारखंड में किसी महिला की उसके पति द्वारा हत्या किये जाने की यह पहली घटना है। झारखंड में पति-पत्नी के बीच विवाद में हत्याएं होती हैं, लेकिन सवाल हत्या का नहीं, हत्यारे की क्रूर और पाशविक मानसिकता का है। आखिर दिलदार के दिमाग में रिबिका की हत्या कर उसके शव के 50 टुकड़े करने की बात कैसे आयी। इस गंभीर सवाल का एक ही जवाब है कि यह किसी झारखंडी का काम नहीं हो सकता है।

संथाल परगना में बस रहे हैं बांग्लादेशी
रिबिका हत्याकांड की तह में जाने से पहले करीब तीन साल पहले झारखंड सरकार के गृह विभाग की उस रिपोर्ट पर ध्यान दिया जाना जरूरी है, जिसमें कहा गया है कि अवैध तरीके से संथाल परगना में बसनेवाले बांग्लादेशी नागरिकों ने यहां आदिवासी लड़कियों से शादी कर 10 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन खरीदी है। रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंध के बावजूद बांग्लादेशी नागरिक पाकुड़, जामताड़ा, साहिबगंज और गोड्डा में लगातार जमीन खरीद कर बस रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन बांग्लादेशियों को जमीन खरीदने के लिए आवश्यक धनराशि प्रतिबंधित संगठन पीएफआइ उपलब्ध कराता है। इसकी मदद से ही लोग दस्तावेज भी हासिल कर लेते हैं। यह एक रैकेट है और इसकी पोल अंकिता सिंह हत्याकांड और रिबिका पहाड़िया हत्याकांड के साथ ही खुल जाती है। रिपोर्ट कहती है कि यह पूरा रैकेट नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजंस (एनआरसी) से बचने के लिए चल रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासी लड़कियों से शादी कर उनके नाम से जमीन खरीद रहे हैं। ऐसा होने से वे भी खुद को आसानी से झारखंड का निवासी बता सकते हैं। बांग्लादेश की सीमा से झारखंड की दूरी 25-40 किलोमीटर है। इसी हिस्से का इस्तेमाल कर बांग्लादेशी यहां आ रहे हैं। पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद के रास्ते भी अधिकांश बांग्लादेशी झारखंड में घुसपैठ कर रहे हैं। यहां पर अधिकांश बांग्लादेशी फरक्का, अनंथ, उधवा, पियारपुर, बेगमगंज, फुदकलपुर, श्रीधर, दियारा, बेलुग्राम, चांदशहर, प्राणपुर से भी इंट्री लेते हैं। झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों के पास आधार कार्ड, वोटर आइडी, ड्राइविंग लाइसेंस सब मिल जायेंगे।

आखिर विलुप्त होती आदिम जनजाति को निशाना क्यों बनाया जा रहा
लव जिहाद का एक एंगल यह भी: पहले शादी करते हैं, फिर चुनाव भी लड़वाते हैं: एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे कई प्रेम विवाह सामने आये हैं, जिनमें मुस्लिम युवकों ने शादी के बाद आदिवासी युवतियों को चुनाव लड़ाया, उनको जिता कर सत्ता में भी दखल कर लिया। बोरियो इलाके में हाल के एक साल में करीब सौ मुस्लिम युवकों ने आदिवासी युवतियों से प्रेम विवाह किया है। सूत्रों ने बताया कि इस कथित शादी के कई लाभ हैं। पत्नी को आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम युवक चुनाव लड़ाते हैं। उनकी राजनीतिक शक्ति का उपयोग करते हैं। अधिकतर पहाड़िया आदिवासियों के पास काफी जमीन भी है। शादी के बाद उन जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं और इस तरह से मुस्लिम समुदाय के लोग पहाड़िया गांवों में अपनी पैठ बनाते हैं। सूत्रों की मानें तो कई बार वहां के किशोर-किशोरियों को महानगरों में बेचा भी गया है। मानव तस्करी के ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।

80 प्रतिशत पहाड़िया का हो चुका धर्मांतरण
पहाड़िया जनजाति आदिवासियों की 32 जनजातियों में से एक है। यह जनजाति पहाड़ों पर रहती है। पहाड़ों पर एक जगह अधिक से अधिक 20-25 घर होते हैं। ये झरने का पानी पीते हैं। लकड़ी काट कर बाजार में बेचते हैं, उससे दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदते हैं। कुछ पहाड़िया पहाड़ों पर बरबट्टी की खेती भी करते हैं। जिले में इनकी आबादी 80-85 हजार के करीब है। जानकारों का कहना है कि करीब 80 प्रतिशत पहाड़िया धर्मांतरण कर ईसाई बन चुके हैं। अब मुस्लिम युवक इन पर नजरें गड़ाये हुए हैं। वे अपने तरीके से इनको अपने समूह में जोड़ रहे हैं। इन जनजाति की संख्या दिन पर दिन घटती जा रही है। हाल के दिनों में जिस तरह से संथाल परगना की डेमोग्राफी में बदलाव हुआ है, अगर उस पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं किया गया, शासन-प्रशासन के स्तर पर असलियत को उजागर नहीं किया गया, घुसपैठ के सहारे यहां आ रहे बांग्लादेशियों को नहीं रोका गया, गलत नागरिकों को तड़ी पार नहीं किया गया, तो ऐसी कू्रर घटनाओं की संख्या गिनने और उन पर आंसू बहाने के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा। कभी रिबिका, तो कभी अंकिता तो कभी कोई और मासूम बच्ची नरपिशाचों की दरिंदगी का शिकार बनती रहेंगी। झारखंड की संस्कृति, सुरक्षा और आबरू नष्ट हो जायेगी।

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